History, asked by maahira17, 10 months ago

यह बर्नियर से लिया गया एक उद्धरण है:
ऐसे लोगों द्वारा तैयार सुंदर शिल्पकारीगरी के बहुत उदाहरण हैं, जिनके पास औज़ारों का अभाव है, और जिनके विषय में यह भी नहीं कहा जा सकता कि उन्होंने किसी निपुण कारीगर से कार्य सीखा है। कभी-कभी वे यूरोप में तैयार वस्तुओं को इतनी निपुणता से नकल करते हैं कि असली और नकली के बीच अंतर कर पाना मुश्किल हो जाता है। अन्य वस्तुओं में, भारतीय लोग बेहतरीन बंदूकें, और ऐसे सुंदर स्वर्णाभूषण बनाते हैं कि संदेह होता है कि कोई यूरोपीय स्वर्णकार कारीगरों के इन उत्कृष्ट नमूनों से बेहतर बना सकता है। में अकसर इनके चित्रों की सुंदरता, मृदुलता तथा सूक्ष्मता से आकर्षित हुआ हूँ।
उसके द्वारा लिखित शिल्प कार्यों को सूचीबद्ध कीजिए तथा इसकी तुलना अध्याय में वर्णित शिल्प गतिविधियों से कीजिए।

Answers

Answered by nikitasingh79
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बर्नियर से लिया गए  इस उदाहरण में बंदूकें बनाने और सुंदर सोने के गहने बनाने जैसे शिल्पों का उल्लेख किया गया है।

इन उत्पादों भारतीय कारीगर बड़ी खूबसूरती से बनाते थे। बर्नियर इन भारतीय उत्पादों को देखकर चकित रह गया था।

इस पाठ में वर्णित  अन्य शिल्प गतिविधियां की तुलना -  

(1) कशीदाकारी

(2) चित्रकारी

(3) रंग रोगन करना

(4) बढ़ई गिरी

(5) कपड़े सीना

(6) जूते बनाना

(7) रेशम ,जरी और बारीक मलमल का काम

(8) सोने के बर्तन बनाना

यह सारी शिल्प गतिविधियां राजकीय कारखानों में होती थी। बंधन इन राजकीय कारखानों को कारीगरों (शिल्पकारों)की कार्यशाला कहता था। यह कारीगर रोज़ सुबह कारखाने में आते थे और सारा दिन काम करने के बाद शाम को अपने अपने घर जाया करते थे।  

आशा है कि यह उत्तर आपकी अवश्य मदद करेगा।।।।

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Answered by bhatiamona
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उत्तर-

ये उद्धरण में बर्नियर ने भारतीय कारीगरों की तारीफ की है. इसे एक बात तो स्पष्ट होती है, भले ही बर्नियर ने भारतीय ग्राम समाज के बारे में नकारात्मक बातें लिखी हो लेकिन वह भारतीय कारीगरों का प्रशंसक था और भारतीय कारीगरों के विषय में उसकी राय अच्छी थी।

बर्नियर के अनुसार भारतीय कारीगरों के पास अच्छे और औजार ना होने के बावजूद भी वह है कारीगरी कला में एकदम माहिर थे।

इस उद्धरण में बर्नियर ने बंदूकें, स्वर्ण आभूषण बनाने जैसे अनेक शिल्प कार्यों का उल्लेख किया है, उसके अनुसार भारतीय कारीगर इन सभी वस्तुओं को बड़ी निपुणता और कलात्मक रूप से बनाते थे। उनकी बनाईं यह सारी वस्तुयें इतनी सुंदर होती थीं कि बर्नियर स्वयं ये देखकर हैरान रह गया। उसके अनुसार यूरोप के कारीगर भारतीय कारीगरों जितने कुशल नहीं थे।

बर्नियर में अपने उद्धरण में जिन शिल्प कलाओं का जिक्र किया है, वह इस प्रकार हैं... चित्रकारी, बढ़ईगीरि, जूते बनाना, कपड़े सिलना, कशीदाकारी, रंग-रोगन करना, रेशम और बारीक मलमल का काम करना, सोने के बर्तन बनाना, संगीतकार, सुलेखक आदि।

बर्नियर ने इस उद्धरण में लिखा है कि भारतीय कार्यक्रम औजार एवं सही प्रशिक्षण के अभाव में भी अच्छी वस्तुएं बनाने में सक्षम थे।

उसके अध्याय में वर्णित शिल्प गतिविधियों से मालूम पड़ता है कि कारखाने अथवा कार्यशाला में विशेषज्ञ कारीगरों की देखरेख में ही शिल्प कला के कार्य किए जाते थे।

भारत के कारखानों में अलग-अलग शिल्प के लिए अलग-अलग कमरे थे। कारीगर सुबह अपना काम करने आते और शाम तक अपना काम करके अपने घर चले जाते।

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