Social Sciences, asked by mahesh12345678901, 9 months ago

what is the griss capital ?​

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Answered by premkumaryadav146503
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Answer:

sorry but your question is wrong

Answered by harshitasihag
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Answer:

प्रार्थना का अर्थ यह नहीं है कि आप कर्म छोड़कर मंदिर में बैठे आरती करते रहें , घंटी बजाते रहें और आपकी जगह भगवान परीक्षा भवन में जाकर परीक्षा दे आएंगे या आपके दूसरे कार्य संपन्न कर देंगे। प्रार्थना व्यक्ति को आंतरिक संबल प्रदान करती है , उसे कर्म की ओर उद्यत करने हेतु आंतरिक बल , उत्साह और आशा प्रदान करती है। प्रार्थना व्यक्ति के विचारों एवं इच्छाओं को सकारात्मक बनाकर निराशा एवं नकारात्मक भावों को नष्ट करती है। प्रार्थना करने से मनुष्य भाग्यवादी कभी नहीं बनता। यदि ऐसा होता तो सभी धर्मों के लोग प्रार्थना करना बंद कर देते या सभी धर्म प्रार्थना के महत्व को नकार देते। कर्म का स्थान प्रार्थना नहीं ले सकती , प्रार्थना का स्थान कर्म नहीं ले सकता। यदि ऐसा होता तो डॉक्टर ऑपरेशन से पूर्व प्रार्थना से ही काम चला लेता कि जाओ हो गया ऑपरेशन। प्रार्थना के मूल में यही भाव है कि कर्म तो व्यक्ति को करना ही होगा , किंतु उसके द्वारा किया गया कर्म कभी निष्फल नहीं जाएगा , उसे यथेष्ट फल मिलेगा ही। उस कर्म हेतु प्रेरणा एवं

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