write a nibandh in Hindi on chalchitra cinema
drimmer87:
hi navneet
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आधुनिक युग में जीवन की व्यस्तता अधिक है । यह व्यस्तता मानव के तन को थका देती है । तन की थकान से मन भी थक जाता है क्योंकि तन और मन का आपस में घनिष्ठ संबंध है ।
मन के आनन्दित होते ही कार्य करने की इच्छा प्रबल हो उठती है, कार्य की समाप्ति पर मनोरंजन की इच्छा विज्ञान ने हमें आनन्द के अनेक आधुनिक साधन दिए हैं जिनमें से एक है- चलचित्र । अमेरिका के वैज्ञानिक टामस एल्वा एडिसन ने सन् 1894 में चलचित्र का आविष्कार किया । उस समय मूक फिल्में ही बनती थीं । कुछ वर्षों बाद फिल्म में वाणी देने में डाडस्टे नामक वैज्ञानिक ने सफलता प्राप्त की ।
अमेरिका से इंग्लैण्ड होता हुआ चलचित्र भारत में पहुँचा । भारत को चलचित्रों की दुनिया में प्रवेश कराने वाले ‘दादा साहब फाल्के’ थे । जिन्होंने सन् 1913 में पहली भारतीय फिल्म ‘हरिश्चन्द्र’ बनाई थी जो मूक थी । बोलती फिल्म ‘आलम आरा’ सन् 1931 में बम्बई में बनी थी । आज हालीवुड के पश्चात् भारत फिल्म बनाने में दूसरा स्थान रखता है ।
सिनेमा में पहले तस्वीरें श्वेत-श्याम होती थी । लेकिन आजकल रंगीन फिल्म बनने लगी हैं, जो देखने में आकर्षक लगती हैं और दर्शकों को अपनी ओर खींच लेती हैं । इन रंगीन फिल्मों को घर बैठे ही रंगीन टी॰वी॰ पर देख सकते हैं ।
फिल्में पहले धार्मिक और पौराणिक बनीं । धीरे-धीरे सामाजिक और आर्थिक समस्याओं को दर्शानें वाली फिल्मों का निर्माण हुआ । सुजाता, अछूत कन्या, तपस्या, छत्रपति शिवाजी, जागृति आदि फिल्में सामाजिक समस्याओं और राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत थी । इसके पश्चात् इनका क्षेत्र विस्तृत होता गया और सभी विषय इसकी परिधि में आ गए ।
चलचित्र शिक्षा का प्रमुख साधन है । सुनने और पढ़ने की अपेक्षा किसी विषय को देखकर समझना सरल है । ऐतिहासिक, भौगोलिक, प्राकृतिक, वैज्ञानिक, कृषि सम्बन्धी आदि विषयों की जानकारी चलचित्रों के माध्यम से दर्शकों को दी जाती हैं ।
छोटे-छोटे वृत्त चित्रों से नैतिक शिक्षा दी जाती है । भारत की अधिकतर जनता अनपढ़ है । यदि उसे वैज्ञानिक कार्यक्रमों की जानकारी चलचित्रों के माध्यम से दी जाएगी तो वह शीघ्र समझ जाएगी । राष्ट्रभाषा हिन्दी को लोकप्रिय बनाने में भी चलचित्रों का बहुत बड़ा स्थान है ।
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मन के आनन्दित होते ही कार्य करने की इच्छा प्रबल हो उठती है, कार्य की समाप्ति पर मनोरंजन की इच्छा विज्ञान ने हमें आनन्द के अनेक आधुनिक साधन दिए हैं जिनमें से एक है- चलचित्र । अमेरिका के वैज्ञानिक टामस एल्वा एडिसन ने सन् 1894 में चलचित्र का आविष्कार किया । उस समय मूक फिल्में ही बनती थीं । कुछ वर्षों बाद फिल्म में वाणी देने में डाडस्टे नामक वैज्ञानिक ने सफलता प्राप्त की ।
अमेरिका से इंग्लैण्ड होता हुआ चलचित्र भारत में पहुँचा । भारत को चलचित्रों की दुनिया में प्रवेश कराने वाले ‘दादा साहब फाल्के’ थे । जिन्होंने सन् 1913 में पहली भारतीय फिल्म ‘हरिश्चन्द्र’ बनाई थी जो मूक थी । बोलती फिल्म ‘आलम आरा’ सन् 1931 में बम्बई में बनी थी । आज हालीवुड के पश्चात् भारत फिल्म बनाने में दूसरा स्थान रखता है ।
सिनेमा में पहले तस्वीरें श्वेत-श्याम होती थी । लेकिन आजकल रंगीन फिल्म बनने लगी हैं, जो देखने में आकर्षक लगती हैं और दर्शकों को अपनी ओर खींच लेती हैं । इन रंगीन फिल्मों को घर बैठे ही रंगीन टी॰वी॰ पर देख सकते हैं ।
फिल्में पहले धार्मिक और पौराणिक बनीं । धीरे-धीरे सामाजिक और आर्थिक समस्याओं को दर्शानें वाली फिल्मों का निर्माण हुआ । सुजाता, अछूत कन्या, तपस्या, छत्रपति शिवाजी, जागृति आदि फिल्में सामाजिक समस्याओं और राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत थी । इसके पश्चात् इनका क्षेत्र विस्तृत होता गया और सभी विषय इसकी परिधि में आ गए ।
चलचित्र शिक्षा का प्रमुख साधन है । सुनने और पढ़ने की अपेक्षा किसी विषय को देखकर समझना सरल है । ऐतिहासिक, भौगोलिक, प्राकृतिक, वैज्ञानिक, कृषि सम्बन्धी आदि विषयों की जानकारी चलचित्रों के माध्यम से दर्शकों को दी जाती हैं ।
छोटे-छोटे वृत्त चित्रों से नैतिक शिक्षा दी जाती है । भारत की अधिकतर जनता अनपढ़ है । यदि उसे वैज्ञानिक कार्यक्रमों की जानकारी चलचित्रों के माध्यम से दी जाएगी तो वह शीघ्र समझ जाएगी । राष्ट्रभाषा हिन्दी को लोकप्रिय बनाने में भी चलचित्रों का बहुत बड़ा स्थान है ।
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