Hindi, asked by akhilaudayakumar, 1 year ago

what is the summary of "bhook" written by chitra murdgal?

Answers

Answered by sreemukhi
1
भूख

आहट सुन लक्ष्मा ने सूप से गरदन ऊपर उठाई। सावित्री अक्का झोंपड़ी के किवाड़ों से लगी भीतर झाँकती। सूप फटकारना छोड़कर वह उठ खड़ी हुई, आ, अन्दर कू आ, अक्का।’’ उसने आग्रह से सावित्री को भीतर बुलाया। फिर झोपड़ी के एक कोने से टिकी झिरझिरी चटाई कनस्तर के करीब बिछाते हुए उसपर बैठने का आग्रह करती स्वयं सूप के निकट पसर गई। 
सावित्री ने सूप में पड़ी ज्वार को अँजुरी में भरकर गौर से देखा, ‘‘राशन से लिया ?’’ 
‘‘कारड किदर मेरा !’’ 
‘‘नईं ?’’ सावित्री को विश्वास नहीं हुआ। 

‘‘नईं।’’ 
‘‘अब्बी बना ले।’’ 
‘‘मुश्किल न पन।’’ 
‘‘कैइसा ? अरे, टरमपरेरी बनता न। अपना है न परमेश्वरन् उसका पास जाना। कागद पर नाम-वाम लिख के देने को होता। पिच्छू झोंपड़ी तेरा किसका ? गनेसी का न ! उसको बोलना कि वो पन तेरे को कागद पे लिख के देने का कि तू उसका भड़ोतरी.....ताबड़तोड़ बनेगा तेरा कारड।’’
उसके पास ही चीकट गुदड़ी पर अड़े कुनमुनाए छोटू को हाथ लंबा कर थपकी देते हुए गहरा निःश्वास भरा-‘‘जाएगी।’’ 
‘‘जाएगी नईं, कलीच जाना !’’ सावित्री ने सयानों सी ताकीद की। फिर सूप में पड़ी गुलाबी ज्वार की ओर संकेत कर बोली, ‘‘ये दो बीस किल्लो खरीदा न ! 

कारड पे एक साठ मिलता।’’ 
छोटू फिर कुनमुमाया। पर अबकी थपकियाने के बावजूद चौंककर रोने लगा। उसने गोद में लेकर स्तन उसके मुँह में दे दिया। कुछ क्षण चुकरने के बाद बच्चा स्तन छोड़ बिरझाया-सा चीखने लगा-‘‘क्या होना....आताच नई।’’ उसने असहाय दृष्टि सावित्री पर डाली। 
‘‘क़ांजी दे।’’ 

‘‘वोईच देती पन....’’ 
‘‘मैं भेजती एक वाटी तांदुल।’’ सावित्री उसका आशय समझ उठ खड़ी हुई, ‘‘तेरा बड़ा किदर ? और मझला किस्तू ?’’ 
‘‘खेलते होएँगे किदर ।’’ 
उसने मनुहारपूर्वक सावित्री की बाँहे पकड़कर बैठाते हुए कहा, ‘‘थोड़ा देर बैइठ न अक्का, मैं इसको भाकरी देती।’’ कुछ सोचती-सी सावित्री बैठ गई। वह उठकर ज्वार की रोटी की एक सूखा टुकड़ा ले आई और छोटू के मुंह में मींस-मींसकर डालने लगी। छोटू मजे से मुँह चलाने लगा। 
‘‘कालोनी गई होती ?’’ सावित्री ने पूछा तो प्रत्युत्तर में लक्ष्मा का चेहरा उतर आया। 

‘‘दरवाजा किदर खोलते फिलाटवाले ? एक-दो ने खोला तो पिच्छू पूछी मैं कि भांड-कटका के वास्ते बाई मँगता तो बोलने को लगे कि किदर रेती ? किदर से आई ? तेरा पेचानेवाली कोई बाई आजू-बाजू में काम करती है क्या ? करती तो उसको साथ लेकर आना। हम तुमकों पेचानते नहीं, कैसा रक्खेगा। और पूछा, ये गोदी का बच्चा किसके पास रक्खेगी जबी काम कू आएगी ? मैं बोली, बाकी दोनों बच्चा मेरा छोटा-छोटा। संभालने को घर में कोई नई। साथेच रक्खेगी। तो दरवाजा मेरा मूँपेज बंद कर दिए।’’ लक्ष्मा का गला भर्रा आया। 

‘‘सुबुर कर सुबुर कर, काम मिलेगा। किदर-न-किदर मिलेगा। मैं पता लगाती। कोई अपना पेचानवाली बाई मिलेगी तो पूछेगी उसको। ये फिलाटवाले चोरी-बोरी से बोत डरते ! कालोनी में काम करती क्या वो !’’ सावित्री ने कंधे थपका उसे ढांढस बंधाया। उसका चेहरा घुमाकर आँसू पोछे। अपना उदाहरण देकर भर आए मन से हिम्मत बँधाने लगी कि तनिक सोचे, उसके तो फिर तीन-तीन औलादें हैं। और वह अकेली किसका मुँह देखकर जिंदा रहे ? मुलुक में; समुद्र तट पर बसे उसके पूरे कुटुम्ब को अचानक एक दोपहर उन्मादी तूफान लील गया था और....घर में दीया जलाने वाला कोई नहीं बचा। 
‘‘मैं मरी क्या सबके साथ, देख !’’ 

..... अपना दुःख तसल्ली नहीं देता। दूसरों का दुःख जरूर साहस पिरो देता है। यही सोचकर सावित्री ने अपनी पीड़ा की गाँठ खुरच दी। लक्ष्मा ने विह्लल होकर अक्का की हथेली भींच ली। 
‘‘कल मेरा दुकान पर आना। सेठ बोत हरामी हय पन हाथ-पाँव जोड़ेगी तेरे वास्ते हाँ, बड़े को ताबड़तोड़ भेजना तांदुल के वास्ते।’’ उसने स्वीकृति में सिर हिला दिया। 

सावित्री झोंपड़े के बाहर आई तो लक्ष्मी की दयनीय स्थिति से मन चिंतित हो आया। मजे में गृहस्थी कट रही थी। ऐसी पनवती लगी कि उज़ड गया। मरद मिस्त्री था। तीस रुपया दिहाड़ी लेता। एक सुबू पच्चीस माले ऊँची इमारत में काम शुरू किया ही था कि बँधे बाँसों के सहारे फल्ली पर टिके पाँव बालकनी पर पलस्तर चढ़ाते फिसल गए। पंद्रहवें माले से जो पके कटहल-सा चुआ तो ‘आह’ भी नहीं भर पाया गुंडप्पा। सेठ खड़ुस था। साबित कर दिया कि मिस्त्री बाटली चढ़ाए हुए था। अलबत्ता रात को जरूर वह बोतल चढ़ा के सोया था, सुबू एकदम होश में काम पर गया। मुँह से दारू की बास नहीं गई होगी तो और बात। हजार रुपए लक्ष्मा को टिका के टरका दिया हरामी ने। 

सबने बोला ठेकेदार सेठ को, मगर उसने लक्ष्मा को काम पर नहीं रखा। बोला, इसका तो पेट फूला है। बैठ के मजूरी लेगी। बैठ के मजूरी देने को उसके पास पैसा नहीं। मिस्त्री मरा तो वह पेट से थी। सातवाँ महीना चढ़ा हुआ था। 
बुरा वक्त। एक काम दस मजूर। काम मिले तो भी कैसे ? ऊपर से मुसीबत का रोना एक से एक बेईमान ओढ़कर निगलते। किसी के पास कोई असली जरूरतमंद पहुँचा भी तो कोई विश्वास कैसे करे ?......

छोटे को कमर में लादे लक्ष्मा बनिए की दुकान के सामने जा खड़ी हुई। सावित्री की नजर उसपर पड़ी तो वह काम से हाथ खींच बनिए के सामने पहुँची और लक्ष्मा की मुसीबतों का रोना रोकर उसपर दया करने की सिफारिश करने लगी। लेकिन बनिए के डपटने पर कि जाओ जाकर अपना काम देखो- वह विवश-सी एक बड़े-से झारे से अनाज चलाने बैठ गई। उसकी बगल में चादरनुमा टाट पर पंजाबी गेहूँ की ढेरियाँ लगी हुई थीं। पहले सेठ ने उसके महनताने का करार गोनी पीछे दो रुपया था। फिर सेठ को लगा कि इसे सोदे में उसका नुकसान यूँ है कि गोनियाँ जल्दी-जल्दी निपटाने को मंशा से बीनने-चुनने में मक्कारी

I love you.......

akhilaudayakumar: Is it is a summary/story?
Similar questions