यदि मैं अध्यापिका होती
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मैं जीवन में अध्यापिका बनना चाहती हूँ। इसके कई कारण हैं। मैं आज की अनेक अध्यापिकाओं से प्रभावित हुई हैं। उनके अनेक गुणों ने मुझे आकर्षित किया है। इसके साथ ही मैंने ऐसी अध्यापिकाएँ भी देखी हैं जो पूर्णतया अध्यापन को समर्पित हैं। ऐसी अध्यापिकाएँ मेरी आदर्श हैं।
यदि मैं अध्यापिका होती तो सबसे पहले मैं अपना सारा ध्यान विद्यार्थियों को सुशिक्षित बनाने में लगा देती। मैं अपने विषय का गहन अध्ययन करती। इससे मैं उस विषय को गहराई से समझा पाती। मैं देखती हूँ कि कई अध्यापिकाओं को विद्यार्थियों द्वारा पूछे प्रश्नों के उत्तर नहीं आते। मैं प्रत्येक विद्यार्थी को प्रश्न पूछने के लिए उत्साहित करके उसकी शंकाओं का समाधान करती।
मेरी कई अध्यापिकाएँ बहुत अच्छी हैं। मैं उनकी तरह शांत रहकर पढ़ाती। पढ़ाई के अतिरिक्त विद्यार्थियों के साथ अपनत्व से बातचीत करती। उनकी व्यक्तिगत समस्याएँ जानकर उनका समाधान करती। कमज़ोर विद्यार्थियों पर अधिक ध्यान देकर उन्हें और अच्छी तरह समझाती। कक्षा के पश्चात् उन्हें बुलाकर पढ़ाती।
मैं विद्यार्थियों को साहित्यिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लेने के लिए उत्साहित करती। इनसे उनमें सुसंस्कार आते। प्रत्येक विद्यार्थी में कोई-न-कोई गुण अवश्य होता है। उनके उन गुणों को और विकसित करने के अवसर प्रदान करती।
आदर्श अध्यापिका बनना बहुत कठिन कार्य है। अध्यापिका में माँ-सा स्नेह और धैर्य होना चाहिए। उसमें नेतृत्व-शक्ति होनी चाहिए। उसमें राष्ट्रीयता की भावना कूट-कूटकर भरी होनी चाहिए। उसमें जाति-पाति और धार्मिक भेदभाव की भावना नहीं होनी चाहिए। यदि मैं अध्यापिका होती तो ऐसे समस्त गुणों को स्वयं में समाहित करती। मेरे यही गुण विद्यार्थियों में आते। इससे वे सुशिक्षित ही नहीं संस्कारवान बनते। वे भारत के सच्चे नागरिक बनते। इससे भारत का नया रूप बनता। अध्यापक-अध्यापिकाओं को राष्ट्र-निर्माता यूँ ही नहीं कहा जाता। यदि मैं अध्यापिका होती तो अपने इस उत्तरदायित्व का पालन भी करती।