Science, asked by sntpad123, 3 months ago

यौवनारम्भ के समय होने वाले शारीरिक परिवर्तनो की सूची बालक एवं बालिका मे अलग-अलग दर्शाइये।


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Answered by mauryasangita716
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Answer:

शारीरिक परिवर्तन की उस प्रक्रिया को कहते हैं जिसके द्वारा कालक्रम में बच्चे से बढ़कर प्रजनन में समर्थ जवान बन जाता है। यौवनारम्भ की शुरूवात हार्मोनों के बनने से होती है।

Explanation:

मानव की ग्रोथ व विकास यह जन्म से लेकर(उसके भी पहले गर्भधारणा से) शुरू हुआ तो भी उसका भ्रूण, शिशु/नवजात अर्भक, शिशु, बालक, कुमार, किशोर, तरुण, प्रौढ, वृद्ध, इत्यादी अनेक टप्पों से जाना होता है।दसवे वर्ष से लेकर सोलह से बीस वर्ष के संक्रमण के कालखंड को किशोरवय कहते हैं। इस कालखंड में अपरिपक्व बालक (कुमारा) की पूर्ण शारीरिक ग्रोथ होकर मानसिक-सामाजिक दृष्टि से प्रगल्भ प्रौढ व्यक्ती में रूपांतर होता है। इसी अायु में होने वाले व्यक्ति की लैंगिक ग्रोथ और विकास के टप्पे को प्युबर्टी(यौवनावस्था)कहते हैं। पौगंडावस्था (Puberty) यह लैंगिक संक्रमण का कालखंड है। सामान्य रूप से लडकियों में इस कालखंड की शुरुआत 10 से 11इस उम्र में होती है और 15 से 17 वर्ष तक लैंगिक विकास पूर्ण होकर यह कालखंड समाप्त होता है। उम्र के लगभग 12 से 13 वर्ष में पहली बार [मासिक धर्म] यह इस कालखंड का महत्त्वपूर्ण टप्पा है। लडकों में इस कालखंड की शुरुआत थोडी देर से, उम्र के 11 से 12इस वर्ष में होती है और 16 से 18 इस वर्ष तक यह कालखंड समाप्त होता है। इसमें उम्र के 13 वर्ष के लगभग पहले वीर्यस्खलन होना इस कालखंड का महत्त्वपूर्ण टप्पा है।

ब्रेन से प्रजनन ग्रंथीं की ओर विशिष्ट उम्र में आनेवाले हार्मोन्स के स्वरूप वाले संदेश के कारण यौवनावस्था शुरू होती है। इन संदेश के कारण लडकों में वृषण की और लडकियों में बीजांडकोष की बढोतरी होती है। लडकोमें वृषण से टेस्टोस्टेरॉन और लडकियों में बीजांडकोष से ईस्ट्रोजेन और प्रोजेस्टेरॉन इन साँचा:अंतस्रावोकी निर्मिती होती है। इनके प्रभाव के कारण लडकों में शुक्रजंतू और वीर्य निर्मिती इसी प्रकार लडकियों में बीजांडकोष से स्त्रीबीज निर्मिती और मासिक चक्र शुरू होना और लैंगिक कार्य शुरू होते हैं। लडको में शिश्न और लडकियों में गर्भाशय और योनीमार्ग की बढौतरी होती है। इसके साथ ही बहुत शारीरिक फरक न दिखाई देने वाले लडकों में लडका और लडकी एेसा स्पष्ट बाह्य भेद दिखाने वाली, बाह्य जननेंद्रियाें पर बाल उगना, लडकों का आवाज बदलना, दाढी-मुँछे उगना, इत्यादी और लड़कियों में स्तनाें का आकार बढ़ना, शरीर को गोलाई आना, इत्यादी चिन्हे ही दिखाई देते हैं। उन्हें दुय्यम लैंगिक चिन्ह कहते हैं।

ये सब बदल चालु रहते हैं, लैंगिक भावना आना, लैंगिक आकर्षण निर्माण होते हैं, ऐसे मानसिक और वैचारिक बदल भी होते रहते हैं।

इन सबका परिणाम मतलब इन सब टप्पो के अंत में लड़का और लड़की अनुक्रमे पुरुष और स्त्री में लैंगिक दृष्टी से विकसित होकर प्रजननक्षम बनते हैं।

अंग्रेजी में प्युबर्टी (Puberty) यह शब्द लॅटीन में "प्युबेस' इस शब्द से आया है। प्युबेस मतलब जननेंद्रियाे के बाल । यह बाल उगने लगे की व्यक्ती यौवन में अायी ऐसा मानते हैं। किशोरावस्था यह मुख्यतः मानसिक-सामाजिक परिपक्वता का काल है। यौवनावस्था और किशोरवय यह दोनो कालखंड कुछ काल एकदूसरे के साथ समांतर जा रहे हो तो भी किशोरवय का विशेषतापूर्ण कालखंड ज्यादा फैलाव लिए होता है और उसकी व्याप्ती शारीरिक-बौद्धिक-मानसिक-समाजिक ऐसी सर्वसमावेशक है।उसमें से बौद्धिक-मानसिक-समाजिक परिपक्वता की प्रक्रिया आगे यौवनावस्था और प्रौढावस्था में भी चालू रहती है। यौवनावस्था यह उसमें का सिर्फ लैंगिक संक्रमण का कालखंड होकर लैंगिक विकास पूर्ण होने पर और प्रजननक्षमता आने पर यह कालावधी समाप्त होती है। किशोरवय किशोरवय यह संक्रमण का कालखंड है और सामान्य रूप से यौवनावस्था के थोडा पहले शुरू होता है और मनुष्य के पूर्ण विकसित प्रौढ व्यक्ति में रूपांतर होने पर समाप्त होता है। इसमें मनुष्य के शारीरिक और लैंगिक विकास के साथ ही मानसिक, बौद्धिक और सामाजिक ऐसा सर्वसमावेशक विकास होता है। यह सर्व प्रक्रिया थोडी अपने पीछे शुरू होती है और समाप्त होती है। सर्वसामान्यरुप में दसवें वर्ष से लेकर सोलह से बीस वर्ष तक की कालावधी को किशोरावस्था मानी जाती है। लड़कियों में यह कालखंड लडकों की अपेक्षा पहले शुरू होकर पहले खत्म होता है। लडकों की सामाजिक-आर्थिक-कौटुंबिक परीस्थिती, पोषण, आसपास का वातावरण, उस स्थान की प्राकृतिक-सामाजिक-सांस्कृतिक विशेषता इत्यादि पर वह निर्भर करता है।

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