yoeg ke darshn aur neyam par essay in 150 - 160 words in hindi
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योग संस्कृत के शब्द युज से लिया गया है । इसका अर्थ है जड़ना या बनना । इसे हम शरीर तथा मन का संयोग कह सकते हैं । योग मनुष्य के गुणों, ताकत अथवा शक्तियों का आपस में मिलना है । योग एक तरीका है । जिसके द्वारा छिपी शक्तियों (Latent Powers) का विकास होता है । योग धर्म, दर्शन, मनोविज्ञान तथा शारीरिक सभ्यता का समूह है । योग द्वारा आदमी को आत्मविश्वास प्राप्त होता है । योग का उद्देश्य शरीर को लचकदार तथा नीरोग बनाना है । यह शरीर, मन तथा आत्मा की आवश्यकताएं पूर्ण करने का एक अच्छा साधन है । शारीरिक स्वास्थ्य तथा निरोगता योग द्वारा प्राप्त करने का जो तरीका पतंजलि ने बताया है, उसे अष्टांग योग कहा जाता है । इसके आठ अंग हैं –
यम (Restrain)नियम (Observance)आसन (Posture)प्राणायाम (Regulation of breath and Bio-energy)प्रत्याहार (Abstraction)धारणा (Concentration)ध्यान (Meditation)समाधि (Trance)योग के हर एक अंग के बारे में संक्षेप में जानकारी1. यम – यह अनुशासन का वह साधन है, जो प्रत्येक मनुष्य के मन से सम्बन्ध रखता है । इसका अभ्यास करने से मनुष्य अहिंसा, सच्चाई, चोरी न करना, पवित्रता तथा त्याग करना सीखता है ।
2. नियम – नियम वे ढंग हैं जो मनुष्य के शारीरिक अनुशासन से सम्बन्धित हैं । शरीर तथा मन की शुद्धि संतोष, दृढ़ता तथा ईश- आराधना जैसे कि शरीर की सफाई नेति, धोती तथा बस्ती द्वारा तैयार की जाती है ।
3. आसन – मानव शरीर को अधिक से अधिक समय के लिए विशेष स्थिति में रखने को आसन कहते हैं । जैसे रीढ़ की हड्डी को बिल्कुल सीधा रखकर टांगो को किसी विशेष दिशा में रखकर बैठने को पद्मासन कहते हैं ।
4. प्राणायाम – एक स्थिर जगह पर बैठकर किसी विशेष विधि के अनुसार सांस अन्दर खींचने तथा बाहर निकालने की विधि को प्राणायाम कहते हैं ।
5. प्रत्याहार – प्रत्याहार का अर्थ मन तथा इन्द्रियों को उनकी सम्बन्धित क्रिया से हटकर परमात्मा की ओर लगाना है ।
6. धारणा – इसका अर्थ मन को किसी इच्छित विषय में लगाना है । इस प्रकार एक ओर ध्यान लगाने से मनुष्य मैं एक महान् शक्ति पैदा हो जाती है, जिस के साथ उसके मन की इच्छा पूरी हो जाती हैं ।
7. ध्यान – यह धारणा से ऊंची अवस्था है जिसमें, आदमी सांसारिक मोह जाल से ऊपर उठ जाता है तथा अपने आप में अन्तर्ध्यान हो जाता है ।
8. समाधि – समाप्ति ध के समय मानवीय आत्मा परमात्मा मैं लीन हो जातीं ।
योग के सिद्धांतयोग के प्रथम चार अंग यम, नियम आसन प्राणायाम का सांसारिक लोग अभ्यास कर सकते है’ परन्तु प्रत्याहार, धारणा, ध्यान तथा समाधि का अभ्यास योग, ऋषि मुनि ही कर सकते हैं । योग मनुष्य की शारीरिक, मानसिक तथा आत्मिक उद्देश्यों की पूर्ति वैज्ञानिक ढंगों से करता है । इसलिए .योग विशेष सिद्धान्तों पर निर्भर है, जिनकी पालना करना जरूरी है । इसके प्रमुख सिद्धान्त निम्नलिखित हैं –
1. योग अभ्यास करने वाली जगह साफ-सुथरी तथा हवादार होनी चाहिए ।
2. योग अ प्यास करने के समय पेट खाली होना चाहिए । यदि हो सके तो प्रातःकाल का समय सर्वोतम है, यदि दिन में करना हो तो खाना खाने के कम से कम चार घंटे बाद होना चाहिए ।
3. योग अभ्यास से पूरा लाभ उठाने के लिए शरीर को पौष्टिक तथा संतुलित भोजन देना बड़ा जरूरी है ।
4. योग अभ्यास करते समय मन की एकाग्रता बहुत आवश्यक है, जो मौन धारण करने से प्राप्त होती है । जब शारीरिक क्रियाएं चल रही हों तो मनोवृत्ति भी उसी ओर लगनी चाहिए ।
5. योग अभ्यास नित्यप्रति करना चाहिए ।
6. उचित मात्रा में आराम करना बहुत जरूरी है । ऐसा शरीर में ताजगी लाने हेत भी जरूरी है ।. योग करते समय जब भी थकावट हो तो श्वासन अथवा मकरासन पर लेना चाहिए । आसन समाप्त होने के बाद भी जरूरत के अनुसार शरीर को आराम की अवस्था में रखना जरूरी है ।
7. योग अपनी शक्ति अनुसार ही करना चाहिए । जब तक शरीर को कोई आसन ठीक न बैठे, आसन नहीं करना चाहिए । क्षमता से अधिक जोर लगाकर आसन करने के भयानक परिणाम निकल सकते हैं ।
8. प्रत्येक आसन आरम्भ करने से पहले फेफडों के अन्दर मौजूद हवा को सांस द्वारा बाहर निकाल देना चाहिए । इससे ‘आसन में आसानी रहती है तथा पूर्ण लाभ प्राप्त होता है ।
9. योग अभ्यास करते समय हमेशा नाक द्वारा सांस लेनी चाहिए । श्वास क्रिया का योग से बड़ा सम्बन्ध है । यह ठीक ढंग से होनी चाहिए ताकि श्वास प्रणाली के फेफड़ों में शुद्ध हवा ही पहुंचे ।
10. हवा को बाहर निकालने (Exhale) के बाद श्वास क्रिया रोकने का जरूर अभ्यास करना चाहिए ।
11. एक आसन करने के बाद दूसरी तरह का आसन करना चाहिए जैसे कि धनुरासन के बाद पश्चिमोतान आसन करना चाहिए ।
12. प्रत्येक आसन शारीरिक क्षमता के अनुसार ही होना चाहिए ।
13. आरम्भ में योगाभ्यास करते समय व्यक्ति को आसन की स्थिति में कम वक्त के लिए ही ठहरना चाहिये, परन्तु ज्यों-ज्यों उस आसन का अभ्यास लगातार होता रहे, तब कोशिश करनी चाहिए । एक जगह आसन की स्थिरता (Retention) उचित समय अनुसार जरूर हो ।