Hindi, asked by rajeh9592, 1 day ago

Who is Meera And surdas?​

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Answered by arpit8253
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मीराबाई का जन्म सन् 1498 में राजस्थान के एक राजपूत घराने में हुआ था. उनके पिता का नाम रतन सिंह और माता का नाम वीर कुमारी था. मीरा कृष्ण की बहुत बड़ी भक्त थीं. जब वह 4 वर्ष की थी तब उन्होंने अपने घर के पास हो रहे एक विवाह को देखकर बेहद मासूमियत के साथ अपनी मां से पूछा था कि प्यारी मां, मेरा दूल्हा कौन होगा? मीरा के इस सवाल पर उनकी मां ने मुस्कुराते हुए श्री कृष्ण की मूर्ति की तरफ इशारा करते हुए कहा था कि मेरी प्यारी मीरा श्री कृष्ण तुम्हारे वर होंगे. जिसके बाद से ही मीरा श्री कृष्ण को अपना स्वामी मानकर उनके प्रेम में विलीन हो गईं. कुछ समय बाद ही मीरा की मां का निधन हो गया था.,

जब मीरा बड़ी हुईं तो उनके मन में ये विश्वास था कि श्री कृष्ण उनसे शादी करने जरूर आएंगे. मीरा बेहद खूबसूरत और स्वभाव की कोमल थीं. वे बहुत सुरीली आवाज में गाना गाती थीं. लेकिन मीरा की शादी मेवार के महाराणा सांगा के पुत्र राणा सांगा से हुई. मीरा ये शादी नहीं करना चाहती थीं, लेकिन परिवार के जोर देने पर उन्हें ये शादी करनी पड़ी.माना जाता है कि शादी के बाद भी मीरा का प्रेम कृष्ण के लिए कम नहीं हुआ. विदाई के समय कृष्ण की वही मूर्ति अपने साथ लेकर गईं, जिसे उनकी मां ने उनका दूल्हा बताया था. शादी के बाद मीरा ससुराल के कामकाज पूरे करने बाद रोजाना कृष्ण के मंदिर जाया करती थीं. वहां जाकर वह श्री कृष्ण की मूर्ति की पूजा करती, उनके लिए मधुर आवाज में भजन गाती और नृत्य भी करती थीं

मीरा का कृष्ण के लिए प्रेम उनकी ससुराल वालों को बिल्कुल पसंद नहीं था. उनकी सास ने उन्हें दुर्गा मां की आराधना करने पर जोर दिया क्योंकि उनके ससुराल वाले दुर्गा देवी में बेहद विश्वास रखते थे. लेकिन ससुराल वालों के श्री कृष्ण की आराधना से रोकने पर मीरा ने साफ कह दिया कि, 'मैं पहले ही अपना जीवन कृष्ण के नाम कर चुकी हूं.'

इसके बाद मीरा की ननद उदाबाई ने उन्हें बदनाम करने भी कोशिश की. उदाबाई ने अपने भाई राणा से कहा कि मीरा का किसी के साथ प्रेम संबंध है और उसने मीरा को उस व्यक्ति के साथ देखा है. ये सुनकर राणा बेहद क्रोधित हुए और आधी रात बहन उदाबाई के साथ मंदिर जा पहुंचे. मंदिर पहुंच कर उन्होंने मीरा को कृष्ण की मूर्ति के साथ अकेले ही बाते करते हुए देखा.ये देखने के बाद वह गुस्से से चिल्लाए कि मीरा अपने जिस प्रेमी से तुम बातें कर रही हो उसे मेरे सामने लेकर आओ. इसके जवाब में मीरा कृष्ण की मूर्ति की ओर इशारा कर कहती हैं कि ये मेरे स्वामी हैं, इनसे मेरा विवाह हो गया है. ये सुनने के बाद राणा का दिल टूट जाता है. लेकिन फिर भी वह पूरी श्रद्धा से अपना पति धर्म निभाते हैं और आखिरी सांस तक मीरा का साथ देते हैं.मीरा का देवर विक्रमादित्य चितौड़गढ़ के नए राजा के रूप में चुना गया था. उनको कृष्ण के प्रति मीरा की भक्ति और लोगों के साथ मीरा का मेल जोल पसंद नहीं था. उन्होंने मीरा को मारने के लिए फूलों के हार की एक टोकरी भेजी, जिसके अंदर जहरीला सांप था. मीरा ने जैसे ही टोकरी खोल कर देखा तो उसमें कृष्ण की एक खूबसूरत मूर्ति फूलों के हार के साथ पाई.

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Soordas,

,सूरदास हिन्दी के भक्तिकाल के महान कवि थे। हिन्दी साहित्य में भगवान श्रीकृष्ण के अनन्य उपासक और ब्रजभाषा के श्रेष्ठ कवि महात्मा सूरदास हिंदी साहित्य के सूर्य माने जाते हैं। सूरदास जन्म से अंधे थे या नहीं, इस संबंध में विद्वानों में मतभेद हैमहाकवि श्री सूरदास का जन्म 1478 ई में रुनकता क्षेत्र में हुआ। यह गाँव मथुरा-आगरा मार्ग के किनारे स्थित है। कुछ विद्वानों का मत है कि सूरदास का जन्म दिल्ली के पास सीही [2] नामक स्थान पर एक निर्धन सारस्वत ब्राह्मण परिवार में हुआ था। वह बहुत विद्वान थे, उनकी लोग आज भी चर्चा करते है। वे मथुरा के बीच गऊघाट पर आकर रहने लगे थे। सूरदास के पिता, रामदास बैरागी[3] प्रसिद्ध गायक थे। सूरदास के जन्मांध होने के विषय में अनेक भ्रान्तिया है, प्रारंभ में सूरदास आगरा के समीप गऊघाट पर रहते थे। वहीं उनकी भेंट श्री वल्लभाचार्य से हुई और वे उनके शिष्य बन गए। वल्लभाचार्य ने उनको पुष्टिमार्ग में दीक्षित कर के कृष्णलीला के पद गाने का आदेश दिया। सूरदास की मृत्यु गोवर्धन के निकट पारसौली ग्राम में 1583 ईस्वी में हुई [4]

सूरदास की जन्मतिथि एवं जन्मस्थान के विषय में विद्वानों में मतभेद है। "साहित्य लहरी' सूर की लिखी रचना मानी जाती है। इसमें साहित्य लहरी के रचना-काल के सम्बन्ध में निम्न पद मिलता है -

मुनि पुनि के रस लेख।

दसन गौरीनन्द को लिखि सुवल संवत् पेख॥

इसका अर्थ संवत् 1607 ईस्वी में माना गया है, अतएव "साहित्य लहरी' का रचना काल संवत् 1607 वि० है। इस ग्रन्थ से यह भी प्रमाण मिलता है कि सूर के गुरु श्री वल्लभाचार्य थे।

सूरदास का जन्म सं० 1540 ईस्वी के लगभग ठहरता है, क्योंकि वल्लभ सम्प्रदाय में ऐसी मान्यता है कि बल्लभाचार्य सूरदास से दस दिन बड़े थे और बल्लभाचार्य का जन्म उक्त संवत् की वैशाख् कृष्ण एकादशी को हुआ था। इसलिए सूरदास की जन्म-तिथि वैशाख शुक्ला पंचमी, संवत् 1535 वि० समीचीन जान पड़ती है। अनेक प्रमाणों के आधार पर उनका मृत्यु संवत् 1620 से 1648 ईस्वी के मध्य स्वीकार किया जाता है। रामचन्द्र शुक्ल जी के मतानुसार सूरदास का जन्म संवत् 1540 वि० के सन्निकट और मृत्यु संवत् 1620 ईस्वी के आसपास माना जाता है।

श्री गुरु बल्लभ तत्त्व सुनायो लीला भेद बतायो।

सूरदास की आयु "सूरसारावली' के अनुसार उस समय 67 वर्ष थी। 'चौरासी वैष्णवन की वार्ता' के आधार पर उनका जन्म रुनकता अथवा रेणु का क्षेत्र (वर्तमान जिला आगरान्तर्गत) में हुआ था। मथुरा और आगरा के बीच गऊघाट पर ये निवास करते थे। बल्लभाचार्य से इनकी भेंट वहीं पर हुई थी। "भावप्रकाश' में सूर का जन्म स्थान सीही नामक ग्राम बताया गया है। वे सारस्वत ब्राह्मण थे और जन्म के अंधे थे। "आइने अकबरी' में (संवत् 1653 ईस्वी) तथा "मुतखबुत-तवारीख" के अनुसार सूरदास को अकबर के दरबारी संगीतज्ञों में माना है

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