Hindi, asked by anthonybrokenheart85, 11 months ago

What is the meaning of parahet sares bhai nahi dharm

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Answered by Billieeilish
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बुलंदशहर: परोपकार से बड़ा कोई पुण्य नहीं है। जो व्यक्ति स्वयं की ¨चता न कर परोपकार के लिए कार्य करता है, वही सच्चे अर्थों में मनुष्य है। परोपकार का अर्थ है दूसरे की भलाई करना। परमात्मा ने हमें जो भी शक्तियां व साम‌र्थ्य दिए हैं वे दूसरों का कल्याण करने के लिए दिए हैं। प्रकृति के प्रत्येक कण-कण में परोपकार की भावना दिखती है। सूर्य, चंद्र, वायु, पेड़-पौधे, नदी, हवा, बादल सभी बिना किसी स्वार्थ के सेवा में लगे हुए हैं। सूर्य बिना किसी स्वार्थ के, पृथ्वी को जीवन देने के लिए प्रकाश देता है। चंद्रमा अपनी किरणों से सबको शीतलता प्रदान करता है, वायु अपनी प्राण-वायु से संसार के प्रत्येक जीव को जीवन प्रदान करती है। वही बादल सभी को जल रूप अमृत प्रदान करते हैं, वो भी बिना किसी स्वार्थ के, युगों-युगों से। इसके बदले ये हमसे कुछ भी अपेक्षा नहीं करते, बस परोपकार ही करते हैं। रहीम कहते हैं-

'वो रहीम सुख होत है, उपकारी के संग

बांटने वारे को लगे, ज्यों मेहंदी के रंग।'

हरेक व्यक्ति का दायित्व है कि वह संसार को उतना तो अवश्य लौटा दे, जितना उसने इससे लिया है। चाणक्य भी मानते हैं कि परोपकार ही जीवन है। जिस शरीर से परोपकार न हो, उस शरीर का क्या लाभ? वास्तव में परोपकार के बारे में गोस्वामी तुलसीदास की ये उक्ति सब कुछ बयां कर देते है-'परहित सरिस धर्म नहीं भाई, परपीड़ा सम नहीं अधमाई'। परोपकार से बढ़कर दूसरा धर्म नही है और किसी को दुख पहुंचाने से बढ़कर कोई दूसरा अधर्म नहीं है। -रीना शर्मा, शिक्षिका प्राथमिक विद्यालय मऊखेड़ा।

----परोपकार से ईश्वर का मार्ग खुलता है

बुलंदशहर: वास्तव में परोपकार से ही ईश्वर का मार्ग खुलता है। व्यक्ति जितना परोपकारी बनता है, उतना ही ईश्वर की समीपता प्राप्त करता जाता है। ईश्वर मनुष्य से कह रहा है कि तू मुझे मंदिर में मत खोज। मैं चाहता हूं कि तू नर रूपी नारायण की सेवा कर, तब तू मुझे जान पाएगा। आज इसका ठीक उल्टा हो रहा है, मंदिरों में सैकड़ों लीटर दूध व्यर्थ वह जाता है, कितने मीटर चादरें मजारों पर चढ़ा दी जाती है जबकि बाहर बैठा गरीब भूखा-प्यासा, अधनंगा अपनी दुर्दशा पर रोता रहता है। प्रश्न उठता है कि क्या नर की सेवा के बिना नारायण को प्राप्त किया जा सकता है। वास्तव में जीव मात्र की सेवा ही, ईश्वर की सच्ची सेवा है। कितने ही संतों के जीवन ऐसे उदाहरणों से भरे पड़े हैं, जब उन्होंने जीव मात्र की सच्चे हृदय से सेवा करके, ईश्वर को प्रकट होने पर विवश कर दिया। ईश्वर सोना-चांदी, धन आदि चढ़ाने से खुश नहीं होता बल्कि प्राणी मात्र की जरा सी भी सच्ची सेवा से खुश हो जाता है। सच तो यह है कि परोपकार ही एक मात्र उपाय है- स्वयं की उन्नति का, समाज की उन्नति का, विश्व कल्याण का। यदि हम सिर्फ अपने ही कल्याण के बारे में न सोचकर, दूसरों की भलाई के बारे में सोचने लगें तो कहीं कोई समस्या ही शेष नहीं बचेगी। ईश्वर ने हमें कोई भी वस्तु केवल स्वयं के उपभोग के लिए नहीं दी है बल्कि इसलिए दी है कि इससे कितने ज्यादा से ज्यादा लोगों का भला तो सकता है। परोपकारी मनुष्य ही सच्ची शांति को प्राप्त कर सकता है, स्थायी उन्नति कर सकता है, ईश्वर को प्राप्त कर सकता है और विश्व का कल्याण कर सकता है। विश्व का कल्याण केवल निजी उन्नति से संभव नहीं बल्कि प्रत्येक व्यक्ति की उन्नति से संभव है। ये तभी संभव है जब हम परोपकार के महत्व को समझें।

-सरगम शर्मा, देवी प्रसाद शर्मा पब्लिक स्कूल, जहांगीराबाद।

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