CBSE BOARD X, asked by bhawanaayalwar, 4 months ago

write essay on prachin konark temple in Sanskrit​

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Answered by sanjayksingh879
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Explanation:

यह मन्दिर सूर्य देव को समर्पित था, जिन्हें स्थानीय लोग 'बिरंचि-नारायण' कहते थे। इसी कारण इस क्षेत्र को उसे अर्क-क्षेत्र (अर्क=सूर्य) या पद्म-क्षेत्र कहा जाता था। पुराणों के अनुसार श्रीकृष्ण के पुत्र साम्ब को उनके श्राप से कोढ़ रोग हो गया था। साम्ब ने मित्रवन में चंद्रभागा नदी के सागर संगम पर कोणार्क में, बारह वर्षों तक तपस्या की और सूर्य देव को प्रसन्न किया था। सूर्यदेव, जो सभी रोगों के नाशक थे, ने इसके रोग का भी निवारण कर दिया था। तदनुसार साम्ब ने सूर्य भगवान का एक मन्दिर निर्माण का निश्चय किया। अपने रोग-नाश के उपरांत, चंद्रभागा नदी में स्नान करते हुए, उसे सूर्यदेव की एक मूर्ति मिली। यह मूर्ति सूर्यदेव के शरीर के ही भाग से, देवशिल्पी श्री विश्वकर्मा ने बनायी थी। साम्ब ने अपने बनवाये मित्रवन में एक मन्दिर में, इस मूर्ति को स्थापित किया, तब से यह स्थान पवित्र माना जाने लगा।

पूर्वी कोने से मन्दिर का दृष्य

इतिहास

कोणार्क में पाषाण कला

यह कई इतिहासकारों का मत है, कि कोणार्क मंदिर के निर्माणकर्ता, राजा लांगूल नृसिंहदेव की अकाल मृत्यु के कारण, मंदिर का निर्माण कार्य खटाई में पड़ गया। इसके परिणामस्वरूप, अधूरा ढांचा ध्वस्त हो गया।[1] लेकिन इस मत को एतिहासिक आंकड़ों का समर्थन नहीं मिलता है। पुरी के मदल पंजी के आंकड़ों के अनुसार और कुछ १२७८ ई. के ताम्रपत्रों से पता चला, कि राजा लांगूल नृसिंहदेव ने १२८२ तक शासन किया। कई इतिहासकार, इस मत के भी हैं, कि कोणार्क मंदिर का निर्माण १२५३ से १२६० ई. के बीच हुआ था। अतएव मंदिर के अपूर्ण निर्माण का इसके ध्वस्त होने का कारण होना तर्कसंगत नहीं है।

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