History, asked by Mohammad5523, 1 year ago

Write a story of pratdviraj chohan

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Answered by MahekTarannum
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Pratdviraj chohan was an Indian king from the chahamana dynasty.He ruled Sapadalaksha,the traditional Chahamana territory in present day north western india.He controlled much of the present -day Rajasthan, Haryana and Delhi . some parts of madhya pradesh and uttar pradesh.His capital was located at Ajayameru, although the medival folk legends describe him as the king of India's
political centre Delhi to portray him as a representative of the pre-islamic Indian power.
Answered by anamika91
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Prithviraj Chauhan History in Hindi
prithviraj Chauhan History in Hindi पृथ्वीराज चौहान की जीवनी और इतिहास

Prithviraj Chauhan  पृथ्वीराज  चौहान एक राजपूत राजा थे जिन्होंने 12वी सदी में उत्तरी भारते के दिल्ली और अजमेर साम्राज्यों पर शाशन किया था | पृथ्वीराज चौहान दिल्ली के सिंहासन पर राज करने वाले अंतिम स्वत्रंत हिन्दू शाषक थे | राय पिथोरा के नाम से मशहूर इस राजपूत राजा ने चौहान वंश में जन्म लिया था |पृथ्वीराज चौहान का जन्म 1149 में अजमेर में हुआ था | उनके पिता का नाम सोमेश्वर चौहान और माता का नाम कर्पूरी देवी था |

Early Life of Prithviraj Chauhan पृथ्वीराज चौहान का प्रारम्भिक जीवन

Prithviraj Chauhan पृथ्वीराज चौहान बचपन से ही बहुत बहादुर और युद्ध कला में निपुण थे | उन्होंने बचपन से ही शब्द भेदी बाण कला का अभ्यास किया था जिसमे आवाज के आधार पर वो सटीक निशाना लगाते थे | 1179 में युद्ध में उनके पिता की मौत के बाद चौहान को उत्तराधिकारी घोषित किया गया | उन्होंने दो राजधानियों दिल्ली और अजमेर पर शाषन किया जो उनको उनके नानाजी अक्रपाल और तोमरा वंश के अंगपाल तृतीय ने सौंपी थी | राजा होते हुए उन्होंने अपने साम्राज्य को विस्तार करने के लिए कई अभियान चलाये और एक बहादुर योद्धा के रूप में जाने जाने लगे |  उनके मोहम्मद गौरी के साथ युद्ध की महिमा कनौज के राजा जयचंद की बेटी संयुक्ता के पास पहुच गयी |

जयचंद की ख्याति के दिनों में प्रतिद्वंदी राजपूत वंश ने खुद को दिल्ली में स्थापित कर लिया था | उस वक़्त दिल्ली पर पृथ्वीराज चौहान का राज था जो एक बहादुर और निडर व्यक्ति था | लगातार सैन्य अभियानों के चलते पृथ्वीराज ने अपना साम्राज्य राजस्थान के साम्भर , गुजरात और पूर्वी पंजाब तक फैला दिया था | उनकी लगातार बढ़ती ख्याति को देखकर शक्तिशाली शाषक जयचंद उससे इर्ष्या करने लग गया था |Prithviraj Chauhan  पृथ्वीराज के बहादुरी के किस्से देश में दूर दूर तक फ़ैल गये और वो आमजन में बातचीत का  मुख्य हिस्सा बन गये थे |

Prithviraj Chauhan and Sanyogita Love Story पृथ्वीराज चौहान और संयोगिता की प्रेम गाथा

पृथ्वीराज की बहादुरी के किस्से जब जयचंद की बेटी संयोगिता के पास पहुचे तो मन ही मन वो पृथ्वीराज से प्यार करने लग गयी और उससे गुप्त रूप से काव्य पत्राचार करने लगी | संयोगिता के अभिमानी पिता जयचंद को जब इस बात का पता चला तो उन्होंने अपनी बेटी और उसके प्रेमी पृथ्वीराज को सबक सिखाने का निश्चय किया |

जयचंद ने अपनी बेटी का स्वयंवर आयोजित किया जिसमे हिन्दू वधु को अपना वर खुद चुनने की अनुमति होती थी और वो जिस भी व्यक्ति के गले में माला डालती वो उसकी रानी बन जाती | जयचंद ने देश के सभी बड़े और छोटे राजकुमारों को शाही स्वयंवर में साम्मिलित होने का न्योता भेजा लेकिन उसने जानबुझकर पृथ्वीराज को न्योता नही भेजा | यही नही बल्कि पृथ्वीराज को बेइज्जत करने के लिए द्वारपालों के स्थान पर पृथ्वीराज की मूर्ती लगाई |

Prithviraj Chauhan पृथ्वीराज को जयचंद की इस सोची समझी चाल का पता चल गया और उसने अपनी प्रेमिका सयोंगिता को पाने के लिए एक गुप्त योजना बनाई | स्वयंवर के दिन सयोंगिता सभा में जमा हुए सभी राजकुमारों के पास से गुजरती गयी | उसने सबको नजरंदाज करते हुए मुख्य द्वार तक पहुची और उसने द्वारपाल बने पृथ्वीराज की मूर्ति के गले में हार डाल दिया | सभा में एकत्रित सभी लोग उसके इस फैसले को देखकर दंग रह गये क्योंकि उसने सभी राजकुमारों को लज्जित करते हुए एक निर्जीव मूर्ति का सम्मान किया |

लेकिन जयचंद को अभी ओर झटके लगने बाकि थे | पृथ्वीराज उस मूर्ति के पीछे द्वारपाल के वेश में खड़े थे और उन्होंने धीरे से संयोगिता को उठाया और अपने घोड़े पर बिठाकर द्रुत गति से अपनी राजधानी दिल्ली की तरफ चले गये |जयचंद और उसकी सेना ने उनका पीछा किया और परिणामस्वरूप उन दोनों राज्यों के बीच 1189 और 1190 में भीषण युद्ध हुआ जिसमे दोनों सेनाओ कको काफी नुकसान हुye
Prithviraj Chauhan Grave and Legacy पुथ्वीराज चौहान की अफ़ग़ानिस्तान में कब्र और उसकी मिटटी भारत लाना

पृथ्वीराज को अफ़ग़ानिस्तान में दफनाया गया और कई बार उनकी कब्र को भारत लाने की याचिका की | अफ़ग़ानिस्तान में एक परम्परा के अनुसार गौरी की कब्र को देखने वाले लोग पहले चौहान की कब्र को चप्पलो से मारते है उस पर कूदते है और फिर गौरी की कब्र देखने को प्रवेश करते है | तिहाड़ जेल में कैद फूलन देवी की हत्या करने वाले शेर सिंह राणा ने को जब इस बात का पता चला तो उसने एशिया की सबसे उच्चतम सुरक्षा वाली जेल से भागकर भारत के सम्मान को फिर से भारत में लाने के लिए गयेशेर सिंह राणा अपने राज की कब्र की खोज में अफ़ग़ानिस्तान निकल पड़ा लेकिन उसे कब्र की जगह के बारे में अनुमान कम था | उसने तो केवल कब्र के अपमानित होने की बात सूनी थी | वो कांधार , काबुल और हेरत होता हुआ अंत में घजनी पहुच गया जहा पर मुहम्मद गौरी की कब्र का उसे पता चल गया | राणा को स्थानीय लोगो को पाकिस्तान का बताकर गौरी के कब्र को बहाल करने की बात कही | अपनी चालबाजी से उसने चौहान की कब्र को खोदकर मिटटी इक्कठी की और भारत लेकर आया | उसकी इस उपलब्धि को फोटो और वीडियो में भी रिकॉर्ड किया  गया

2005 में राणा भारत आया और उसने  कुरियर से चौहान की अस्थिया इटावा में भेजी और स्थानीय नेताओ की मदद से एक उत्सव आयोजित किया | राणा की माँ सात्वती देवी मुख्य मेहमान थी और उन्होंने अपने बेटे को भारत का गर्व भारत लाने पर आशीर्वाद दिया |  भारतीय सरकार ने इसके बाद अफगानिस्तान में चौहान की कब्र को हटाने का आदेश दिया और इस महान सम्राट की सारी अस्थिया भारत को स्म्म्नापुर्वक सौंपने की बात कही | अफ़ग़ानिस्तान ने भारत की बात स्वीकार कर ली और वैदिक पूजा के साथ महान हिन्दू राज पृथ्वी राज चौहान का अंतिम संस्कार किया गया |

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