Write a short story on a small gril
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if u like give me brainly
रमा दीदी का बात करने का तरीक़ा शुरू से ही इतना प्रभावशाली रहा कि उनसे प्रभावित होकर मैं उन्हें ही अपना आदर्श मानने लगी. रमा दीदी की शादी के दो साल बाद जब मेरे विवाह की भी चर्चा होने लगी तो रमा दीदी के रंग में रंगी मैं भी बाऊजी से यही कहने लगी कि मेरी शादी भी रमा दीदी की तरह बड़े शहर में करें. एक-दो वर्ष तक तो बाऊजी ने भी मेरी इच्छानुसार बड़े शहर में लड़का ढूंढ़ने का भरसक प्रयास किया, पर कहीं बात नहीं बन पाई.
आज सुबह जब मुम्बई से लौटने के बाद विभा ने बतलाया कि दो-तीन दिन में रमा दीदी अपनी बेटी नेहा को लेकर हमारे पास आने वाली हमै, मुझे यक़ीन नहीं हो रहा था. हमेशा छोटे शहर और वहां के लोगों को तुच्छ और हीन समझनेवाली रमा दीदी ने अचानक हमारे पास आने का प्रोग्राम कैसे बना लिया, मैं समझ नहीं पा रही थी.
रमा दीदी के आने की बात सुनकर मैं उनके स्वागत की तैयारियों में व्यस्त हो गई. तैयारियां करते-करते ही मैं रमा दीदी के ख़यालों में खो गई.
रमा दीदी मेरे सगे ताऊजी की लड़की थी. संयुक्त परिवार होने के कारण हमारा बचपन भी साथ-साथ ही बीता, पर रमा दीदी का व्यक्तित्व सदा ही मुझ पर हावी रहा. ताऊजी का घर के बड़े बेटे होने के कारण पूरे परिवार पर वर्चस्व रहा. ताऊजी के रौब से मेरे पिताजी भी हमेशा आक्रान्त रहे. उनके लिए अपने बड़े भाई की किसी भी बात का विरोध करना तो दूर, उनके सामने ऊंची आवाज़ में बोलने की भी हिम्मत नहीं होती थी. अपने बड़े होने का फ़ायदा भी ताऊजी ने ख़ूब उठाया. चाहे घर का व्यापार हो, बच्चों की पढ़ाई-लिखाई का प्रश्न अथवा परिवार में किसी विषय पर निर्णय करने का प्रसंग, सब कुछ ताऊजी की मर्ज़ी से ही होता था. ताऊजी ने अपने बच्चों को तो पढ़ने के लिए बड़े शहरों के महंगे हॉस्टल में भेजा, पर जब हमारी बारी आई तो यह कहकर नहीं जाने दिया कि अब अपने यहां भी अच्छे स्कूल खुल गये हैं, तो बेकार ही इन्हें बाहर भेजने की क्या ज़रूरत?
रमा दीदी देखने में तो सुन्दर थीं ही, फिर उस ज़माने में इंग्लिश मीडियम स्कूल में पढ़ने और हॉस्टल में रहने के कारण स्मार्ट और दबंग भी बहुत हो गई थीं. बड़े होने पर उनकी शादी की चर्चा होने लगी, तो उन्होंने ताऊजी को स्पष्ट कह दिया कि वे किसी भी क़ीमत पर छोटे शहर में शादी नहीं करेंगी. वह शुरू से ही ताऊजी की विशेष लाड़ली थीं, अत: ताऊजी ने उनकी इच्छानुसार दौड़-धूप कर उनका संबंध मुम्बई में तय कर दिया.
रमा दीदी के ससुरालवाले आर्थिक रूप से बहुत सम्पन्न थे. सुनिल जीजाजी का अपना जवाहरात का व्यवसाय था. रमा दीदी की शादी ख़ूब धूमधाम से सम्पन्न हुई. ताऊजी ने भी अपनी बेटी की शादी में दिल खोलकर ख़र्च किया. मुम्बई में शादी होने के बाद तो रमा दीदी को इतना गुरूर हो गया कि वे हमें स्वयं से और भी तुच्छ व कमतर समझने लगीं. अक्सर हमारा मज़ाक उड़ाते हुए कहतीं, “भई स्मॉल टाउन में रहने से आदमी की सोच भी बहुत पिछड़ जाती है. हमारे मुम्बई की तो बात ही अलग है, वहां के लोग बहुत मॉडर्न और एडवांस हैं. छोटे शहरों में तो जीवन कछुए की ऱफ़्तार से रेंगता है.”
रमा दीदी का बात करने का तरीक़ा शुरू से ही इतना प्रभावशाली रहा कि उनसे प्रभावित होकर मैं उन्हें ही अपना आदर्श मानने लगी. रमा दीदी की शादी के दो साल बाद जब मेरे विवाह की भी चर्चा होने लगी तो रमा दीदी के रंग में रंगी मैं भी बाऊजी से यही कहने लगी कि मेरी शादी भी रमा दीदी की तरह बड़े शहर में करें. एक-दो वर्ष तक तो बाऊजी ने भी मेरी इच्छानुसार बड़े शहर में लड़का ढूंढ़ने का भरसक प्रयास किया, पर कहीं बात नहीं बन पाई.
आज सुबह जब मुम्बई से लौटने के बाद विभा ने बतलाया कि दो-तीन दिन में रमा दीदी अपनी बेटी नेहा को लेकर हमारे पास आने वाली हमै, मुझे यक़ीन नहीं हो रहा था. हमेशा छोटे शहर और वहां के लोगों को तुच्छ और हीन समझनेवाली रमा दीदी ने अचानक हमारे पास आने का प्रोग्राम कैसे बना लिया, मैं समझ नहीं पा रही थी.
रमा दीदी के आने की बात सुनकर मैं उनके स्वागत की तैयारियों में व्यस्त हो गई. तैयारियां करते-करते ही मैं रमा दीदी के ख़यालों में खो गई.
रमा दीदी मेरे सगे ताऊजी की लड़की थी. संयुक्त परिवार होने के कारण हमारा बचपन भी साथ-साथ ही बीता, पर रमा दीदी का व्यक्तित्व सदा ही मुझ पर हावी रहा. ताऊजी का घर के बड़े बेटे होने के कारण पूरे परिवार पर वर्चस्व रहा. ताऊजी के रौब से मेरे पिताजी भी हमेशा आक्रान्त रहे. उनके लिए अपने बड़े भाई की किसी भी बात का विरोध करना तो दूर, उनके सामने ऊंची आवाज़ में बोलने की भी हिम्मत नहीं होती थी. अपने बड़े होने का फ़ायदा भी ताऊजी ने ख़ूब उठाया. चाहे घर का व्यापार हो, बच्चों की पढ़ाई-लिखाई का प्रश्न अथवा परिवार में किसी विषय पर निर्णय करने का प्रसंग, सब कुछ ताऊजी की मर्ज़ी से ही होता था. ताऊजी ने अपने बच्चों को तो पढ़ने के लिए बड़े शहरों के महंगे हॉस्टल में भेजा, पर जब हमारी बारी आई तो यह कहकर नहीं जाने दिया कि अब अपने यहां भी अच्छे स्कूल खुल गये हैं, तो बेकार ही इन्हें बाहर भेजने की क्या ज़रूरत?
रमा दीदी देखने में तो सुन्दर थीं ही, फिर उस ज़माने में इंग्लिश मीडियम स्कूल में पढ़ने और हॉस्टल में रहने के कारण स्मार्ट और दबंग भी बहुत हो गई थीं. बड़े होने पर उनकी शादी की चर्चा होने लगी, तो उन्होंने ताऊजी को स्पष्ट कह दिया कि वे किसी भी क़ीमत पर छोटे शहर में शादी नहीं करेंगी. वह शुरू से ही ताऊजी की विशेष लाड़ली थीं, अत: ताऊजी ने उनकी इच्छानुसार दौड़-धूप कर उनका संबंध मुम्बई में तय कर दिया.
रमा दीदी के ससुरालवाले आर्थिक रूप से बहुत सम्पन्न थे. सुनिल जीजाजी का अपना जवाहरात का व्यवसाय था. रमा दीदी की शादी ख़ूब धूमधाम से सम्पन्न हुई. ताऊजी ने भी अपनी बेटी की शादी में दिल खोलकर ख़र्च किया. मुम्बई में शादी होने के बाद तो रमा दीदी को इतना गुरूर हो गया कि वे हमें स्वयं से और भी तुच्छ व कमतर समझने लगीं. अक्सर हमारा मज़ाक उड़ाते हुए कहतीं, “भई स्मॉल टाउन में रहने से आदमी की सोच भी बहुत पिछड़ जाती है. हमारे मुम्बई की तो बात ही अलग है, वहां के लोग बहुत मॉडर्न और एडवांस हैं. छोटे शहरों में तो जीवन कछुए की ऱफ़्तार से रेंगता है.”
sab10:
Thank you for helping me
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