write essay on rashkhan
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रसखान (जन्म: 1548 ई) कृष्ण भक्त मुस्लिम कवि थे। उनका जन्म पिहानी, भारत में हुआ था। हिन्दी के कृष्ण भक्त तथा रीतिकालीन रीतिमुक्त कवियों में रसखान का अत्यंत महत्त्वपूर्ण स्थान है। वे विट्ठलनाथ के शिष्य थे एवं वल्लभ संप्रदाय के सदस्य थे। रसखान को 'रस की खान' कहा गया है। इनके काव्य में भक्ति, शृंगार रस दोनों प्रधानता से मिलते हैं। रसखान कृष्ण भक्त हैं और उनके सगुण और निर्गुण निराकार रूप दोनों के प्रति श्रद्धावनत हैं। रसखान के सगुण कृष्ण वे सारी लीलाएं करते हैं, जो कृष्ण लीला में प्रचलित रही हैं। यथा- बाललीला, रासलीला, फागलीला, कुंजलीला, प्रेम वाटिका, सुजान रसखान आदि। उन्होंने अपने काव्य की सीमित परिधि में इन असीमित लीलाओं को बखूबी बाँधा है। मथुरा जिले में महाबन में इनकी समाधि हैं|
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कृष्ण-भक्ति शाखा की अमूल्य निधिः रसखान
रसखान ने अपने बारे में सीधे-तौर पर कुछ भी नहीं कहा है। किन्तु उनका एक ऐसा पद प्राप्त होता है, जिसमें उनके जीवन के संबंध में कतिपय संकेत प्राप्त होते हैं:
देखि गदर हित साहबी, दिल्ली नगर मसान।
छिनहि बादसा वंश की, इसक छोरि रसखान॥
प्रेम निकेतन श्रीबलहि, आई गोवर्धन धाम।
लक्ष्यों सरन चित चाहिक, जुगल सरूप ललाम॥
इस पद की व्याख्या डॉ नगेन्द्र ने ऐतिहासिक आधारों पर कुछ इस प्रकार की है: “इन पंक्तियों में उल्लखित ‘गदर’ और दिल्ली के श्मशान बन जाने का समय विद्वानों ने सन् 1555 अनुमानित किया है; क्योंकि इसी वर्ष मुगल-सम्राट हुमायूँ ने दिल्ली के सूरवंशीय पठान शासकों से अपना खोया हुआ शासनाधिकार पुन: हस्तगत किया था। इस अवसर पर भयंकर नर-संहार और विध्वंस होना स्वाभाविक था और ऐसे में कवि-प्रकृति के कोमल हृदय वाले रसखान का उस गदर के ताण्डव रूप को देखकर विरक्त हो जाना भी अस्वाभाविक नहीं। कवि ने जिस बादशाह वंश की ठसक का त्याग किया वह वही पठान सूर-वंश प्रतीत होता है, जिसके शासन का उदय शेरशाह सूरी के साथ सन् 1528 में हुआ और अन्त इब्राहीम खाँ तथा अहमद वाँ के पारस्परिक कलह के कारण सन् 1555 में हुआ। इस गदर के समय रसखान की आयु यदि बीस-बाइस वर्ष मान ली जाए तो उनका जन्म सन् 1533 के आस-पास हुआ प्रतीत होता है।” यह बात स्वयं-सिद्ध है कि रसखान का जीवन परिचय इतिहास में उपलब्ध नहीं होता, किन्तु उनके काव्य में अभिव्यक्त कतिपय ऐतिहासक स्थितियों के आधार पर उनके जीवन काल का अनुमान अवश्य लगाया जा सकता है। इस संदर्भ में उपर्युक्त पद में व्यक्त ऐतिहासिक घटनाएँ हमारा सजग मार्ग दर्शन करती हैं।
रसखान एक ऐसे कवि हैं, जो मुस्लिम धर्म के अनुयायी होने के बावजूद, हिन्दूधर्म के एक अति प्रसिद्ध देवता, श्रीकृष्ण की आराधना अपने काव्य के माध्यम से करते हैं। इस बात को एक गौण बात कहकर उपेक्षित नहीं किया जा सकता। अपितु इस बात से हमें न केवल मध्यकाल की एक विशिष्ट स्थिति का ज्ञान प्राप्त होता है बल्कि इससे हमें कृष्ण-भक्ति की मानवतावादी सामाजिक-सांस्कृतिक स्थिति का भी बोध होता है। वस्तुतः समूचे भक्तिआन्दोलन की ही यह एक महत्वपूर्ण विशेषता रही है कि यह आन्दोलन मूलतः आध्यात्मिक होने के बाद भी कभी धार्मिक संकीर्णता का शिकार नहीं रहा है। वस्तुतः अन्य भक्त-कवियों के साथ-साथ रसखान भी आध्यात्मिक-मानववाद के कवि हैं और यह उनकी काव्य मेधा की एक अति उल्लेखनीय विशेषता कही जा सकती है।
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