“यही तिहवार ही तुम्हारी म्युनिसिपालिटी है।' भारतेन्दु के इस कथन का क्या अभिप्राय है
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please see the attached picture dear
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यह तिवारी आपकी नगर पालिका है। ऐसे सभी त्योहारों, सभी तीर्थों आदि में कुछ ज्ञान है। उनकी मिश्रित धर्म नीति और दूध और पानी जैसी सामाजिक नीति है। बीच में जो दोष आया है वह यह है कि उन्होंने इस धर्म को क्यों स्वीकार किया, लोगों ने इसका अर्थ नहीं समझा और इन बातों को वास्तविक धर्म के रूप में स्वीकार कर लिया।
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तिहवर उत्सव का अर्थ है परमानंद, खुशी, प्रकाश, चमक, गंध, प्रेम, प्रियजनों का साथ, संक्षेप में, सुखद परिवर्तन। हर दिन एक ही दिनचर्या में रचनात्मक परिवर्तन। फेस्टिव सीजन एक बार फिर दस्तक दे चुका है। चारों ओर जोश और हर्षित चेहरे, सजाए गए घर, भक्ति में लोग, व्यंजनों की सुगंध और उनका सहारा।
शहरों और आजीविका के कारण विभाजित रह रहे परिवारों का युग एक साथ आने लगा है और त्योहार मनाना शुरू हो गया है, ये त्योहार हम में नई ऊर्जा और जीवन का संचार करते हैं। सेलिब्रेशन हमें एक-दूसरे के करीब लाते हैं और ढेर सारी मस्ती का बहाना लेकर आते हैं। अभी तक नवरात्रि में पूजा और मस्ती का दौर था। इसके तुरंत बाद दशहरा आया और अब दीपावली होगी।
दिवाली जैसी बड़ी। तीसरा, इतनी तैयारी भी। चूंकि दिवाली बारिश के तुरंत बाद आती है, इसलिए उससे पहले घरों और दुकानों की बड़े पैमाने पर सफाई की जाती है। दिन उज्ज्वल हैं, इसलिए इन दिनों रातें उज्ज्वल हैं। इन दिनों वह जहां भी हैं अपने चाहने वालों के बीच लौट आते हैं। रिश्तों के बंधन मजबूत होते हैं। चारों तरफ रौनक है। यह ये त्यौहार हैं जो पीढ़ियों के बीच की खाई को पाटने का काम करते हैं। हमारी परंपरा और संस्कृति एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तांतरित होती रहती है।
तिहवार की खुशी इतनी है कि छुट्टी होने पर भी हम सुबह जल्दी उठते हैं और यह सिलसिला आज नहीं बचपन से चल रहा है। और सच कहूं तो बचपन जोश से भरा होता है और हर चीज का लुत्फ उठाता है। इसलिए त्योहारों पर हर किसी का मन बच्चा बनना चाहता है। ये त्यौहार हमें रिश्तों के इंद्रधनुषी रंग भरने का मौका देते हैं। ये त्योहार इंसान को इंसान से जोड़ने का कारण हैं। घर ही नहीं दिलों को भी इतना रोशन कर दो कि उसकी रोशनी दूर-दूर तक पहुंच जाए।
#SPJ2