या पद्यांश
तिरी रागीर-सागर पर
आईपर सुप पर दुबमी घाम-
जनके ग्ध हदम पर
निदम विप्म की प्लानित माया
यह तेरी रण-तरी
गरी आकांक्षामा से
घन, मेरी-गर्जन से सलग सुपर
उर में पृथ्वी के, माशाम से
नवसमन् की, ऊंचा कर सूप,
लाकरहेर विप्लत के बादला
Answers
what should we do i did not understand it
प्रश्न में दिये गये पद्यांश में अनेक त्रुटियाँ हैं। सही पद्यांश इस प्रकार होगा....
गिरती है समीर सागर पर,
अस्थिर सुख पर दुख की छाया,
जग के दग्ध हृदय पर ,
निर्दय विप्लव की प्लावित माया,
ये तेरी रण तरी,
भरी आकांक्षाओं से,
धन भेरी-गर्जन से सजग, सुप्त अंकुर,
उर में पृथ्वी के, आशाओं से,
नवजीवन की, ऊंचा कर सिर,
ताक रहे हैं, ऐ विप्लव के बादल,
फिर फिर।
संदर्भ = यह पद्यांश ‘सूर्यकांत त्रिपाठी निराला’ द्वारा रचित कविता “बादल राग” से लिया गया है। इस कविता के माध्यम से कवि ने आम आदमी के दुख का वर्णन करते हुये बादलो का आह्वान किया है। कवि ने बादलों को क्रांति का प्रतीक बनाया है।
अर्थ = कवि कहता है। ये क्रांतिदूत रूपी बादल तुम इस आकाश में सागर पर तैरती हुई नौका की भांति मंडराते हो तो ऐसा प्रतीत हो रहा है जैसे संसार में अस्थिर सुखों पर दुःखों की कोई छाया मंडरा रही हो। इससे स्पष्ट होता है कि मानव जीवन में जो भी सुख हैं, वह क्षणिक और अस्थाई हैं और जिन पर दुखों की काली छाया सदैव मंडराती रहती है। संसार में व्याप्त दुखों से त्रस्त होकर हृदय पर निष्ठुर क्रांति का मायावी विस्तार उसी तरह चारों तरफ फैला हुआ है।
कवि कहता है कि हे क्रांति के बादल तुम्हारी भयंकर गर्जना को सुनकर पृथ्वी के गर्भ में छिपे बीज अंकुरित हो जाते हैं। इसका तात्पर्य यह है कि जो त्रस्त और दुखी जनता है वह उसे बादलों की गर्जना के माध्यम से क्रांति की आवाज सुनाई देने लगती है और उसके मन में आकांक्षाओं के अंकुर अर्थात आशाओं जन्म लेने लगती हैं।तब जनता उठ खड़ी होती है और उसे एक नया जीवन प्राप्त होता प्रतीत होता है। बादलों की क्रांतिरूपी गर्जना से दुखियों व पीड़ितों के मन में एक नया विश्वास जगता है।
इस तरह कवि ने बादलों के साथ दुखी लोगों को सीधे जोड़कर बादलों को क्रांति का प्रतीक बना दिया है।