English, asked by diyu60, 10 months ago

who is the writer of the story premchand ke phate joote???​

Answers

Answered by Anonymous
13

Answer:

Harishankar prasai” is the author of the story.....

@Hopeless

Answered by ankitgupta82
5

Explanation:

Premchand Ke Phate Joote

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

‘प्रेमचन्द्र के फटे जूते’ शीर्षक से यह प्रतिष्ठित कथाकार ज्ञानरंजन द्वारा सम्पादित हरिशंकर परसाई की प्रतिनिधि रचनाओं का संचयन है। इन रचनाओं में परसाई ने अपने युग के समाज का,उसकी बहुविध विसंगतियों, अन्तर्विरोधों और मिथ्याचारों का उद्घाटन किया है। इन रचनाओं में हँसी से बढ़कर जीवन की तीखी आलोचना है। परसाई का समग्र रूप अनूठा है। उनके पास स्मृति है और तर्क है। तर्क मनहूनी को काटता है और चपल विनोद-वृत्ति तथा ठाठदार हास्य की शैली से आगे बढ़ जाता है। व्यार और भक्ति के समुद्र के बीच परसाई ने अपनी ज्वलन्त और मौलिक खड़ी बोली में भारतीय समाज की असंख्य पेण्टिग्स बना डाली। प्रेमचन्द्र के बाद वे हिन्दी में सबसे अधिक पढ़े जानेवाले रचनाकार है।

प्रस्तुति

इस संकलन में हरिशंकर परसाई की समग्र रचनावली से कुछ चुनकर एक प्रतिनिधि संग्रह बनाने का प्रयास किया गया है। परसाई का रचना-संसार एक समुद्र की तरह है। वह कभी घटनेवाला संसार नहीं है। उनकी सामयिकता भी ठप नहीं होती। जिस रचनाकार के पास दृष्टिकोण होता है उसकी सामयिकता भी बहुत दूर तक जाती है, कभी-कभी अन्तहीन तक जाती है।

बड़े रचनाकारों के भीतर प्रवेश करना एक चक्रव्यूह में जाने की तरह है। अनेक महारथी उसमें प्रवेश करते हैं और लौट नहीं पाते। उसमें एक जबरदस्त मनचाही भटकन है। इसीलिए बहुत कम लोग होंगे जो ऐसे लेखक की कहानी सही तरह बखान कर सकें। जब तक परसाई की ग्रिप से निकलकर उन्हें दूर-दूर से न देखा जाए, मतलब एक बड़े डिस्टैंस से तब तक उन्हें मुकम्मल समझना, उन पर वास्तविक टिप्पणी करना कठिन है। मैं परसाई के साथ 35 साल से अधिक समय तक मँडराता रहा, उनके सान्निध्य में। उनके साथ मुम्बई, दिल्ली, भोपाल और राजनाँदगाँव की अभिन्न यात्राएँ भी कीं। उस समय फुलवारी पूरी तरह खिली और भरी हुई थी। पर आज तक ठीक तरह परसाई पर लिख पाने की हिम्मत मेरी हुई नहीं। अग्रज विश्वनाथ त्रिपाठी जब पहली बार परसाई पर किताब लिख रहे थे और ‘पहल’ के लिए लिख रहे थे तब अन्तरंग में उनसे बहुत सारी बातें परसाई को लेकर हुई थीं। त्रिपाठी जी की किताब अद्भुत है लेकिन एक टुकड़ा है। वह परसाई के रचना-संसार और उसकी समझ को आधारभूत तरह से आगे बढ़ाती है, पर परसाई तो समुद्र हैं। बड़े-बड़े बायोग्राफर्स भी डूबने-उतराने के बाद बहुत सारी उलझनें छोड़ जाते हैं। फिर परसाई का समय और उस समय को भेदते हुए परसाई की रचना इस हालत में थी जब हमारे पण्डितों के पास उन पर टिप्पणी करने के लिए औजार नहीं थे। वे औजार आज भी भट्टी में पक रहे हैं।

Similar questions