English, asked by shirgaonkararbz51, 3 months ago

यदि में राष्ट्रपति होता तो

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Answered by s8c1582tanya7655
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Answer:

अगर मैं राष्ट्रपति होती तो kai मायने में अप्ने देश को बदलती।मैं अप्ने देश को सचमुच achha देश बनाती।

Answered by prabhleen643
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यदि मैं राष्ट्रपति बन जाऊं तो मेरा पहला कार्य यह होगा कि मैं राष्ट्रपति भवन के सबसे मामूली और सादा कमरे में अपना निवास बनाऊंगा। मैं व्यर्थ के दिखावे और ठाट-बाट को समाप्त कर दूंगा। मैं यह जानता हूं कि भारतीय संविधान के अनुसार राष्ट्रपति को मंत्रिमंडल के कहे अनुसार ही पूरी तरह चलना पड़ता है। मैं संविधान के अनुसार चलूंगा। संविधान में यह तो नहीं लिखा कि राष्ट्रपति मंत्रिमंडल के फैसले और कार्यों का गहराई से अध्ययन ना करें। मैं केवल रबड़ की मोहर बनकर राष्ट्रपति भवन में रहना नहीं चाहूंगा। कम से कम मैं मंत्रिमंडल की हर कार्रवाई का गहराई से अध्ययन करूंगा और अपने परामर्श मंत्रिमंडल को दूंगा।

राष्ट्रपति किसी दल, जाति अथवा धर्म का नहीं होता। वह तो पूरे देश का होता है। वह पूरे देश का प्रतीक होता है। वह व्यक्तिगत, दलगत और अन्य स्वार्थों से ऊपर उठकर सोच सकता है। मंत्रियों के लिए ऐसा करना संभव नहीं होता क्योंकि वे संकुचित स्वार्थों में बंधे होते हैं। इस कारण मेरे परामर्श पूरे देश की दृष्टि से होंगे और उसके लिए कल्याणकर होंगे।

मैं राष्ट्रपति भवन की ऊंचाई में बंदी होना स्वीकार नहीं करूंगा। मैं चाहूंगा कि मैं देश के कोने-कोने में जाऊँ और आम लोगों से संपर्क स्थापित करके उनसे कुछ लूं और उन्हें कुछ दूँ। कम-से-कम उन्हें यह कहूँ कि वे पूरे देश की भलाई की दृष्टि से सोचें और सिर्फ अपने छोटे स्वार्थों को लेकर ना तो आपस में और ना ही सरकार से उलझे। एक राष्ट्रपति को, वह भी लोकतंत्र के राष्ट्रपति को लोगों के बीच ही रहना शोभा देता है। उनसे कटना बड़ा खतरनाक सिद्ध होता है।

मैं देश की शिक्षा प्रणाली की ओर विशेष ध्यान दूंगा। स्वतंत्रता के बाद से हमारे देश का यह दुर्भाग्य रहा है कि हमारे शिक्षा-शास्त्रियों ने यही प्रयत्न किया है कि यूरोप, अमरीका और रूस से विदेशी पौधे ला-ला कर इस देश की मिट्टी में उगाए जाए। अपने देश की शिक्षा-संबंधी समस्याओं को अपने देश की धरती में से हल करने की कोशिश उन्होंने कभी नहीं की है। परिणाम यह हुआ है कि शिक्षा करोड़ों छात्रों की आवश्यकताओं को पूरा करने और उन्हें योग्य बनाने में विफल रही है। मैं शिक्षा-शास्त्रियों से अनुरोध करूंगा कि वे विदेश के दौरे बंद करके अपने देश की परिस्थितियों का गहरा अध्ययन करें और तब एक नई शिक्षा-प्रणाली का विकास करें।

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