यह दंतुरित मुस्कान के प्रसंग लिखें |
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प्रसंग : दंतुरित मुस्कान
प्रस्तुत पंक्तियां हमारी पाठ्य पुस्तक केअंतर्गत सम्मिलित जैन कवि नागार्जुन की कविता यह दंतुरित मुस्कान से ली गई है | बिहार में कभी एक छोटे बच्चे की मुस्कान को देखकर भाव विभोर हो उठा है | नागार्जुन का मानना है कि वस्तु इसी स्वभाव और कोमल सुंदरता में जीवन का संदेश छुपा हुआ है | मिसिंग किया दंतुरित मुस्कान तब और भी मोहक हो उठती है, जब उसमें उसकी नजरों का बाकंपन जुड़ जाता है |
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अबोध शिशु ! तुम्हारे नेता तो की मुस्कुराहट मरते हुए भी जान डाल देने वाली है | तुम्हारे धूल लिपटे यह ध्यान पैसे लगते हैं जैसे तालाबों से निकलकर कमल मेरी झोपड़ी में खिल गए हो | ओ प्राण स्वरूप ! शिशु संभवत: तुम्हारी ही स्पर्श पाकर मेरे प्राणों का प्रसाण पीछल कर जल बन गया हो | तुम्हारे शरीर को छू कर ऐसा लगता है जैसे शेफाली के फूल झड़ने लगे यानी मन आनंद से झूम उठा | तुम मुझे पहचान सके हो कि मेरा पर्स पर्स पर्स अथवा बबूल जैसा किसी प्रकार का था | यहां पास और बबूल कहने से कवि का आशय कोमल शिशु की तुलना में उसकी अपनी कठोरता से हैं | क्या तुम मुझे एकटक देखते ही रहोगे | यदि तुम थक गए हो तो मैं अपनी नजरें तुम पर से हटा देता हूं | कोई बात नहीं यदि तुम से मेरा परिचय एक बार में ना हो सका | मैं तुम्हारी मां का आभार मानता हूं | जिसके कारण तुम्हारा जीवन संभव हुआ और मैं तुम्हारे नवजीवन को देख और जान पाया | ओ शिशु ! तुम्हारी यह नए-नए दांतो की मुस्कान नए जीवन का संदेश देती है |
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