ये लोग कच्ची सामग्री कहाँ से जुटा कलाकृति/बर्तन बनाने से पूर्व मिट्टी तैयार करने की एक कलाकृति तैयार करने की पूरी प्रक्रिया (बनाना, प निर्मित सामग्री को वे कहाँ-कहाँ बेचते हैं? इस व्यवसाय से प्राप्त आय, क्या उनके जीवन निर्वाह उन्हें किस-किस प्रकार की समस्याओं का सामना क । नदी को "भागीरथी' कहे जाने के पीछे जो प्रचलित पौर जानने का प्रयास कीजिए और लिखिए।
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मृणशिल्पों की दृष्टि से बस्तर छत्तीसगढ का समृद्धतम क्षेत्र है। यहाँ के कुम्हार अपने आप को राणा, नाग, चक्रधारी और पाँड़े कहते हैं। कुम्हार यहाँ के ग्रामीण जीवन और सामाजिक ताने-बाने का महत्वपूर्ण अंग हैं। यहाँ के लोगों के जीवन के प्रत्येक पक्ष में कुम्हारों की भूमिका अनिवार्य है। दैनिक घरेलू गतिविधियां हों, पूजा अनुष्ठान हों अथवा विवाह संस्कार, यह सभी कुम्हारों द्वारा बनाई वस्तुओं के बिना संपन्न होना संभव नहीं। मैं सन १९८३ से छत्तीसगढ़ और विशेषतः बस्तर क्षेत्र के कुम्हारों के संपर्क में रहा हूँ। अतः पिछले एक लम्बे समय में यहाँ के कुम्हारों के काम और स्थिति में आये बदलाव को अनुभव किया है। पिछले चार दशकों में सबसे बड़ा अंतर तो यह आया है कि पहले बस्तर के कुम्हार केवल स्थानीय लोगों के लिए उनकी आवश्यकता की वस्तुएं बनाते थे। वे अपने ग्राहकों और उनकी ससंकृति को अच्छी तरह समझते थे। उनकी आवश्यकताओं से परिचित थे। पर अब उनके सामने दो ग्राहक समूह हैं। एक स्थानीय और दूसरा स्वदेशी शहरी लोग। अतः कुछ कुम्हार केवल स्थानीय लोगों के लिए काम कर रहे हैं। कुछ कुम्हार केवल शहरी बाजार के लिए काम कर रहे हैं। कुछ कुम्हार ऐसे भी हैं जो मिला-जुला काम रहे हैं । स्थानीय लोगों के लिए बनाया जाने वाला काम उपयोगी, अनुष्ठानिक और उसमे की जानेवाली सजावट अपेक्षकृत कम होती है। जबकि शहरी बाजार के किये बनाया जाने वाला काम साफ़-सुथरा, चिकना पालिशदार और अलंकृत होता है।
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