Write a letter on topic apne liye jiye to kya jiye in 200 to 250 words in hindi
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आप अपनी जिंदगी किस तरह जीना चाहते हैं?
आप अपनी जिंदगी किस तरह जीना चाहते हैं? हो सकता है, ये सवाल आपको अटपटा लगे, लेकिन है जरूरी, आखिरकार जिंदगी है आपकी! यकीनन, आप जवाब देंगे — जिंदगी तो अच्छी तरह जीने का ही मन है। यह भाव, ऐसी इच्छा, इस तरह का जवाब बताता है कि आपके मन में सकारात्मकता लबालब है, लेकिन यहीं एक अहम प्रश्न उठता है — जिंदगी क्या है, इसके मायने क्या हैं? इस बारे में ‘जीवन का अर्थ’ स्तंभ में हम अनगिन बार चर्चा कर चुके हैं और हर बार यही निष्कर्ष सामने आया है कि दूसरों के भले के लिए जो सांसें हमने जी हैं, वही जिंदगी है पर कोई जीवन अर्थवान कब और कैसे हो पाता है, यह जानना बेहद आवश्यक है। दरअसल, जीवन एक व्यवस्था है। ऐसी व्यवस्था, जो जड़ नहीं, चेतन है। स्थिर नहीं, गतिमान है। इसमें लगातार बदलाव भी होने हैं। जिंदगी की अपनी एक फिलासफी है, यानी जीवन-दर्शन। सनातन सत्य के कुछ सूत्र, जो बताते हैं कि जीवन की अर्थ किन बातों में है। ये सूत्र हमारी जड़ों में हैं — पुरातन ग्रंथों में, हमारी संस्कृति में, दादा-दादी के किस्सों में, लोकगीतों में। जीवन के मंत्र ऋचाओं से लेकर संगीत के नाद तक समाहित हैं। हम इन्हें कई बार समझ लेते हैं, ग्रहण कर पाते हैं तो कहीं-कहीं भटक जाते हैं और जब-जब ऐसा होता है, जिंदगी की खूबसूरती गुमशुदा हो जाती है। जीवन की गाड़ी सांसों की पटरी पर सरपट दौड़ती रहे, इसकी सीख भारतीय मनीषा में अच्छी तरह से दी गई है। विशिष्टाद्वैत दर्शन में समझाया गया है कि चित् यानी आत्म और अचित् यानी प्रकृति तव ईश्वर से अलग नहीं है, बल्कि उसका ही विशिष्ट रूप है। आस्थावान लोग इस दार्शनिक बिंदु से अपनी उपस्थिति और महत्व निर्धारित करेंगे, जबकि शैव दर्शन में शिव को पति मानते हुए जीवन को पशु अवस्था में माना गया और पाश यानी बंधन की स्थिति समझाई गई है। यहां शिव की कृपा से बंधन की समाप्ति और ‘शिवत्व’ की प्राप्ति ही मुक्तिदायी बताई गई है। यह दो उदाहरण भर हैं। दर्शन की इन धाराओं में प्रभु और प्रकृति और बंधन व मुक्ति के संदर्भ समझे जा सकते हैं। हालांकि जिंदगी जीने के नुस्खे तरह-तरह के हैं और दर्शन, यानी सत्य के रूप भी बहुरंगी हैं। चार्वाक का दर्शन ही देखिए। वे इसी जगत और जीवन को सबसे अहम बताते हैं। चार्वाक स्वर्ग और नर्क को खारिज करते हुए, वेदों की प्रामाणिकता पर भी सवाल उठाते हैं और मानते हैं कि कोई अमर आत्मा नहीं होती। आस्थावान लोगों के लिए चार्वाक का दर्शन थोड़ा विचलित करने वाला हो सकता है। वे पृथ्वी, जल, वायु और अग्नि जैसे चार महाभूतों से हमारी देह बनने के उदाहरण देते हैं और बताते हैं कि शरीर यहीं नष्ट भी हो जाता है। इन तर्को के साथ चार्वाक की यह बात थोड़ी दिलचस्प भी है — ‘यावज्जीवेत् सुखं जीवेत् ऋणं कृत्वा घृतं पिबेत्’, यानी जब तक जियो, सुख से जियो, कर्ज लेकर घी पियो..। तो देखा आपने। जीवन जीने के विविध तरीके, बहुतेरे सत्य और कई रास्ते हमारे सामने हैं। ठीक ऐसे ही, जैसे जिंदगी एक तार पर नहीं चलती। समरेखा पर उम्र नहीं गुजारी जा सकती। हाथ की सब अंगुलियां एक बराबर नहीं होतीं, ऐसे ही जीवन का सत्य भी एक सा नहीं होता। अब प्रश्न वही फिर से उठता है, फिर जीवन के लिए आदर्श क्या है। कौन-सा सत्य? कौन-सा दर्शन? इसका जवाब एक ही है — जिंदगी का वह रास्ता, जो आपके मन, तन को सकारात्मक ऊर्जा से भरपूर रखे। और यही नहीं, अपने लिए तो कोई पशु भी जी लेता है, जीवन का ऐसा ही पथ श्रेयष्कर है, जो विराट मानव समाज के लिए सुखद और मंगलकारी हो। दर्शन और जीवन की अर्थ तभी है, जब हम इसमें उलझें नहीं, हमारी जिंदगी की गुत्थियां सुलझाते हुए दिव्य मानव बनने की ओर चल पाएं। आप ऐसा करेंगे, यही उम्मीद!
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