यदि वह व्यक्ति घायल है तो डायरी में मरहम की गाथा जरूर लिखेगा। जिसकी हत्या न कर सका हो या
निंदा जरूर लिखेगा। कुछ लोग डायरी को मृत व्यक्ति का अतिम बयान मानते हैं और उसे अंतिम साक्ष्य के
में प्रतिष्ठित करने की चेष्टा करते हैं। ऐसा कदापि नहीं होना चहिए। डायरी अंततः एक आत्मगत विधा है।
वस्तुगत नहीं है और उसे सिर्फ़ सुझावात्मक मानना चाहिए, न कि अंतिम सत्य। डायरी शत-प्रतिशत लेखक ।
व्यक्तित्व, आकांक्षा और विफलता के बीच एक झूलता हुआ स्पेस है।
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(क) डायरी को ‘पादरी' की उपमा क्यों दी गई है?
(ख) डायरी से वस्तुगत होने की उम्मीद क्यों नहीं की जानी चाहिए?
(ग) 'डायरी अंततः एक व्यक्ति का आत्म-प्रेक्षण है'- कथन से लेखक का क्या तात्पर्य है?
(घ) डायरी की भाषा अंतर्मुखी क्यों होती है?
(ङ) डायरी वास्तव में है क्या?
(च) प्रस्तुत गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
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