Hindi, asked by nidhishukla40, 9 months ago

write a paragraph on बुद्धि और विकास in Hindi ​

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Answered by itzcutie22
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Here are ur answer dear

पृथ्वी के सम्पूर्ण प्राकृतिक जीवन का सर्वांगीण शोषण करने वाले त्रिविध प्रदूषणों का स्वरूप हमने यहाँ तक देखा। इस प्राकृतिक जीवन में मानव के साथ पशु-पक्षी, कीट, वृक्ष, जल-स्थल-वायु-आकाश-इन सभी से मिलकर बना हुआ पर्यावरण सहस्त्रों वर्षों से सुरक्षित और सन्तुलित रहता आया है। उसकी निर्मल और निरामय अवस्था विकास की विकृत अवधारणा के कारण नींव से लेकर ऊपर तक हिल गई है।

पृथ्वी के सम्पूर्ण प्राकृतिक जीवन का सर्वांगीण शोषण करने वाले त्रिविध प्रदूषणों का स्वरूप हमने यहाँ तक देखा। इस प्राकृतिक जीवन में मानव के साथ पशु-पक्षी, कीट, वृक्ष, जल-स्थल-वायु-आकाश-इन सभी से मिलकर बना हुआ पर्यावरण सहस्त्रों वर्षों से सुरक्षित और सन्तुलित रहता आया है। उसकी निर्मल और निरामय अवस्था विकास की विकृत अवधारणा के कारण नींव से लेकर ऊपर तक हिल गई है।मनुष्य के अहं-केन्द्रित व्यवहार का परिणाम अखिल दुनिया को भुगतना पड़ रहा है। स्वयं के साथ सबका विनाश करवाने वाले भस्मासुर की कहानी संकट परम्परा को निमंत्रित करने वाले आधुनिक विकास के नाम से मानो मूर्तिमान हो गई है। ऐसे विकास के आधारभूत मूल्य कौन से हैं, यह देखना भी शिक्षाप्रद होगा।

पृथ्वी के सम्पूर्ण प्राकृतिक जीवन का सर्वांगीण शोषण करने वाले त्रिविध प्रदूषणों का स्वरूप हमने यहाँ तक देखा। इस प्राकृतिक जीवन में मानव के साथ पशु-पक्षी, कीट, वृक्ष, जल-स्थल-वायु-आकाश-इन सभी से मिलकर बना हुआ पर्यावरण सहस्त्रों वर्षों से सुरक्षित और सन्तुलित रहता आया है। उसकी निर्मल और निरामय अवस्था विकास की विकृत अवधारणा के कारण नींव से लेकर ऊपर तक हिल गई है।मनुष्य के अहं-केन्द्रित व्यवहार का परिणाम अखिल दुनिया को भुगतना पड़ रहा है। स्वयं के साथ सबका विनाश करवाने वाले भस्मासुर की कहानी संकट परम्परा को निमंत्रित करने वाले आधुनिक विकास के नाम से मानो मूर्तिमान हो गई है। ऐसे विकास के आधारभूत मूल्य कौन से हैं, यह देखना भी शिक्षाप्रद होगा।इस विकास का प्रथम मूल्य है : धरती के जीवन का केन्द्र है मानव। मनुष्य की सुख-सुविधा के लिये शेष सारी सृष्टि है। इसलिये अपने उपभोग के खातिर जीव-जन्तुओं के सहित समूचा अस्तित्व ही नदी, सागर, पर्वत, वृक्ष, खनिज सम्पदा, जमीन, आसमान अपने लिये मनुष्य इस्तेमाल कर सकता है। इनका शोषण करने का, इन्हें नष्ट करने का अधिकार भी मनुष्य को है। स्व-पराक्रम से मानव अपनी बुद्धि का अमर्याद विकास कर सकता है। अपनी बुद्धि शक्ति के बल पर अखिल विश्व के प्राकृतिक आविष्कारों पर वह विजय प्राप्त कर सकता है।

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