यद्यांश-1
आप इस गद्यांश का चयन करते हैं, तो कृपया उत्तर पुस्तिका में लिखें कि आप प्रश्न संख्या । में दिए गए गद्यांशन पर आधारित
प्रश्नों के उत्तर लिख रहे हैं।
हमारे देश भारतवर्ष में अनंत काल से गुरु-शिष्य संबंध बड़े ही मधुर रहे हैं। महान गुरुजनों ने अपने ज्ञान और अनुभव से अपने
कच्चों को लाभान्वित किया। शिष्यों ने भी कठिन परिश्रम करके अपने गुरु की महिमा को उजागर किया। भारतवर्ष की सबसे बड़ी
विशेषता यह थी कि इस गुरु-शिष्य परंपरा में धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं किया गया।
भारत में गुरु-शिष्य संबंध का वह भव्य रूप आज साधुओं, पहलवानों और संगीतकारों में ही, थोड़ा ही सही, पाया जाता है। भगवान
राम कृष्ण बरसों योग्य शिष्य को पाने के लिए प्रार्थना करते रहे। उनके जैसे व्यक्ति को भी उत्तम शिष्य के लिए रो-रोकर प्रार्थना
करनी पड़ी। इसी से समझा जा सकता है कि एक गुरु के लिए उत्तम शिष्य कितना महँगा और महत्त्वपूर्ण है। संतानहीन रहना उन्हें
दख नहीं देता. पर बगैर शिष्य के रहने के लिए वे एकदम तैयार नहीं होते। कविता के मर्मज्ञ और रसिक स्वयं कवि से अधिक महान
होते हैं। संगीत के पागल सुनने वाले ही स्वयं संगीतकार से अधिक संगीत का रसास्वादन करते हैं। यहाँ पूज्य नहीं, पुजारी ही श्रेष्ठ
है। यहाँ सम्मान पाने वाले नहीं, सम्मान देने वाले महान हैं। स्वयं पुष्प में कुछ नहीं है, पुष्प का सौंदर्य उसे देखने वाले की दृष्टि में
है। दुनिया में कुछ नहीं है। जो कुछ भी है, हमारी चाह में, हमारी दृष्टि में है। यह अद्भुत भारतीय व्याख्या अजीब-सी लग सकती
है, पर हमारे पूर्वज सदा इसी पथ के यात्री रहे हैं। उत्तम गुरु में जाति-भावना भी नहीं रहती। कितने ही मुसलमान पहलवानों के हिंदू
चेले हैं और हिंदू संगीतकारों के मुसलमान शिष्य रहे हैं। यहाँ परख गुण की, साधना की और प्रतिभा की होती है।
निम्नलिखित में से निर्देशानुसार सर्वाधिक उपयुक्त विकल्पों का चयन कीजिए-
(i) भारत में गुरु-शिष्य संबंध का वह भव्य रूप आज कहाँ दिखाई देता है?
(क) साधुओं में
(ख) पहलवानों में
(ग) संगीतकारों में
(घ) (क), (ख), (ग) तीनों में
(ii) गुरु किसके बगैर रहना स्वीकार नहीं करते हैं?
(क) राजाश्रय के बिना
(ख) शिष्य के बिना
(ग) पुत्र के बिना
(घ) धन के बिना
सैंपल पेपर 111
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