यहाँ कुम्हड़बतिया को नाहीं ।। पंक्ति के दुआरा लक्ष्मण न परशुराम जी से क्या कहना चाहा है।
Answers
Answer:
लक्ष्मणजी हँसकर कोमल वाणी से बोले- अहो. मुनीश्वर आप अपने को बड़ा भारी योद्धा समझते हैं। बार-बार मुझे कुल्हाड़ी दिखाते हैं। फूंक से पहाड़ उड़ाना चाहते हैं। यहाँ कोई कुम्हड़े की बतिया (वहुत छोटा फल) नहीं है, जो तर्जनी (अंगूठे की पास की) अँगुली को देखते ही मर जाती हैं। कुठार और धनुष-बाण देखकर ही मैंने कुछ अभिमान सहित कहा था। भृगुवंशी समझकर और यज्ञोपवीत देखकर तो जो कुछ आप कहते हैं, उसे मैं क्रोध को रोककर सह लेता हूँ। देवता, ब्राह्मण, भगवान के भक्त और गो- इन पर हमारे कुल में वीरता नहीं दिखाई जाती है। क्योंकि इन्हें मारने से पाप लगता है और इनसे हार जाने पर अपकीर्ति होती है, इसलिए आप मारें तो भी आपके पैर ही पहना चाहिए। आपका एक-एक वचन ही करोड़ों वज्रों के समान है। धनुष-बाण और कुठार तो आप व्यर्थ ही धारण करते हैं। इन्हें देखकर मैंने कुछ अनुचित कहा हो, तो उसे हे धीर महामुनि! क्षमा कीजिए । यह सुनकर भृगुवंशमणि परशुरामजी क्रोध के साथ गंभीर वाणी बोले।
Answer:
लक्ष्मण ने अत्यंत ही मधुर वाणी में परशुराम पर व्यंग्य करते हुए कहा कि आप अपने आप को बहुत ही वीर योद्धा मानते हैं फिर भी मुझे बार-बार अपना फरसा दिखा रहे हैं और मुझ जैसे पहाड़ को केवल अपनी फेंक से ही उड़ा देना चाहते हैं।