Hindi, asked by dilipgope52, 6 months ago

यह मधु-स्वंय काल की मीना का गुग संचय
यह गोरस-जीवन-कामधेनु का अमृत-पूत पय,
यह अकुर-फोड़ धरा को रवि को तकता निर्भय,
यह प्रकृत, स्वयंभू ब्रम्, अयुतः इसको भी
शक्ति कोदो।
यह दीप, आकेला. स्नेह परा
है गर्व भरा मदमाता, पर इसको भी पक्ति को दे दो।​

Answers

Answered by KumariNeelam
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Answer:

सोभित कर नवनीत लिए।

घुटुरूवनि चलत रेनु-तन-मंडित, मुख दधि लेप किए।।

चारू कपोल, लोल लोचन, गोरोचन-तिलक दिए।

लट-लटकनि मन मत्त मधुप-गन, मादक मधुहिं पिए।।

कठुला-कंठ, वज्र केहरि-नख, राजत रुचिर हिए।

धन्य सूर एको पल इहिं सुख, का सत कल्प जिए।।

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किलकत कान्ह घुटुरूवनि आवत।

मनिमय कनक नंद कैं आंगन, बिम्ब पकरिबैं धावत।।

कबहुं निरखि हरि आपु छांह कौं, कर सौं पकरन चाहत।

किलकि हंसत राजत द्वै दतियां, पुन-पुन तिहिं अवगाहत।।

कनक-भूमि पर कर-पग-छाया, यह उपमा इक राजति।

प्रतिकर प्रतिपद प्रतिमान वसुधा, कमल बैठकी साजति।।

बाल-दसा-सुख निरखि जसोदा, पुनि-पुनि नंद बुलावति।

अंचरा तर लै ढांकि, सूर के प्रभु कौं दूध पियावति।।

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