English, asked by anushka1657, 20 days ago

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Answers

Answered by tahira53
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जीवन–परिचय

सुदामा पांडेय ‘धूमिल’ हिंदी साहित्य के ‘तेजस्वी सूर्य’ थे. उन्होंने देश और समाज मे व्याप्त बुराइयां, कुरीतियां, लोगो का शोषण, लोगो के अधिकारों का दमन जैसे विषयों पर अपनी कविता के माध्यम से सन्देश दिया. वे राजनीतिक चेतना और जागरूकता के कवि रहे है. वे स्वाधीनता के बाद भी लोगो के अधिकारों से वंचित करने वाली पूंजीवादी और सामंतवादी व्यवस्था के विरोध में रहे. इस पर उन्होंने अपनी कविताओं में तीखे लहजे में तंज कसे. इन्होंने मात्र विषय के स्तर पर ही नही अपितु भाषा-शैली के स्तर भी अपनी अलग पहचान बनाई. इनकी भाषा काव्य-सत्य को जीवन सत्य के अधिकाधिक निकट लाती है. इनकी भाषा मे आक्रमकता, तीखेपन एवं व्यंग्य के साथ ग्रामीण जीवन की सरलता भी है. सुदामा पांडेय के जीवित रहते 1972 में उनका एकमात्र काव्य संग्रह ‘संसद से सड़क तक’ प्रकाशित हो पाया.

रचनाएं

सन 1960 के बाद की हिंदी कविता में जिस मोहभंग की शुरूआत हुई थी, धूमिल उसकी अभिव्यक्ति करने वाले अंत्यत प्रभावशाली कवि हैं । उनकी कविता में परंपरा, सभ्यता, सुरुचि, शालीनता और भद्रता का विरोध है, क्योंकि इन सबकी आड़ में जो हृदय पलता है, उसे धूमिल पहचानते हैं। कवि धूमिल यह भी जानते हैं कि व्यवस्था अपनी रक्षा के लिये इन सबका उपयोग करती है, इसलिये वे इन सबका विरोध करते हैं। इस विरोध के कारण उनकी कविता में एक प्रकार की आक्रामकता मिलती है। किंतु उससे उनकी कविता की प्रभावशीलता बढती है। धूमिल अकविता आन्दोलन के प्रमुख कवियों में से एक हैं। धूमिल अपनी कविता के माध्यम से एक ऐसी काव्य भाषा विकसित करते हैं जो नई कविता के दौर की काव्य- भाषा की रुमानियत, अतिशय कल्पनाशीलता और जटिल बिंबधर्मिता से मुक्त है। उनकी भाषा काव्य-सत्य को जीवन सत्य के अधिकाधिक निकट लाती है।

काव्य संग्रह–

•संसद से सड़क तक

•कल सुनना मुझे

•धूमिल की कविताएं

•सुदामा पाण्डे का प्रजातंत्र

कविताएं–

•मोचीराम

•बीस साल बाद

•पटकथा

•रोटी और संसद

•लोहे का स्वाद

भाषा शैली

संसद से सड़क तक की कविताएं भावनात्मक रूप से तो पाठक को स्पर्श करती ही हैं,बौद्धिक स्तर पर भी उन्हें प्रेरित करती हैं। भारतीय राजनीति में लोकतंत्र के चरित्र को धूमिल ने अपनी कविता ‘जनतंत्र के सूर्योदय में’ जिस तरह उजागर किया है,वह चकित करता है। उनकी कविताओं में वर्तमान समय के ढेर जरूरी किंतु अनुत्तरित सवाल है।

हर रचनाकार यह जानता है कि खुद से रूबरू होना कितना कठिन होता है,परंतु मोची राम,रामकमल चौधरी के लिए,अकाल दर्शन,गाँव,प्रौढ़ शिक्षा जैसी कई कविताएं धूमिल के गहरे आत्मविश्वास से रूबरू कराती है। कहना न होगा कि जर्जर सामाजिक संरचनाओं और अर्थहीन काव्यशास्त्र को आवेग,साहस,ईमानदारी और रचनात्मक आक्रोश से निरस्त कर देने वाले रचनाकार के रूप में धूमिल अविस्मरणीय है ।

कथ्य और शिल्प देखें तो सुदामा पांडेय ‘ धूमिल’ का शिल्प-विधान और भाषा अपने समकालीन सरोकारों,गंवई सुगंध,ईमानदार व्यक्ति की बगैर लाप-लपेट की एक अनूठी झलक है। इस दृष्टि से उनकी काव्यभाषा सामाजिक संरचना के औचित्य को चुनौती देती है। उनकी नजर में कविता भाषा में आदमी होने की तमीज है। वे मानते हैं कि ‘ एक सही कविता एक सार्थक व्यक्तव्य होती है।’ वे भाषा लीक की परिपाटी पर चलने वाली भाषा का भ्रम तोड़ना चाहते हैं। वे जनता की यातना और दु:ख से उभरी तेजस्वी भाषा में कविताई करना पसंद करते हैं। वे कहते हैं-आज महत्व शिल्प का नहीं, कथ्य का है,उनका सवाल यह नहीं है कि आपने किस तरह कहा है,सवाल यह है कि आपने क्या कहा है।ऐसा इसलिए है क्योंकि वह यथार्थ को उसके असली या नग्न रूप में प्रस्तुत करना चाहते हैं। उनका यही रुझान उनके काव्य शिल्प में भी सामाजिक चेतना का संचार करता है,क्योंकि उनका शिल्प ही उनके कथ्य का संवाहक है।

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