Chemistry, asked by shalini8977, 9 months ago

write the essay on चाँदनी रात में नौकाविहार in Hindi short passage ​

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Answered by xShreex
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नाव में बैठकर नदी में सैर करना किसे अच्छा नहीं लगता? रात चाँदनी होना कहना ही क्या ! पिछली शरद पूर्णिमा की रात को मैंने अपने कुछ मित्रों के साथ नौकाशि का अनोखा आनंद लिया।

नौकाविहार करने हम सरस्वती नदी के किनारे पहुँच गए। शरद पूर्णिमा का चाँद पूरी तरह खिला हुआ था। चाँदनी के रूप में वह धरती पर अमृत बरसा रहा था। हवा के शीतल झोंके वातावरण को खुशनुमा बना रहे थे।

नदी के तट पर चाँदनी रात वे बाजे बजा रहे थे और लोग ढोल, मजीरे की ताल । पूनम की रात में न पर चाँदनी रात मनाने के लिए बहुत से लोग आए हुए थे। एक ओर कछ थे और शोर-गुल कर रहे थे। कुछ लोग फिल्मों के गीत गा रहे थे। कुछ की ताल पर नाच रहे थे। खोमचेवालों की अच्छी बन आई थी।

रात में नदी का जल मानो चाँदनी से खेल रहा था। नदी में कई नावें पाल ताने उन पर छोटे-छोटे दिये टिमटिमा रहे थे। इनसे नदी का दृश्य और भी मनोरम लग रही थीं। उन पर छोटे-छोटे दिये दिन रहा था।

हम भी एक नाव पर बैठ गए। पाल खुलते ही नाव सरपट चल पड़ी। नदी की लहरें नाव से टकरा रही थीं। इससे कल-कल की मधुर ध्वनि हो रही थी। शीतल दारों से हम पुलकित हो उठे। नदी के पानी में चाँद-सितारों के प्रतिबिंब देखकर प्रसन्न हो गया। हमारी तरह दूसरे कई लोग नावों में सैर कर रहे थे। नावों में आपस जोड सी लगी हुई थी। हमारी नाव भी किसी से पीछे नहीं रहना चाहती थी। हमारा नाविक बत फरतीला था। एक बार तो हमारी नाव पलटते-पलटते बची। कुछ माँझी नाव खेते-खेते गीत भी गा रहे थे। हमारी नाव के माँझी के पास तो गीतों का खजाना था। उसका गला भी बहुत सुरीला था।

बहत दूर तक जाने के बाद हमारी नाव वापस लौट पड़ी। वापसी के समय माँझी को बहुत मेहनत करनी पड़ी, क्योंकि नाव अब नदी के बहाव की उल्टी दिशा में आ रही थी। माँझी को इस बार चप्पू (डाँड़) के सहारे नाव को खेना पड़ा था।

नौकाविहार के बाद हमने नदी के तट पर जलपान किया। बाद में कुछ देर तक हम नदी के तट पर घूमते रहे। फिर घर लौट आए।

उस रात का नौकाविहार मुझे आज भी याद आ रहा है !

Answered by bindupoonia245
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Answer:

प्रकृति अनन्त रूपा है । यह निरन्तर परिवर्तनशील है । जिस प्रकार सर्प अपनी केंचुली को उतारकर नवयौवन धारण करता है उसी प्रकार प्रकृति भी नित्य नवरूप ग्रहण करती रहती है ।

कभी हड्‌डियों को कंपा देने वाला शीत का प्रकोप, कभी आग की तरह जलती धरती और कभी वर्षा की ऐसी अंधेरी रातें कि हाथ को हाथ नहीं सूझता । पुन: शरद की स्वच्छ चाँदनी, आकाश मे चमचमाती नक्षत्रावली, शीतल मन्द सुगन्ध समीर और धरती से आकाश तक फैली हुई चाँदनी अनायास ही मन को मोह लेती है ।

चाँदनी रातों का हमारे जीवन मैं विशेष महत्त्व है । वे जीवन में उल्लास भरती हैं, जीवन को शक्ति देती है और आनन्द प्रदान करती है । चाँदनी रात में समुद्र में ज्वार आता है । भगवान कृष्ण भी चाँदनी रात में गोपिकाओं के साथ रासलीला रचाते थे । गोवर्धन की परिक्रमा भी चाँदनी रात में ही होती है । तुलसीदास ने भी वर्षा के बाद शरद् का स्वागत करते हुए लिखा है:

क्या ही स्वच्छ चाँदनी है यह, है क्या ही निस्तब्ध निशा । है स्वच्छ सुमन्द गन्ध वह, निरानन्द है कौन दिशा ?

एक ऐसे ही मनोहारि वातावरण में मित्रों ने गंगा तट पर भ्रमण करने का मन बना लिया । शरद् के सुहावने दिन थे । गंगा हमारे निवास स्थान से लगभग दो किलोमीटर की दूरी पर थी । हम सब रात्रि भोजन करने के पश्चात् घूमते हुए गंगा तट पर पहुँच गए ।

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