यदि मनुष्य और पशुके ब च कोई अींतर हैतो केवल इतना कक मनुष्य के भ तर वववेक हैऔर पशुवववेकहीन है। इस वववेक के कारण मनुष्य को यह बोध रहता हैकक क्या अच्छा हैऔर क्या बुरा। इस वववेक के कारण मनुष्य यह समझ पाता है कक के वल खाने-प ने और सोने में ही ज वन का अर्य और इतत नहीीं। के वल अपना पेट भरने से ही जगत के सभ कायय सींपन्न नहीीं हो जाते और यहद मनुष्य का जन्म लमला हैतो केवल इस च ज का हहसाब रखने के ललए नहीीं कक इस जगत ने उसे क्या हदया है और न ही यह सोचने के ललए कक यहद इस जगत ने उसे कुछ नहीीं हदया तो वह इस सींसार के भले के ललए कायय क्यों करे। मानवता का बोध कराने वाले इस गुण ‘वववेक’ की जनन का नाम ‘लशक्षा’ है। लशक्षा जजससे अनेक रूप समय के पररवतयन के सार् इस जगत में बदलते रहते हैं, वह जहााँकहीीं भ ववद्यमान रही हैसदैव अपना कायय करत रही है। यह लशक्षा ही हैजजसकी धुरी पर यह सींसार चलायमान है। वववेक से लेकर ववज्ञान और ज्ञान की जन्मदात्र लशक्षा ही तो है। लशक्षा हमारे भ तर ववद्यमान वह तत्त्व हैजजसके बल पर हम बात करते हैं, कायय करते हैं, अपनेलमत्रों और शत्रुओीं की सूच तैयार करते हैं, उलझनों को सुलझनों मेंबदलते हैं। असल मेंस खनेऔर लसखाने की प्रकिया को ही ‘लशक्षा’ कहते हैं। लशक्षा उन तथ्यों का तर्ा उन तरीकों का ज्ञान करात हैजजन्हें हमारे पूवयजों नेखोजा र्ा-सभ्य तर्ा सुख ज वन बबतानेललए। आज यहद हम सुख ज वन बबताना चाहते हैंतो हमेंउन तरीकों को स खना होगा, उन तथ्यों को जानना होगा जजन्हेंजानने के ललए हमारे पूवयजों नेतनरींतर सहदयों तक शोध ककया है। यह के वल लशक्षा के द्वारा ही सींभव है।
प्रश्न
(क) प्रस्तुत गद्याींश का उचचत श र्कय ललखखए।
(ख) मनुष्य और पशुमेंक्या अन्तर है?
(ग) वववेक से ककसका बोध होता है तर्ा उसका जन्म कै से होता है?
(घ) ‘ववज्ञान’ शब्द मेंउपसगय और मूल शब्द ललखखए।
(ड) जगत और मनुष्य के दो दो पयाययवाच शब्द ललखखए।
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sparkle is dg t sh ev rb tb ub an even uchhal
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