Hindi, asked by mannanp6393, 1 year ago

Ye sapano ke se din bahut aacha hai

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Answered by karmaan958
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कोई भी भाषा आपसी व्यवहार में बाधा नहीं बनती – पाठ के किस अंश से यह सिद्ध होता है?

उत्तर: पाठ के शुरु में लेखक ने अपने उन दोस्तों का जिक्र किया है जो राजस्थान से आए थे। लेखक को उनकी भाषा समझ में नहीं आती थी। लेकिन खेलते समय दोनों एक दूसरे की भाषा आसानी से समझ लेते थे। इस प्रकरण से पता चलता है कि भाषा आपसी व्यवहार में बाधा नहीं बनती।



पीटी साहब की ‘शाबाश’ फौज के तमगों सी क्यों लगती थी? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: पीटी साहब बहुत ही कड़क थे और बात-बात पर चमड़ी उधेर देने की धमकी देते थे। बच्चे उनसे बहुत डरते थे। लेखक के अनुसार कोई ऐसा आदमी जो साल भर आपकी आलोचना करता है तो उसकी एक शाबाशी भी बहुत अच्छी लगती है। इसलिए पीटी साहब की ‘शाबाश’ लेखक को फौज के तमगों सी लगती थी।



नई श्रेणी में जाने और नई कापियों और पुरानी किताबों से आती विशेष गंध से लेखक का बालमन क्यों उदास हो उठता था?

उत्तर: नई श्रेणी में जाने पर लेखक के लिए नई कापियाँ और पुरानी किताबें खरीदी जाती थी। नई श्रेणी में जाने पर अधिक मुश्किल पढ़ाई का भय और कुछ नए शिक्षकों की पिटाई का भय लेखक के मन मे बना रहता था। इसलिए नई श्रेणी में जाने पर लेखक के लिए नई कापियाँ और पुरानी किताबों से आती विशेष गंध से लेखक का बालमन उदास हो उठता था।



स्काउट परेड करते समय लेखक अपने को महत्वपूर्ण ‘आदमी’ फौजी जवान क्यों समझने लगता था?

उत्तर: परेड के समय जब लेखक राइट टर्न, लेफ्ट टर्न और अबाउट टर्न लेते हुए एड़ियों को मरोड़कर ठक ठक की आवाज निकालता था तो उन बूटों और उनकी ठक-ठक से उसे लगता था कि वह एक महत्वपूर्ण ‘आदमी’ फौजी जवान हो गया है। शायद लेखक को उस समय एक फौजी होने का अहसास होता था जो की शक्तिशाली होता है और जिससे सब डरते हैं।



विद्यार्थियों को अनुशासन में रखने के लिए पाठ में अपनाई गई युक्तियों और वर्तमान में स्वीकृत मान्यताओं के संबंध में अपने विचार प्रकट कीजिए।

उत्तर: विद्यार्थियों को अनुशासन में रखने के लिए पाठ में अपनाई गई युक्तियाँ बड़ी ही क्रूर लगती हैं। आज हर विशेषज्ञ का मानना है कि शारीरिक यातना देकर बच्चों को नहीं सुधारा जा सकता है। आज के शिक्षाविदों का मानना है कि बच्चों को प्यार और स्नेह से ही सही तरीके से सिखाया जा सकता है। गुजरे जमाने के स्कूली जीवन के बारे में तो सोचकर ही रूह काँप जाती है।
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