यदि मैं पूंजीपति होता पर निबन्ध। Yadi Mein Punjipati Hota Hindi Essay
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उद्योग या व्यवसाय में पूंजी लगाना पूंजीपति होने की अनिवार्य शर्त है। अतः यदि मैं पूंजीपति हुआ तो उद्योग शुरू करूंगा और व्यवसाय में धन लगाऊंगा। उद्योग या व्यवसाय में पूंजी लगाने का मानवीय दृष्टि से महत्व यह होगा कि मैं कुछ लोगों को जीविका दे सकूंगा। देश की बढ़ती बेरोजगारी का एक अंश ही सही कम करने में अपना योगदान दे सकूंगा। दूसरा उद्योग या व्यवसाय से प्राप्त आर्थिक लाभ पर आयकर दे कर राष्ट्र की आर्थिक सेवा करने का सौभाग्य प्राप्त करूंगा।
यदि मैं पूंजीपति होता तो प्रकाशन उद्योग में पूंजी लगाता और पुस्तक व्यवसाय को स्वीकार कर मां सरस्वती की सेवा में अपना जीवन भी कृतार्थ करता। अमेरिका आदि में चैतन्य महाप्रभु के अनुयाई, वैष्णव संत प्रभुपाद मृत्यु पूर्व यह वचन कहे थे ‘मेरे गुरु महाराज कहा करते थे जो कुछ भी धन हो उससे पुस्तकें प्रकाशित करो। छापो और छापो। मैंने अपनी पुस्तक छापी है अब तुम भी ऐसा ही करो।‘
प्रकाशन का क्षेत्र व्यापक और विविधतापूर्ण है। प्रत्येक का ज्ञान, किंतु विशेषता किसी को नहीं इस उक्ति के विरुद्ध मैं रहूंगा। इसलिए मैं केवल हिंदी का प्रकाशक बनूंगा। इससे मुझे तीन प्रकार का आंतरिक सुख प्राप्त होगा- (1) मां भारती की सेवा का शुभ अवसर शुद्ध और प्रमाणिक ग्रंथ साफ कर, (2) राष्ट्र की सेवा हिंदी में विश्व स्तर के प्रकाशन करके हिंदी को राष्ट्रभाषा के पद पर सिंहासनारूढ़ के द्वारा। (3) हिंदी पर लांछन लगाकर, गालियां देकर मां भारती पर कीचड़ उछालने वालों को अपने प्रकाशनों द्वारा मुंहतोड़ जवाब देकर।
नए वर्ष में लगभग 50 पुस्तकों के प्रकाशन का कार्यक्रम रखूंगा। इसमें कविता और गद्य की प्रायः सभी विधाओं पर पुस्तकें छापूंगा। हिंदी का एक क्षेत्र ऐसा भी है जिसमें बहुत कम प्रकाशन हुआ है वह है शोध प्रबंध। तीन वर्ष से लेकर पांच वर्ष तक खोज करके अपनी मान्यता प्रस्तुत करने वाले शोध प्रबंध विश्वविद्यालय की अलमारियों में ही पांडुलिपि रूप में धूल चाटते रहे, इससे बड़ी लज्जाजनक बात क्या हो सकती है। इसलिए मैं कम से कम दस शोध प्रबंध प्रतिवर्ष छापता। हिंदी का बाल साहित्य तकनीकी दृष्टि से बहुत उच्च स्तर का है इसलिए इस क्षेत्र को हाथ भी नहीं लगाऊंगा।
कविता, कहानी, उपन्यास, निबंध या शिक्षा के क्षेत्र में नए लेखकों को प्रोत्साहन देने में मेरी प्राथमिकता रहेगी। कारण इनमें से जयशंकर प्रसाद, निराला और महादेवी जन्म लेंगे। प्रेमचंद, भाग्य और धर्मवीर भारती उभरेंगे। आचार्य रामचंद्र शुक्ल, महावीर प्रसाद द्विवेदी तथा हजारी प्रसाद द्विवेदी जैसे महारथी प्रकट होंगे। एक ही लेखक को प्रतिवर्ष छापने से परहेज करूंगा। क्योंकि इससे अन्य लेखकों को शुभ अवसर मिलने में व्यवधान पड़ता है।
पुस्तक को कंप्यूटर से कंपोज करूंगा। प्रूफरीडिंग के लिए प्रूफरीडर रखूंगा। तीन बार प्रूफ की शुद्धि होने के बाद चौथा प्रूफ लोखक को भेजूँगा ताकि तकनीकि दृष्टि से कोई शब्द अशुद्ध जा रहा है तो वह शुद्ध हो सके और पुस्तक शुद्ध छप सके। जैसे घर में जितनी बार झाड़ू मारो कुछ कूड़ा निकल ही आता है उसी प्रकार अशुद्धि छूट जाना स्वाभाविक है। इसके बाद पुस्तक की फिल्म बनेगी और छपेगी। मेरे प्रोडक्शन विभाग का यह कर्तव्य होगा कि पुस्तक की छपाई उच्च कोटि की हो।
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यदि मैं पूंजीपति होता
आधुनिक युग भौतिकवादी युग है। वस्तुतः पूरे विश्व में धन का ही एक नियम है। वास्तव में, लगभग हर कोई पैसे के पीछे होता है, चाहे वह कुछ भी करने का दावा करे या करने का दावा करे।
इस बात पर जोर देने की जरूरत नहीं है कि अब हर कोई करोड़पति बनना चाहता है। आम तौर पर एक गरीब आदमी के लिए करोड़पति बनना बहुत मुश्किल होता है। लेकिन कुछ चैनल और साधन हैं जैसे जैकपॉट लॉटरी, जी.के. प्रतियोगिताएं, साहित्यिक और अन्य पुरस्कार, आदि जो एक रंक को भी उसके करोड़पति बनने के सपने को साकार करने के लिए बना सकते हैं यदि वह भाग्यशाली है। सामान्य तौर पर, मैं करोड़पति बनने के बारे में नहीं सोच सकता।
यह तभी हो सकता है जब मुझे कोई लकी स्ट्रोक मिले। लेकिन मेरे पास कल्पना शक्ति है और मैं कम से कम अपनी कल्पना में तो पूंजीपति बन सकता हूं। अगर मैं एक पूंजीपति होता, तो मैं अपने धन का सबसे विवेकपूर्ण तरीके से उपयोग करता और वह मेरे और मेरे परिवार और दूसरों के लिए सकारात्मक उद्देश्यों के लिए होता। मैं सबसे गरीब बच्चों को शिक्षा दिलाने में मदद करूंगा। यदि आवश्यक हुआ तो मैं उनकी पुस्तकों, फीस, स्वास्थ्य देखभाल और यहां तक कि भोजन और कपड़ों के लिए भुगतान करूंगा।
मैं ग्रामीण क्षेत्रों में औषधालय और स्कूल खोलूंगा। मैं उद्योगवाद बढ़ाने और हजारों बेरोजगार मेधावी युवकों और महिलाओं को रोजगार प्रदान करने के लिए कारखानों की एक श्रृंखला शुरू करूँगा। मैं अपने इलाके में बच्चों के लिए एक पार्क उपलब्ध कराऊंगा। मैं अपने सभी गरीब संबंधों और परिचितों की मदद करूंगा। मैं अपने शहर की नगर समिति को पूरे शहर में सीवरेज की व्यवस्था करने में मदद करूंगा।
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