write about mira bhai in hindi
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मीरा बाई भगवान श्रीकृष्ण की सबसे बड़ी भक्त मानी जाती है। मीरा बाई ने जीवनभर भगवान कृष्ण की भक्ति की और कहा जाता है कि उनकी मृत्यु भी भगवान की मूर्ति में समा कर हुई थी। मीरा बाई की जयंती पर कोई ऐतिहासिक रिकॉर्ड तो नहीं हैं, लेकिन हिंदू चंद्र कैलेंडर के अनुसार, शरद पूर्णिमा के दिन को मीराबाई की जयंती के रूप में मनाया जाता है। मीरा बाई के जीवन से जुड़ी कई बातों के को आज भी रहस्य माना जाता है। गीताप्रेस गोरखपुर की पुस्तक भक्त-चरितांक के अनुसार मीरा बाई के जीवन और मृत्यु से जुड़ी कुछ बातें बताई गई हैं।
मीराबाई जोधपुर, राजस्थान के मेड़वा राजकुल की राजकुमारी थीं। ये मेड़ता महाराज के छोटे भाई रतन सिंह की एकमात्र संतान थीं। कहा जाता है मीरा जब केवल दो वर्ष की थीं जब उनकी माता की मृत्यु हो गई। इसलिए इनके दादा राव दूदा उन्हें मेड़ता ले आए और अपनी देख-रेख में उनका पालन-पोषण किया। बता दें कि मीराबाई का जन्म 1498 के लगभग हुआ था।
तुलसीदास के कहने पर की राम की भक्ति
इतिहास में कुछ जगह ये मिलता है कि मीरा बाई ने तुलसीदास को गुरु बनाकर रामभक्ति भी की। ऐसा कहा जाता है कृष्ण भक्त मीरा ने राम भजन भी लिखे हैं, हालांकि इसका स्पष्ट उल्लेख कहीं नहीं मिलता है। माना जाता है तुलसी दास के कहने पर मीरा ने कृष्ण के साथ ही रामभक्ति के भजन लिखे। जिसमें सबसे प्रसिद्ध भजन है पायो जी मैंने राम रतन धन पायो।
बचपन से ही श्रीकृष्ण भक्त
मीराबाई का मन बचपन से ही कृष्ण-भक्ति में रम गया था। मीराबाई के बालमन से ही कृष्ण की छवि बसी थी इसलिए यौवन से लेकर अपने अंतिम समय तक उन्होंने कृष्ण को ही अपना सब कुछ माना था। पौराणिक कथाओं के अनुसार मीरा का कृष्ण प्रेम इनके बचपन की एक घटना की वजह से चरम पर पहुंचा था।