'यद्यदाचरति ..... लोकस्तदनुवर्तते' अस्य श्लोकस्य अन्वयं लिखत।
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यद्यदाचरति ..... लोकस्तदनुवर्तते' अस्य श्लोकस्य अन्वयं लिखत।
अन्वयम्-> श्रेष्ठ: यत् आचरति, इतर: जन: तत् तत् एव (आचरति), स: यत् प्रमाणं कुरुते, लोक: तत् अनुवर्तते|
सरलार्थ -> श्रेष्ठ व्यक्ति जो जो आचरण करता है| दूसरा व्यक्ति भी उस उस ही कर्म को करता है, अर्थात वैसा ही अनुसरण दुसरे लोग भी करते हैं| वह व्यक्ति, जो कुछ प्रमाण कर देता है लोग भी उसके अनुसार आचरण करते हैं|
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