Hindi, asked by moitrayee464, 3 months ago

write a long essay on "chatra aur anushashan"​

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Answered by Gazanfar0726
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Write the omitted words man is basically animal the instinct of fighting is

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Answered by Anonymous
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छात्र जीवन में अनुशासन बहुत आवश्यक है। अनुशासनयुक्त वातावरण बच्चों के विकास के लिए नितांत आवश्यक है। बच्चों में अनुशासनहीनता उन्हें आलसीए कामचोर और कमज़ोर बना देती है। वे अनुशासन में न रहने के कारण बहुत उद्दंड हो जाते हैं। इससे उनका विकास धीरे होता है। एक बच्चे के लिए यह उचित नहीं है। अनुशासन में रहकर साधारण से साधारण बच्चा भी परिश्रमी बुद्धिमान और योग्य बन सकता है। समय का मूल्य भी उसे अनुशासन में रहकर समझ में आता हैए क्योंकि अनुशासन में रहकर वह समय पर अपने हर कार्य को करना सीखता है। जिसने अपने समय की कद्र की वह जीवन में कभी परास्त नहीं होता है।

आज के भागदौड़ वाले जीवन में माता.पिता के पास बच्चों की देखभाल के लिए प्राप्त समय नहीं है। बच्चे घर में नौकरों या क्रैच में महिलाओं द्वारा संभाले जा रहे हैं। माता.पिता की छत्र.छाया से निकलकर ये बच्चे अनुशासन में रहने के आदि नहीं हैं। विद्यालयों का वातावरण भी अब अनुशासनयुक्त नहीं है। इसका दुष्प्रभाव यह पड़ रहा है कि बच्चों के अंदर अनुशासनहीनता बढ़ रही है। वह उद्दंड और शैतान हो रहे हैं। दूसरों की अवज्ञा व अवहेलना करना उनके लिए आम बात है। परिवार के छोटे होने के कारण भी बच्चों की देखभाल भलीभांति नहीं हो पा रही है। माता.पिता उनकी हर मांग को पूरा कर रहे हैं। इससे छात्रों में स्वच्छंदता का विकास होने लगा है और वे अनुशासन से दूर होने लगे हैं। अनेक आपराधिक व असभ्य घटनाओं का जन्म होने लगा है। अल्पवयस्क छात्र-छात्राएं अनेक गलत कार्यों में संलग्न होने लगे हैं।

अत: हमें चाहिए कि बच्चों को प्यार व दुलार के साथ अनुशासन में रखें। जैसा कि कहा भी गया है कि ”अति की भली न वर्षा, अति की भली न धूप अर्थात अति हमेशा खतरनाक एवं नुकसानदेह होता है। इसलिए अभिभावकों को बच्चों के साथ सख्ती के साथ-साथ बच्चों को समझाना चाहिए। शिक्षकों का सही मार्गदर्शन भी छात्र-छात्राओं में नैतिक एवं भावनात्मक बदलाव तथा जागृति लाता है। अत: अभिभावको तथा शिक्षकों का संयुक्त योगदान बच्चों के विकास हेतू आवश्यक है।

अनुशासन की आवश्यकता जीवन के प्रत्येक प्रहर, प्रत्येक स्थान में है, लेकिन सबसे अधिक आवश्यकता छात्र जीवन में है। आंखों में अनजान स्वप्नों की आशाएं, भुजाओं में सामथ्र्य की असीम महिमा लिए हुए नौजवान छात्र तूफान से टकराने की कुव्वत रखते हैं। शिशु की आंखों में लालसा और स्वप्न थिरकते है पर सामथ्र्य की कमी रहती है। बूढ़ों के पास अनुभव की लाठी रहती है पर वेग और शक्ति के अभाव में वह मात्र सिद्धंात का पुजारी बना रहता है। छात्र-जीवन इन दोनों की संधि पर स्थिर दिवास्वप्नों को साकार करने की साधना का जीवन है। अतः आवश्यकता है कि छात्र नियम और विवके संगत श्रृंखला में रहने की आदत डालें। उनकी सामथ्र्य बिखरकर बर्बाद न हो। ग्रीष्म के तप से झुलसी हुई धरती के प्राण उनकी साधना के बादलों की प्रतीक्षा करते हैं। राष्ट्र अपनी प्रगाति की नौका के लिए सफल कर्णधार की बाट जोहता रहता है; संस्कृति की देवी विकास पथ की ओर दिशा खोजती रहती है और सभ्यता के दुर्ग समर्थ प्रहरी की अपेक्षा रखते हैं; और यह सब कुछ आज के छात्र कर सकते हैं, यदि वे अनुशासन-बद्ध जीवन के पाबन्द बन सकें।

परतंत्रता के दिनों में विद्यार्थियों की ताकत के सही उपयोग का प्रयास हमारे नेताओं ने किया। स्वतंत्रता संगा्रम में बलि देने हेतु हमारे राष्ट्र के नेताओं ने आह्नान का बिगुल फंूका। हथेली पर सिर लेकर असंख्य छात्र स्कूल और काॅलेज से निकल पड़े। गांधी की आंधी में कदम से कदम मिलाकर इन नौजवानों ने वह सब कुछ किया जो परंतत्र देश के जागरूक छात्र कर सकते थे।

दासता की काली रात बीतते ही, स्वतंत्रता के सूर्योदय के साथ हमारे सामने एक विचित्र समस्या आ खड़ी हुई। शानदार परम्परा के वृक्ष पर सुन्दर फूल नहीं, विष फल उग आए हैं। सौंदर्य और सुरभि के बादल कुरूपता और दुर्गंध से विकृत हो उठे। पवित्र और कठोर साधना की पगडण्डी, भ्रमपूर्ण निर्णय और असामाजिक मान्यताओं की गन्दी गलियों में छात्र भटक गए। कल के सेनानी छात्र आज के उच्छृंखल विघार्थी बन गए। आए दिन अध्यापकों से झगड़ना, लड़कियों से छेड़खानी करना, लोगों से बिना बात के उलझ पड़ना तथा अपनी संगठित शक्ति से दहशत पैदा कर देना- यह छात्रों की समय-सारिणी में शामिल है।

अनुशासन भंग करने के अपराध में यदि किसी छात्र को दण्ड मिला तो सारे विद्यालय में हड़ताल हो जाएगी। जिन हाथों ने अपने रक्त से सींच-सींच कर स्वतंत्रता के सुकुमार पौधे को पुष्ट किया था वही अब अपने कुरूप हाथों से उसे उखाड़ फेंकने के लिए व्यग्र हैं। सभ्यता के दुर्ग को आज अपने प्रहरी से ही डर लगने लगा है। आज के प्रायः अधिकांश छात्र उच्छृंखल, विवेकहीन, अनुशासन का विरोध करने वाले, निरंकुश और असामाजिक व्यवहारों के प्रतीक बन गए हैं। छात्रों के बीच अनुशासनहीनता का भाव आज राष्ट्रव्यापी आन्दोलन की तरह व्यापक हो चला है। आए दिन समाचार पत्रों में हम पढ़ते हैं तथा आए दिन हमारी आंखों के सामने चलते-फिरते दृश्यों की तरह घटनाएं गुजरती रहती हैं।

एक सामान्य आदर्श और लक्ष्य के अभाव में आज छात्रों की साधना में विश्रृंखलता आ गई है। अनुशासन के महŸव से शक्ति का संयम होता है, उसका दुरूपयोग नहीं होता। राष्ट्र के नेता ठोस रचनात्मक कार्य की कोई भी योजना उपस्थित नहीं कर पाए हैं, जिसकी सिद्धि हेतू छात्रों की सामूहिक शक्ति का उचित उपयोग किया जा सके।

अनुशासनहीनता का दूसरा प्रमुख कारण है छात्रों के पढ़ने व रहने आदि की सुविधाओं का अभाव। 50-60 वर्ष पूर्व काॅलेज की स्थापना 500 छात्रों को ध्यान में रखकर की गई थी और उसी परिधि और घेरे में 2000 से भी ऊपर विद्यार्थी पढ़ते हैं। उनकी सुविधाएं नहीं बढ़ पाई हैं।

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