यह किसका दोहा है?
(ग) प्रेम सदा अति ऊँचो, लहै सु कहै इति भांति कीबात छकी।
सुनिकै सबके मन लालच दौरे, पै बोर लखे सबबुद्धि चकी ॥
जग की कविताई के धोखें रहैं, हां प्रवीनन कीमति जाति जकी।
समुझे कवित्त धन आनंद की हीय-आंखिन नेह की पीर लकी
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गुरु गोविंद Ji का दोहा होना चाहिए मुझे तो यही लगता है और ट्राई कर लेना
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