yaksh yudishtar ki story hindi me
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अनिरुद्ध जोशी
यक्ष और युधिष्ठिर के बीच जो संवाद हुआ है उसे जानने के बाद आप जरूर हैरान रह जाएंगे। आप भी अपने जीवन में कुछ प्रश्नों के उत्तर ढूंढ ही रहे होंगे। यदि ऐसा है तो निश्चित ही इसे अंत तक पढ़ें। यह अध्यात्म, दर्शन और धर्म से जुड़े प्रश्न ही नहीं है, यह आपकी जिंदगी से जुड़े प्रश्न भी है।
पांडवजन अपने तेरह-वर्षीय वनवास के दौरान वनों में विचरण कर रहे थे। तब उन्होंने एक बार प्यास बुझाने के लिए पानी की तलाश की। पानी का प्रबंध करने का जिम्मा प्रथमतः सहदेव को सौंप गया। उन्हें पास में एक जलाशय दिखा जिससे पानी लेने वे वहां पहुंचे।
जलाशय के स्वामी अदृश्य यक्ष ने आकाशवाणी के द्वारा उन्हें रोकते हुए पहले कुछ प्रश्नों का उत्तर देने की शर्त रखी। सहदेव उस शर्त और यक्ष को अनदेखा कर जलाशाय से पानी लेने लगे। तब यक्ष ने सहदेव को निर्जीव कर दिया। सहदेव के न लौटने पर क्रमशः नकुल, अर्जुन और फिर भीम ने पानी लाने की जिम्मेदारी उठाई। वे उसी जलाशय पर पहुंचे और यक्ष की शर्तों की अवज्ञा करने के कारण निर्जीव हो गए।
अंत में चिंतातुर युधिष्ठिर स्वयं उस जलाशय पर पहुंचे। अदृश्य यक्ष ने प्रकट होकर उन्हें आगाह किया और अपने प्रश्नों के उत्तर देने के लिए कहा। युधिष्ठिर ने धैर्य दिखाया। उन्होंने न केवल यक्ष के सभी प्रश्न ध्यानपूर्वक सुने अपितु उनका तर्कपूर्ण उत्तर भी दिया जिसे सुनकर यक्ष संतुष्ट हो गया। संतुष्ट होने के बाद यक्ष ने क्या किया और क्या थे वे प्रश्न जानिए अगले पन्ने पर...हालांकि प्रश्न तो और भी है लेकिन यहां कुछ ही दिए गए हैं।
यक्ष प्रश्न : कौन हूं मैं?
युधिष्ठिर उत्तर : तुम न यह शरीर हो, न इन्द्रियां, न मन, न बुद्धि। तुम शुद्ध चेतना हो, वह चेतना जो सर्वसाक्षी है।
टिप्पणी : व्यक्ति को खुद से यह सवाल पूछना चाहिए कि मैं कौन हूं। क्या शरीर हूं जो मृत्यु के समय नष्ट हो जाएगा? क्या आंख, नाक, कान आदि पांचों इंद्रियां हूं जो शरीर के साथ ही नष्ट हो जाएंगे? तब क्या में मन या बुद्धि हूं। अर्थात मैं जो सोचता हूं या सोच रहा हूं- क्या वह हूं? जब गहरी सुषुप्ति आती है तब यह भी बंद होने जैसा हो जाता है। तब मैं क्या हूं? व्यक्ति खुद आंख बंद करके इस पर बोध करे तो उसे समझ में आएगा कि मैं शुद्ध आत्मा, चेतना और सर्वसाक्षी हूं। ऐसा एक बार के आंख बंद करने से नहीं होगा।
यक्ष प्रश्न: जीवन का उद्देश्य क्या है?
युधिष्ठिर उत्तर: जीवन का उद्देश्य उसी चेतना को जानना है जो जन्म और मरण के बन्धन से मुक्त है। उसे जानना ही मोक्ष है।
टिप्पणी : बहुत से लोगों का उद्देश्य धन कमाना हो सकता है। धन से बाहर की समृद्धि प्राप्त हो सकती है, लेकिन ध्यान से भीतर की समृद्धि प्राप्त होती है। मरने के बाद बाहर की समृद्धि यहीं रखी रह जाएगी लेकिन भीतर की समृद्धि आपके साथ जाएगी। महर्षि पतंजलि ने मोक्ष तक पहुंचने के लिए सात सीढ़ियां बता रखी है:- यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा और ध्यान। ध्यान के बाद समाधी या मोक्ष स्वत: ही प्राप्त होता है।
यक्ष प्रश्न: जन्म का कारण क्या है?
युधिष्ठिर उत्तर: अतृप्त वासनाएं, कामनाएं और कर्मफल ये ही जन्म का कारण हैं।
टिप्पणी : जन्म लेना और मरना एक आदत है। इस आदत से छुटकारा पाने का उपाय उपनिषद, योग और गीता में पाया जाता है। वासनाएं और कामनाएं अनंत होती है। जब तक यह रहेगी तब तक कर्मबंधन होता रहेगा और उसका फल भी मिलता रहेगा। इस चक्र को तोड़ने वाला ही जितेंद्रिय कहलाता है।
यक्ष प्रश्न: जन्म और मरण के बन्धन से मुक्त कौन है?
युधिष्ठिर उत्तर: जिसने स्वयं को, उस आत्मा को जान लिया वह जन्म और मरण के बन्धन से मुक्त है।
टिप्पण : मैं कौन हूं और मेरा असली स्वरूप क्या है। इस सत्य को जानने वाला ही जन्म और मरण के चक्र से मुक्त हो जाता है। यह जानने के लिए अष्टांग योग का पालन करना चाहिए।
यक्ष प्रश्न:- वासना और जन्म का सम्बन्ध क्या है?
युधिष्ठिर उत्तर:- जैसी वासनाएं वैसा जन्म। यदि वासनाएं पशु जैसी तो पशु योनि में जन्म। यदि वासनाएं मनुष्य जैसी तो मनुष्य योनि में जन्म।
टिप्पणी : वासना का अर्थ व्यापक है। यह चित्त की एक दशा है। हम जैसा सोचते हैं वैसे बन जाते हैं। उसी तरह हम जिस तरह की चेतना के स्तर को निर्मित करते हैं अगले जन्म में उसी तरह की चेतना के स्तर को प्राप्त हो जाते है। उदाहरणार्थ एक कुत्ते के होश का स्तर हमारे होश के स्तर से नीचे है लेकिन यदि हम एक बोतल शराब पीले तो हमारे होश का स्तर उस कुत्ते के समान ही हो जाएगा। संभोग के लिए आतुर व्यक्ति के होश का स्तर भी वैसा ही होता है।