Hindi, asked by simranmultani15, 8 months ago

यह परिवर्तन जो आप दुनिया में देखना चाहते हो निबंध​

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Answered by Anonymous
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एक नई स्टडी के अनुसार साल 2070 तक तीन अरब से भी ज़्यादा लोग वैसी जगहों पर रह रहे होंगे जहां टेम्प्रेचर 'सहने लायक नहीं' होगा.

जब तक कि ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी नहीं आएगी, बड़ी संख्या में लोग ये महसूस करेंगे कि औसत तापमान 29 डिग्री सेल्सियस से भी ज़्यादा हो गया है.

पर्यावरण की ये स्थिति उस 'कम्फर्ट ज़ोन' से बाहर होगी जिस माहौल में पिछले छह हज़ार सालों से इंसान फलफूल रहे हैं.

इस स्टडी के सहलेखक टिम लेंटन ने बीबीसी को बताया, "ये रिसर्च उम्मीद है कि जलवायु परिवर्तन को ज़्यादा मानवीय संदर्भों में देखता है."

शोधकर्ताओं ने अपनी स्टडी के लिए संयुक्त राष्ट्र के जनसंख्या और वैश्विक तापमान में वृद्धि संबंधी आंकड़ों का इस्तेमाल किया है.

ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से

ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह सेसंयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ भले ही पैरिस जलवायु समझौते पर अमल की कोशिशें की जा रही हैं लेकिन दुनिया तीन डिग्री सेल्सियस तापमान वृद्धि की तरफ़ बढ़ रही है.

ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह सेसंयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ भले ही पैरिस जलवायु समझौते पर अमल की कोशिशें की जा रही हैं लेकिन दुनिया तीन डिग्री सेल्सियस तापमान वृद्धि की तरफ़ बढ़ रही है.स्टडी के अनुसार इंसानी आबादी छोटे-छोटे जलवायु क्षेत्रों में सघन रूप से बस गई है. ज़्यादातर लोग वैसी जगहों पर रह रहे हैं जहां औसत तापमान 11 से 15 डिग्री के बीच है.

ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह सेसंयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ भले ही पैरिस जलवायु समझौते पर अमल की कोशिशें की जा रही हैं लेकिन दुनिया तीन डिग्री सेल्सियस तापमान वृद्धि की तरफ़ बढ़ रही है.स्टडी के अनुसार इंसानी आबादी छोटे-छोटे जलवायु क्षेत्रों में सघन रूप से बस गई है. ज़्यादातर लोग वैसी जगहों पर रह रहे हैं जहां औसत तापमान 11 से 15 डिग्री के बीच है.आबादी का एक छोटा हिस्सा उन इलाकों में रह रहा है जहां औसत तापमान 20 से 25 सेल्सियस के बीच है. इन जलवायु परिस्थितियों में लोग हज़ारों सालों से रह रहे हैं.

ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह सेसंयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ भले ही पैरिस जलवायु समझौते पर अमल की कोशिशें की जा रही हैं लेकिन दुनिया तीन डिग्री सेल्सियस तापमान वृद्धि की तरफ़ बढ़ रही है.स्टडी के अनुसार इंसानी आबादी छोटे-छोटे जलवायु क्षेत्रों में सघन रूप से बस गई है. ज़्यादातर लोग वैसी जगहों पर रह रहे हैं जहां औसत तापमान 11 से 15 डिग्री के बीच है.आबादी का एक छोटा हिस्सा उन इलाकों में रह रहा है जहां औसत तापमान 20 से 25 सेल्सियस के बीच है. इन जलवायु परिस्थितियों में लोग हज़ारों सालों से रह रहे हैं.हालांकि ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से अगर दुनिया का औसत तापमान तीन डिग्री बढ़ गया तो एक बड़ी आबादी को इतनी गर्मी में रहना होगा कि वे 'जलवायु की सहज स्थिति' के बाहर हो जाएंगे.

ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह सेसंयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ भले ही पैरिस जलवायु समझौते पर अमल की कोशिशें की जा रही हैं लेकिन दुनिया तीन डिग्री सेल्सियस तापमान वृद्धि की तरफ़ बढ़ रही है.स्टडी के अनुसार इंसानी आबादी छोटे-छोटे जलवायु क्षेत्रों में सघन रूप से बस गई है. ज़्यादातर लोग वैसी जगहों पर रह रहे हैं जहां औसत तापमान 11 से 15 डिग्री के बीच है.आबादी का एक छोटा हिस्सा उन इलाकों में रह रहा है जहां औसत तापमान 20 से 25 सेल्सियस के बीच है. इन जलवायु परिस्थितियों में लोग हज़ारों सालों से रह रहे हैं.हालांकि ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से अगर दुनिया का औसत तापमान तीन डिग्री बढ़ गया तो एक बड़ी आबादी को इतनी गर्मी में रहना होगा कि वे 'जलवायु की सहज स्थिति' के बाहर हो जाएंगे.यूनिवर्सिटी ऑफ़ एक्सटेर में ग्लोबल सिस्टम इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर और जलवायु विशेषज्ञ टिम लेंटन की इस स्टडी में चीन, अमरीका और यूरोप के वैज्ञानिकों ने भाग लिया था.

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