Hindi, asked by mubeenaferoz, 9 months ago

Yuvaon ke liye matdan ka adhikar par nibandh ...plss

Answers

Answered by 07Samayra
20

Answer:

मतदान करने में सक्षम लोग जिस कारण से मतदान नहीं करते, वह यह है कि उनके विचार में मतपेटी या इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन के माध्यम से अपनी राय को व्यक्त करने से कोई फर्क नहीं पड़ेगा।

यह हमारी राजनीतिक प्रक्रिया के भ्रष्ट हो जाने की हद की वजह से पैदा निराशा और उदासीनता के कारण एक पराजित दृष्टिकोण हो सकता है। लेकिन डाला गया हर मत आशा और विश्वास का प्रतीक होता है जिसे हम उम्मीदवारी में व्यक्त करते हैं जिसके बारे में हम मानते हैं कि वह एक सकारात्मक अंतर ला सकता है। लोकतंत्र में अपना मत न डालना अपनी जिम्मेदारी से भागना हो सकता है।

मतदान केवल एक अधिकार नहीं बल्कि एक जिम्मेदारी भी है। मतदान एक आध्यात्मिक कृत्य है क्योंकि उन व्यक्तियों पर अपनी राय व्यक्त करने के विकल्प का उपयोग करके, जिनको शासन की शक्तियों को ग्रहण करना चाहिए, आप अच्छे विश्वास में ऐसे व्यक्ति को आपके और दूसरों के जीवन को बदलने की शक्ति से संपन्न कर रहे हैं। इस मायने में, मतदान करने के लिए आपका निर्णय और मतदान का वास्तविक कृत्य आध्यात्मिक रूप से प्रेरित है क्योंकि मतदान करके जो प्राप्त करने का आपका मंतव्य है, वह है शासन के मामलों में उच्च मूल्यों को बढ़ावा देने में मदद करना। ये मामले अलग-अलग तरीकों से हर किसी के जीवन को छूते हैं - सामाजिक, आर्थिक या पर्यावरणीय। हम आशा करते हैं कि जिन लोगों को हम कार्यालय के लिए चुनते हैं वे एक बेहतर समानता को स्थापित करते हुए सभी के लाभ के लिए रचनात्मक कार्रवाई करें।

यूएस सेंटर फॉर विजनरी लीडरशिप की कोरिन मैक्लॉघिन कहती हैं कि यदि आप जीवन के बारे में परवाह करते हैं, यदि आप दूसरों के जीवन के बारे में परवाह करते हैं, यदि आप इस ग्रह पर जीवन के बारे में परवाह करते हैं तो मतदान का अधिकार और जिम्मेदारी फर्क डालते हैं। उनका कहना है कि अगर आप परवाह करते हैं तो मतदान करने के लिए अपनी आत्मा की आवाज का जवाब दें। उनका कहना है कि सचमुच हमारा जीवन इस बात पर निर्भर करता है कि हम किस प्रकार मतदान करते हैं। आपका मत आतंकवाद, युद्ध, स्वास्थ्य, शिक्षा, जलवायु परिवर्तन और हर व्यक्ति के जीवन को छूने वाले अनेकों विषयों पर नीति को तय करने में मदद कर सकता है। लोकतंत्र में, मतदान करना एक आध्यात्मिक जिम्मेदारी है। यदि हम आध्यात्मिक मूल्यों से जीने के लिए प्रतिबद्ध हैं, तो हमें उनको मतदान स्थल पर लाना चाहिए, और उम्मीदवारों और उनसे जुड़े मुद्दों के बारे में उनको शिक्षित करना चाहिए। यही कारण है कि मतदाताओं की उदासीनता और हार की प्रवृत्ति हम सभी के लिए खतरा है। हालांकि, यह सच है कि इस बात की ज्यादा जड़ राजनीति के अपराधीकरण से होने वाली निराशा में निहित है।

बहुत सारे अच्छे नागरिकों ने लोकतंत्र कहे जाने वाले निरंतर संघर्ष से अपनी पीठ फेर ली है, जो कि हमारे समय का कुरुक्षेत्र है। कुछ लोग इसे एक व्यक्तिगत बयान के रूप में देखते हैं, लेकिन दरअसल, जानबूझकर अपना मत डालने से पीछे हटने का मतलब यह नहीं है कि आप राजनीति से दूर रह रहे हैं। इसका मतलब यह है कि आप राजनीतिक प्रक्रिया को अपनी पसंद का उपयोग करने के कर्तव्य का त्याग करके अपनी भागीदारी के बिना पूरा होने की अनुमति दे रहे हैं। लेकिन चुनावी प्रक्रिया की अनदेखी करने में थोड़ा लाभ है। अस्तित्व विकल्प की ही तरह राजनीतिक विकल्प भी अपरिहार्य है। यह अहसास कि मतदान न करके हमने किसी तरह अपने आप को राजनीतिक झंझट से ऊपर कर लिया है, अपने आप को छलना है, हम असल में, होने वाले राजनीतिक परिवर्तन की यदृच्छयता को प्रोत्साहित कर रहे हैं। अपनी पीठ मोड़ लेना एक नकारात्मक कार्य है।

लोकतंत्र में, चुनावी प्रक्रिया में उनके लिए भी स्थान शामिल किया जाना चाहिए जो यह कहना चाहते हैं कि वे अपने निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे उम्मीदवारों में से किसी से भी खुश नहीं हैं। मतदाता के पास "उपरोक्त में से कोई भी नहीं" विकल्प का चयन करके सभी उम्मीदवारों को अस्वीकार करने का अधिकार होना चाहिए। दूसरे शब्दों में, एक नकारात्मक मत डालना- एक तरह से सकारात्मक कार्रवाई का रूप- राजनीतिक दलों को सूची बदलने के लिए मजबूर कर देगा। उनको सार्वजनिक पद के लिए लड़ने वाले उम्मीदवारों की गुणवत्ता में सुधार करना होगा।

Answered by Priatouri
8

भारत भारत के संविधान के तहत शासित एक संसदीय प्रणाली के साथ एक महासंघ है, जो केंद्र सरकार और राज्यों के बीच शक्ति वितरण को परिभाषित करता है।  भारत के नागरिक जिनकी उम्र 18 वर्ष से अधिक हैं चुनाव में अपना वोट डालसकते हैं। भारत के संविधान के अनुसार, प्रत्येक भारतीय नागरिक जो कि स्पष्ट दिमाग का है, उसे एक सार्वभौमिक मतदान का अधिकार दिया जाता है। मतदाता के साथ धर्म, जाति, पंथ, आर्थिक स्थिति आदि जैसे कारकों के आधार पर भेदभाव नहीं किया जाता है, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह किस धर्म का है और यदि वह अमीर है या गरीब है।

Similar questions