Hindi, asked by lavanyagautam88, 1 year ago

write a anuched on vidyarthi jivan
and pustake in 100 words or above


Anonymous: chat smwhere else
vironika46: Sorry
vironika46: If you want i will report your answer it will be deleted soon
Anonymous: I don't care
Anonymous: I have already reported the question✌
vironika46: So what
vironika46: Question is correct
vironika46: Answer is copied
Anonymous: yaa so what
vironika46: So your answer will delete

Answers

Answered by reh2113
2
Student life is a life of meditation and penance. This period is concentrated with study and knowledge-thinking. This period is the time to keep away from worldly disorientation. This is a great opportunity for students to provide a solid foundation for their future life. It's time to create character. It is an important time to reinforce your knowledge.

Student life starts from the age of five years. At this time, curiosity begins to grow. Enlightenment grows rapidly. The child gets enrolled in the school and wishes for knowledge. He can see a bigger sky than the world home

looks like . New teachers get a new classmate and new environment. He starts to understand what the society is and how it should be in the society. His knowledge pane has elaborated. She gets attached to textbooks. He begins to taste the knowledge juice, which keeps on nurturing it all the time.

When a student seeking Vidya Arjan holds humility, then her journey becomes easier. Being humble, he goes to the Guru with reverence, then the Guru gives him a scholarly scholarship. They give him policy knowledge and social knowledge, solve the confusion of mathematics and develop an understanding of science within it. He is given knowledge of language so that he can express his thoughts. In this way, student life becomes progressive, achieving success and completeness.

Hindi :-
विद्‌यार्थी जीवन साधना और तपस्या का जीवन है । यह काल एकाग्रचित्त होकर अध्ययन और ज्ञान-चिंतन का है । यह काल सांसारिक भटकाव से स्वयं को दूर रखने का काल है । विद्‌यार्थियों के लिए यह जीवन अपने भावी जीवन को ठोस नींव प्रदान करने का सुनहरा अवसर है । यह चरित्र-निर्माण का समय है । यह अपने ज्ञान को सुदृढ़ करने का एक महत्त्वपूर्ण समय है ।

विद्‌यार्थी जीवन पाँच वष की आयु से आरंभ हो जाता है । इस समय जिज्ञासाएँ पनपने लगती हैं । ज्ञान-पिपासा तीव्र हो उठती है । बच्चा विद्‌यालय में प्रवेश लेकर ज्ञानार्जन के लिए उद्‌यत हो जाता है । उसे घर की दुनिया से बड़ा आकाश दिखाई देने

लगता है । नए शिक्षक नए सहपाठी और नया वातावरण मिलता है । वह समझने लगता है कि समाज क्या है और उसे समाज में किस तरह रहना चाहिए । उसके ज्ञान का फलक विस्तृत होता है । पाठ्‌य-पुस्तकों से उसे लगाव हो जाता है । वह ज्ञान रस का स्वाद लेने लगता है जो आजीवन उसका पोषण करता रहता है ।

विद्‌या अर्जन की चाह रखने वाला विद्‌यार्थी जब विनम्रता को धारण करता है तब उसकी राहें आसान हो जाती हैं । विनम्र होकर श्रद्धा भाव से वह गुरु के पास जाता है तो गुरु उसे सहर्ष विद्‌यादान देते हैं । वे उसे नीति ज्ञान एवं सामाजिक ज्ञान देते हैं, गणित की उलझनें सुलझाते हैं और उसके अंदर विज्ञान की समझ विकसित करते हैं । उसे भाषा का ज्ञान दिया जाता है ताकि वह अपने विचारों को अभिव्यक्त कर सके । इस तरह विद्‌यार्थी जीवन सफलता और पूर्णता को प्राप्त करता हुआ प्रगतिगामी बनता है ।

lavanyagautam88: i want in hindi
Similar questions