Hindi, asked by hemansh1087, 1 year ago

Yadi Aankhen Na Hoti kalpnathmak nibhandh

Answers

Answered by abhi178
21
\qquad\qquad\underline{\textbf{यदि आँखें न होती}}

\qquad \huge{\textbf{आँ}}खें हमारे जीवन के लिए कितना महत्वपूर्ण अंग है , यह तो जगजाहिर है । आँख केवल वस्तुओं को देखने हेतु नही अपितु जीवन के सभी दिनचर्या के लिए आवश्यक ही नहीं बल्कि अनिवार्य है । प्रकृति के मनमोहक दृश्य का आनंद क्या आप बगैर के ले सकते हैं , नहीं न ? आँख जो वस्तुओं को देखने की अनुभूति प्रदान करता है सभी अंगों में उत्कृष्ट है । पांचो ज्ञानेन्द्रियों में सर्वश्रेष्ठ है ।

आँख की मत्वपूर्णता को देखकर तो हम आसानी से समझ सकते हैं यदि आँखे न हो तो क्या होगा । ज़रा अपने पलकों को कुछ क्षण के लिए ढककर अपने परिवेश को परखने का प्रयास कीजिये ?, पुस्तकों के पाठन का अभ्यास कीजिये ?
मित्रों को पहचानिये ? मुद्राएँ स्पर्श कर उनके मूल्य को बताये ? क्या आप सक्षम हैं नहीं न ? जब आप कुछ क्षण में अपने दैनिक कार्यों को करने में असमर्थ हैं तो ज़रा सोचिए , यदि आँखें न हो तो क्या होगा । बिन आँखे मानो जीवन खुद पर बोझ सी लगने लगती है। अपने कार्यों को करने में असहाय हम दूसरे की आशा करने लगते हैं । कितना कष्ठ होता है यदि आँखें न हो , यह तो वही बता सकते हैं जिसके पास आँखे नहीं है ।

यदि आँखें नही होती है तो ज्ञान का जो आज फैलाव हुआ सैयद ही हो पाती , फिल्मों को तो अंधे अवश्य नही देख पाते , और तो और गाने आँखों पर तो बनती ही नहीं " नयनो की जो बात है नयन ही जाने है " ये गाना शायद बनता ही नही, ब्रम्हांड से रहस्य तो रहस्य ही रह जाते, फैशन का जमाना ही नही आता , लड़कियाँ सल्लू भाई की दीवानी न होती , क्योंकि आँखों से चाहने वाले मिलते हैं न की सुनकर या सूंघकर चाहने वाले । मानो दुनिया पूरी तरह नेत्र विहीन समाज प्रधान हो जाती , जो केवल चरों ज्ञानेंद्री को आधार मानकर चलती । अतः यूँ कहे तो हम उस चाँद को देखकर आहें न भर सकते , जिसे आज औरते देखकर अपना तीज, करवा चौथ का व्रत करती है । समाज से आज से केवल अलग ही नही होता बल्कि ठीक उलट हो जाता ।

लेकिन आँखों का न होना , हमें विवेकहीन नही होने देती , अगर ऐसा होता तो सूरदास को आज हम अपने घरों में पूजते नही, आँख तो केवल बाह्य दृश्य को देखने और समझने के लिए जरुरी है किंतु प्रकृति को समझने के लिए आँख न हो तो क्या हम अधूरे रहेंगे ? बिलकुल नही , हमने शिक्षा की ऐसी पद्धति विकसित की है जिससे अंधे केवल पढ़ ही नही बल्कि सामान्य जीवन जी रहे है । इससे इतना तो तय है कि यदि हमारे पास न भी हो तो हम आकाशगंगा में अछूते तारे की तरह तो बिलकुल नही रहेंगे । हम चमकेंगे उन सितारों की तरह जो करोङो मिल दूर होकर भी अंधकार को प्रकाशवान बनाती है ।
Similar questions