write an essay on any one of them
Answers
Answer:
आज स्वार्थवृत्ति इतनी अधिक बढ गई है कि अपने सामान्य स्वार्थ के लिए भी व्यक्ति अन्य जीवों के प्राण ले लेता है। सांप ने नहीं काटा हो तब भी ‘यह विषैला प्राणी है, कदाचित् काट लेगा’, इस भय से उसे मार दिया जाता है। आज स्वार्थी मनुष्य जितना हिंसक व क्रूर बन गया है, उतने हिंसक व क्रूर तो हिंसक व विषैले प्राणी भी नहीं हैं। सांप विषैला होने पर भी उस सांप से मदारी अपनी आजीविका चलाता है। सिंह, बाघ, चित्ता आदि हिंसक होने पर भी सर्कस वाले उनसे अपनी कमाई करते हैं। इस दृष्टि से वे विषैले और हिंसक प्राणी भी मनुष्य की कमाई कराने में सहायक बनते हैं, जबकि अति स्वार्थी मनुष्य किसी का सहायक नहीं बनता, बल्कि वह तो अनेकों का बुरा ही करता है।
‘सांप काट लेगा’, इस भय से सांप को मारने वाला क्या कम विषैला है? सांप के तो दांत में जहर होता है, जबकि स्वार्थी मनुष्य के हृदय में जहर होता है। ज्ञानियों द्वारा निर्दिष्ट हिताहित का विवेक जिसमें नहीं है, ऐसा व्यक्ति अपना विरोध करने वालों को क्या-क्या नुकसान नहीं पहुंचाता है? सरकारी सजा के भय से स्वार्थी मनुष्य भले ही शान्ति रखता होगा, परन्तु उसके हृदय में तो इतना भयंकर जहर होता है कि वह अपने स्वार्थ के लिए सामने वाले का खून भी कर सकता है।
मनुष्य के हृदय में रहे जहर को दूर करने का काम धर्म करता है। जिसके हृदय में धर्म का प्रवेश होता है, उसके हृदय में से जहर दूर हो जाता है। आज मनुष्य के हृदय में इतना जहर उछल रहा है कि जिसके कारण संहार के साधन बढ रहे हैं। आज मानव, मानवता छोडकर राक्षस बनता जा रहा है। अपने स्वार्थ में बाधक बनने वाले का संहार किया जाता है, उसमें वीरता और सेवा मानी जाती है। आर्य देश में यह मनोवृत्ति नहीं होनी चाहिए, परन्तु आज वातावरण बिगड रहा है।
यह भव भोग के लिए नहीं, त्याग के लिए है। यह खयाल आए और उसे आचरण में लाया जाए तो वातावरण सुधर सकता है। दुनियावी पदार्थों की ममता दूर हो और आत्म-सुख प्रकट करने की कामना उत्पन्न हो, तब मानव, दानव के बजाय देव बन सकता है। आपको क्या बनना है, इसका निर्णय आप ही कीजिए। ‘अनंतज्ञानियों की आज्ञानुसार पाप-त्याग और धर्म-सेवन का मार्ग बताना हमारा काम है, परन्तु उसे आचरण में लाना तो आपके हाथ में है न?’ पाप से उपार्जित सभी वस्तुएं यहीं रहने वाली है और पाप साथ चलने वाला है, यदि ऐसा विश्वास हो तो पाप से बचने के लिए प्रयत्नशील बनो, स्वार्थी मनोवृत्ति का त्याग करो। स्वार्थ पाप कराता है, ‘पाप से दुःख और धर्म से सुख’, इस बात पर आपको विश्वास है, इसलिए सीधी बात करता हूं कि पाप छोडो और धर्म का सेवन करो, जिससे आपका दुःख चला जाए और सुख प्राप्त हो।-आचार्य श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराज
*mark* me brainlist
Answer:
here's ur answer .
I'M WRITING POINT NO 13;-
Explanation:
हर छोटी वस्तु का महत्व होता है।
# रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिए डारि।
जहां काम आवे सुई, कहा करे तरवारि।।
रहीम ने इस दोहे में बताया है कि हमें कभी भी बड़ी वस्तु की चाहत में छोटी वस्तु को फेंकना नहीं चाहिए, क्योंकि जो काम एक सुई कर सकती है वही काम एक तलवार नहीं कर सकती। अत: हर वस्तु का अपना अलग महत्व है। ठीक इसी प्रकार हमें किसी भी इंसान को छोटा नहीं समझना चाहिए। जीवन में कभी भी किसी की भी जरूरत पड़ सकती है। सभी अच्छा व्यवहार बनाकर रखना चाहिए।
# रहिमन धागा प्रेम का, मत तोरो चटकाय।
टूटे तो फिर ना जुरे, जुरे गांठ परी जाय।।
रहीम का यह दोहा बहुत प्रसिद्ध है। आज भी इस दोहे को जीवन में उतारने पर रिश्ते सुखद बने रह सकते हैं। इस दोहे का अर्थ यह है कि प्रेम का रिश्ता बहुत नाजूक होता है। अत: इस प्रसंग में संभलकर रहना चाहिए। प्रेम के रिश्ते को कभी भी झटका देकर तोडऩा अच्छा नहीं होता हैए क्योंकि यदि ये रिश्ता एक बार टूट जाता है तो पुन: जुड़ नहीं सकता है। जिस प्रकार धागा को तोडऩे के बाद पुन: जोड़ा नहीं जा सकता। यदि टूटे हुए धागे को जोड़ा भी जाए तो उसमें गांठ पड़ जाती है।
# जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करी सकत कुसंग।
चन्दन विष व्यापे नहीं, लिपटे रहत भुजंग।।
रहीम ने इस दोहे में बताया है कि जो लोग स्वभाव से सदाचारी और धार्मिक हैं उन्हें बुरे लोगों की संगत बिगाड़ नहीं सकती है। इसका एक उदाहरण यह है कि चंदन के पेड़ पर हमेशा सांप लिपटे रहते हैं, लेकिन चंदन के वृक्ष पर सांप का जहर नहीं चढ़ता है।
# रूठे सुजन मनाइए, जो रूठे सौ बार।
रहिमन फिरि फिरि पोइए, टूटे मुक्ता हार।।
हमारे आसपास जो भी अच्छे लोग उनसे हमेशा अच्छे रिश्ते बनाकर रखना चाहिए, वे भले ही सौ बार रूठ जाएं, लेकिन उन्हें मना लेना चाहिए। सज्जन लोग मोतियों के हार के समान होते हैं। जिस प्रकार मोतियों की माला टूटने पर पुन: धागे में मोतियों को पिरो लिया जाता है, ठीक उसी प्रकार सज्जन लोगों को मना लेना चाहिए।
hope it's help you ☺️