यशोधा मे उदधव के माध्यम से किसको क्या भेजा?
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Explanation:
भाई 'देवभाग' का पुत्र कहा गया है, अत: उन्हें श्रीकृष्ण का चचेरा भाई भी बताया गया है। एक अन्य मत के अनुसार ये सत्यक के पुत्र तथा कृष्ण के मामा कहे गये हैं। बृहस्पति के शिष्य दान, व्रत, तपस्या, यज्ञ, जप, वेदाध्ययन, इन्द्रियसंयम तथा अन्य अनेक बार के पुण्यकर्मों द्वारा श्रीकृष्णचन्द्र की भक्ति ही प्राप्त की जाती है। भक्ति की प्राप्ति में ही इन सब साधनों की सफलता है। उद्धव जी साक्षात देवगुरु बृहस्पति के शिष्य थे। इनका शरीर श्रीकृष्णचन्द्र के समान ही श्यामवर्ण का था और नेत्र कमल के समान सुन्दर थे। ये नीति और तत्त्व-ज्ञान की मूति थे। गोकुल गमन मथुरा प्रवास में जब श्रीकृष्ण को अपने माता-पिता तथा गोपियों के विरह-दु:ख का स्मरण होता है, तो वे उद्धव को नन्द के गोकुल भेजते हैं तथा माता-पिता को प्रसन्न करने तथा गोपियों के वियोग-ताप को शान्त करने का आदेश देते हैं। उद्धव सहर्ष कृष्ण का सन्देश लेकर ब्रज जाते हैं और नन्दादि गोपों तथा गोपियों को प्रसन्न करते हैं। कृष्ण के प्रति गोपियों के कान्ता भाव के अनन्य अनुराग को प्रत्यक्ष देखकर उद्धव अत्यन्त प्रभावित होते हैं। वे कृष्ण का यह सन्देश सुनाते हैं कि तुम्हें मेरा वियोग कभी नहीं हो सकता, क्योंकि मैं आत्मरूप हूँ, सदैव तुम्हारे पास हूँ। मैं तुमसे दूर इसलिए हूँ कि तुम सदैव मेरे ध्यान में लीन रहो। तुम सब वासनाओं से शून्य शुद्ध मन से मुझमें अनुरक्त रहकर मेरा ध्यान करने में शीघ्र ही मुझे प्राप्त करोगी। नन्दबाबा से भेंट उद्धव वृष्णवंशियों में प्रधान पुरुष थे। वे साक्षात बृहस्पति के शिष्य और परम बुद्धिमान थे। मथुरा आने पर भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें अपना मन्त्री और अन्तरंग सखा बना लिया था। भगवान ने अपना संदेश पहुँचाने तथा गोपियों को सान्त्वना देने हेतु इनको ब्रज भेजा। वस्तुतः दयामय भक्तवत्सल प्रभु अपने प्रिय भक्त उद्धव को ब्रज एवं ब्रजवासियों के लोकोत्तर प्रेम का दर्शन कराना चाहते थे। जब उद्धव ब्रज में पहुँचे, तब उनसे मिलकर नन्दबाबा को विशेष प्रसन्नता हुई। उन्होंने उनको गले लगाकर अपना स्नेह प्रदर्शित किया। आतिथ्य-सत्कार के बाद नन्दबाबा ने उनसे वसुदेव-देवकी तथा कृष्ण-बलराम का कुशल-क्षेम पूछा। उद्धव नन्दबाबा और यशोदा मैया के हृदय में श्रीकृष्ण के प्रति दृढ़ अनुराग का दर्शन कर आनन्द मग्न हो गये
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कन्हिया
कन्हियायशोधा ने गायों को चराने के लिए कन्हैया को भेजने के लिए नंद को ताना मारा। उसे सूखी रोटियाँ खानी थीं और गायों के पीछे भागना था। इसलिए, वह चला गया। नंद ने कहा, "उसने गायों को चराने के लिए जोर देने के बजाय उसे नहीं भेजा।"