Write a samvad between two friends on the topic :-
"मजहब नहीं सिखाता आपस में भेदभाव"
Please tell fast.
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मैं वैली स्कूल में आई. सी. एस. ई में भी हिंदी पढ़ाती हूँ । इस बोर्ड के हिंदी पेपर में कहावत के ऊपर एक निबंध पूछा जाता है । बच्चों से कई सारी कहावतों पर निबंध लिखाना मुश्किल है इसलिए हर छात्र-छात्रा को अलग-अलग कहावत दी जाती है जिस पर वे निबंध लिखते हैं और फिर कक्षा में सब छात्र-छात्राएँ अपने लिखे निबंध पढ़ते हैं जिससे सबको कहावतें भी समझ आ जाएँ और परीक्षा में उन्हें कोई मुश्किल न हो । इन कहावतों पर लिखे निबंधों को छात्र-छात्रों को सुनाया जा सकता है या उन्हें पढ़ने के लिए दिया जा सकता है जिससे उन्हें कहावतों का अर्थ अच्छी तरह से समझ आ सके । हर कहावत के आगे वर्ष लिखा गया है , इसका मतलब है कि यह कहावत बोर्ड में उस वर्ष में पूछी गई है । आशा है कि यह सामग्री अध्यापकों और अध्यापिकाओं के साथ-साथ छात्र-छात्राओं के लिए भी उपयोगी होगी । मज़हब नहीं सिखाता, आपस में बैर रखना (पृथ्वी) 1999, 2000
राम और रहीम अच्छे दोस्त थे । वे दोनों एक ही मोहल्ले में रहते थे । हर दिन वे बाग में खेलते थे । उन दोनों की मित्रता जीवन भर के लिए चली ।
एक दिन जब बहुत बारिश हो रही थी , बाग में कोई नहीं खेल रहा था और बहुत अंधेरा था । राम और रहीम अपने-अपने घरों में थे । खिड़की से राम देख रहा था और बारिश को कोस रहा था क्योंकि वह रहीम से न मिल सका । राम अपनी माँ से शिकायत कर रहा था कि ,"माँ, बारिश को रोको, यह सही नहीं है।" राम की माँ को राम की हठ बिल्कुल भी अच्छी नहीं लगी । राम की माँ को लगा कि उसमेम यह शैतानी और बुरी आदतें उस मुसलमान बच्चे, रहीम से ही आ रही थीं ।
बारिश खत्म हो गई थी और सब बच्चे वहाँ खुशी से इधर-उथर खेल रहे थे । राम भी आया और सब के साथ क्रिकेट खेल रहा था । राम और रहीम दोनों अलग-अलग टीं में थे । खेल अच्छी तरह से चला और किसी को चोट नहीं लगी ।
कुछ दिनों बाद हिन्दुओं और मुसलमानों में दंगा हुआ । यह दंगा तीन हफ्ते तक चलता रहा । हर दिन बहुत से आदमी बुरी तरह से पीटे गए । यह दंगा इतना गंभीर था कि लोगों को अपने घर में रहने की सलाह दी गई थी । पुलिस दंगे की जगहों पर पहरा दे रही थी । जब दंगा चल रहा था, उसी समय दगई राम और रहीम के मोहल्ले में भी दंगा करने आए । सब लोग जो वहाँ रहते थे, वे हिन्दू थे सिवा रहीम के परिवार और दंगई मुसलमान थे । उस वक्त राम, रहीम के घर में था । राम के माँ-बाप परेशान थे क्योंकि वे बाहर नहीं जा सकते थे ।
एकाएक राम की माँ को याद आया कि राम, रहीम के घर है और उसके माता-पिता गैरज़िम्मेदार हैं । राम की ठीक से देखभाल नहीं करेंगे । पर राम की माँ के पास कोई और चारा भी नहीं था । मन मसोसकर वह दंगईयों के जाने का इंतज़ार करने लगी ।
रात को रहीम के माँ-बाप ने राम को सही सलामत घर वापिस पहुँचा दिया । राम की माँ ने उन्हें गलत समझा था । वह पछताई और उसकी आँखों में आँसू आ गए । बरबस ही उसके मुँह से निकला-"मज़हब नहीं सिखाता, आपस में बैर रखना ।"
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आज के सन्दर्भ में यह पंक्ति ‘मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना’ अति प्रासांगिक हो जाता है. जहाँ एक धर्म के लोग दूसरे धर्म के प्रति असहिष्णु होते जा रहे हैं. क्या उनके ऐसा करने से हमारे देश की गंगा – जमुनी तहजीब बच पायेगी? यह एक विचारनीय प्रश्न है? संसार में बहुत सारे धर्म हैं. सभी धर्म अपनी-अपनी मान्यताओ, आस्थाओं विश्वासों, सिधान्तों एवं जीवन-दर्शन पर आधारित हैं. इस प्रकार इन धर्मों में अनेकरूपता दृष्टिगोचर होती है, परन्तु यदि गौर से देखा जाए तो सभी धर्मों के मूल में अदभुत साम्य पाया जाता है. कुछ बातों एवं सिधान्तों में ये अवश्य अलग हो सकते हैं, पर वे इनके बाह्य स्वरूप हैं. जैसे-कोई धर्म मूर्ति-पूजा का समर्थन करता है तो कोई विरोध, कोई पुनर्जन्म के सिधांत में आस्था रखता है तो अन्य नहीं, परन्तु संसार के सभी धर्म नैतिकता का ही दूसरा नाम हैं.
संसार के विभिन्न धर्म हमें अन्धकार से प्रकाश की ओर, अज्ञान से ज्ञान की ओर, बुराई से अच्छाई की ओर तथा पाप से पुण्य की ओर ले जाते हैं, फिर कोई भी धर्म वैर भाव को उत्पन्न करने वाला या बढ़ाने वाला कैसे हो सकता है. यदि कोई धर्म वैर, हिंसा, क्रूरता, घृणा, वैमनस्य अथवा शत्रुता की शिक्षा देता है, तो फिर उसे धर्म कहा ही नहीं जा सकता है. जिस प्रकार हम किसी स्थान पर पहुँचने के लिए कई मार्गों से होकर जा सकते हैं, उसी प्रकार जीवन में अच्छाई और पवित्रता लाने के लिए किसी भी धर्म का आश्रय ले सकते हैं. कहा भी गया है:
पथ का हो बंटवारा, मंजिल को तुम मत बांटो.
किरणों का हो बंटवारा, सूरज को तुम मत बांटो.
इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि आजकल धर्म के नाम पर बैर, घृणा तथा हिंसा की घटनाएँ बढ़ रही हैं, पर इनके पीछे स्वार्थी एवं मदांध धर्माचार्यों का हाथ होता है. हमें याद रखना चाहिए कि धर्म व्यक्ति से जोड़ता है, तोड़ता नहीं. इसलिए इकबाल ने कहा था ‘मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना’. हमें अपने देश की हजारों साल पुरानी साझी संस्कृति को बचाकर रखना होगा. इसके लिये सबको मिलकर प्रयास करना होगा तभी हमारा देश और यह विश्व मनुष्यों के लिये एक बेहतर स्थान बना रहेगा.