यस्य धर्मविहीनानि दिनान्यायान्ति यान्ति च।
सः लोहकारस्नैव श्वसन्नपि न जीवति ।। 1।।
वय- धर्मविहीनानि यस्य दिनान्यायान्ति यान्ति च
लोहकारस्नैव सः श्वसन्नपि न जीवति।
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यस्य धर्मविहीनानि दिनान्यायान्ति यान्ति च।
सः लोहकारस्नैव श्वसन्नपि न जीवति ।। 1।।
भावार्थ ⦂ जिन लोगों के दिन धर्म रहित होकर गुजरते हैं, अर्थात जो लोग अपना जीवन धर्म विहीन होकर गुजरते हैं, वह लोग देखने के लिये भले ही जीते हों लेकिन भले ही उनकी साँसे लोहार की धौकनी से समान चलती हों, लेकिन ऐसे धर्मविहीन लोग जीवित दिखते हुए भी वास्तव में जीवित नही होते।
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