Sociology, asked by PragyaTbia, 1 year ago

यूरोप में राष्ट्रवाद के विकास में संस्कृति के योगदान को दर्शाने के लिए तीन उदाहरण दें।

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Answered by nikitasingh79
66

उत्तर :  

यूरोप में राष्ट्रवाद के विकास में संस्कृति के योगदान को दर्शाने के तीन उदाहरण निम्नलिखित है :  

(क) रूमानीवाद :

रूमानीवाद एक संस्कृति आंदोलन था जो एक विशेष प्रकार की राष्ट्रीय भावना का विकास करना चाहता था। रुमानी कलाकारों तथा कवियों ने तर्क वितर्क और विज्ञान पर बल देने के स्थान पर अंतर्दृष्टि और रहस्यवादी भावनाओं पर बल दिया । वह एक सामूहिक विरासत की अनुभूति और एक साझे सांस्कृतिक अतीत को राष्ट्र का धर्म बनाना चाहते थे।

जर्मन दार्शनिक योहान गॉटफ्रीड जैसे रूमानी चिंतकों के अनुसार सच्ची जर्मन संस्कृति उसके आम लोगों में मौजूद है। उनका विश्वास था कि राष्ट्र की सच्ची आत्मा लोकगीतों, जन काव्य और लोकनृत्यों मैं निहित होती है। लोक संस्कृति के इन घटकों को एकत्रित और अंकित करना राष्ट्र के निर्माण के लिए आवश्यक है।

(ख) स्थानीय बोलियों तथा लोक साहित्य :  

राष्ट्रवाद के विकास के लिए स्थानीय बोलियों पर बल और स्थानीय लोक साहित्य को एकत्रित किया गया । इसका उद्देश्य आधुनिक राष्ट्र संदेश को अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाना था। यह बात उचित रूप से पोलैंड पर लागू होती है । इस देश का 18 वीं शताब्दी के अंत में रूस , प्रशा और ऑस्ट्रेलिया जैसी बड़ी शक्तियों ने विभाजन कर दिया था। भले ही पोलैंड अब स्वतंत्र भू क्षेत्र नहीं था , तो भी संगीत और भाषा के माध्यम से वहां राष्ट्रीय भावना को जीवित रखा गया।

उदाहरण के लिए कैरोल कुर्पिस्की ने अपने आॅपेरा और संगीत से राष्ट्रीय संघर्ष के महत्व को बताया और पोलेनेस  तथा माजुरका जैसे लोक नृत्यों को राष्ट्रीय चिन्हों में बदल दिया।

(ग) भाषा :

राष्ट्रीय भावनाओं के विकास में भाषा ने भी महत्वपूर्ण योगदान दिया । रूस के अधीन पोलैंड में पॉलिश भाषा को स्कूलों में बलपूर्वक हटा दिया गया था । इसके स्थान पर लोगों पर रूसी भाषा का प्रयोग किया जाने लगा। इसके फलस्वरूप 1831 में वहां रूस के विरोध एक सशस्त्र विद्रोह हुआ । इस विद्रोह को बलपूर्वक  कुचल दिया गया। इसके बावजूद अनेक सदस्यों ने राष्ट्रीयवादी विरोध के लिए भाषा को अपने शस्त्र बनाया। चर्च के आयोजनों और संपूर्ण धार्मिक शिक्षा में पॉलिश भाषा का प्रयोग किया गया । इसके फलस्वरूप बंदी बनाकर बड़ी संख्या में पादरियों और बिशपों को  साइबेरिया भेज दिया क्योंकि उन्होंने रूसी भाषा का प्रचार करने से मना कर दिया था। इस तरह पॉलिश भाषा रूसी प्रभुत्व के विरुद्ध संघर्ष का प्रतीक बन गई।

आशा है कि है उत्तर आपकी मदद करेगा।

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Answered by Anonymous
12

Explanation:

समाजशास्त्र एक नया अनुशासन है अपने शाब्दिक अर्थ में समाजशास्त्र का अर्थ है – समाज का विज्ञान। इसके लिए प्रयुक्त अंग्रेजी शब्द सोशियोलॉजी लेटिन भाषा के सोसस तथा ग्रीक भाषा के लोगस दो शब्दों से मिलकर बना है जिनका अर्थ क्रमशः समाज का विज्ञान है। इस प्रकार सोशियोलॉजी शब्द का अर्थ भी समाज का विज्ञान होता है। परंतु समाज के बारे में समाजशास्त्रियों के भिन्न – भिन्न मत है इसलिए समाजशास्त्र को भी उन्होंने भिन्न-भिन्न रूपों में परिभाषित किया है।

अति प्राचीन काल से समाज शब्द का प्रयोग मनुष्य के समूह विशेष के लिए होता आ रहा है। जैसे भारतीय समाज , ब्राह्मण समाज , वैश्य समाज , जैन समाज , शिक्षित समाज , धनी समाज , आदि। समाज के इस व्यवहारिक पक्ष का अध्यन सभ्यता के लिए विकास के साथ-साथ प्रारंभ हो गया था। हमारे यहां के आदि ग्रंथ वेदों में मनुष्य के सामाजिक जीवन पर पर्याप्त प्रकाश डाला गया है।

इनमें पति के पत्नी के प्रति पत्नी के पति के प्रति , माता – पिता के पुत्र के प्रति , पुत्र के माता – पिता के प्रति , गुरु के शिष्य के प्रति , शिष्य के गुरु के प्रति , समाज में एक व्यक्ति के दूसरे व्यक्ति के प्रति , राजा का प्रजा के प्रति और प्रजा का राजा के प्रति कर्तव्यों की व्याख्या की गई है।

मनु द्वारा विरचित मनूस्मृति में कर्म आधारित वर्ण व्यवस्था और उसके महत्व पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है और व्यक्ति तथा व्यक्ति , व्यक्ति तथा समाज और व्यक्ति तथा राज्य सभी के एक दूसरे के प्रति कर्तव्यों को निश्चित किया गया है। भारतीय समाज को व्यवस्थित करने में इसका बड़ा योगदान रहा है इसे भारतीय समाजशास्त्र का आदि ग्रंथ माना जा सकता है।

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