यस्मिन् जीवति जीवन्ति बहवः स तु जीवतु।
काकोऽपि किं न कुरुते चञ्च्वा उदरपूरणम्।।
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जिस व्यक्ति के जीवित रहने के तरीके से बहुत से
अन्य व्यक्तियों का जीवनयापन संभव होता है वे ही वास्तव में
सच्चा जीवन जीते हैं ,अन्यथा एक साधारण कव्वा भी अपना
पेट भरने के लिये अपनी चोंच से क्या क्या नहीं कर लेता है ?
(एक क्षुद्र से क्षुद्र प्राणी जीवित रहने के लिये कुछ न कुछ प्रयत्न
करता रहता है परन्तु महान् व्यक्तियों के प्रयत्नों से समाज के गरीब
तथा पिछडे वर्ग के लोगों को भी अच्छा जीवन जीने के लिये सहायता
और प्रेरणा मिलती है | इस सुभाषित में ऐसे ही महान् व्यक्तियों
की प्रसंशा की गयी है | एक कवि ने भी कहा है कि - "अपने लिये
जिये तो क्या जिये, तू जी ऐ दिल जमाने के लिये " |
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