0) पद्य का भावार्थ लिखिए:
तरुवर फल नहीं खात है, सरवर पियहि न पाना
कहि रहीम परकाज हित, संपनि संचहि सुजान।
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पेड अपना फल खुद नहीं खाता है, नदी अपना पानी खुद नहीं पीता है उसी तरह हमे भी कुछ दूसरों को भी देना चाहिए
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वृक्ष अपना फल खुद नहीं खाते है, नदी अपना जल खुद नहीं पीता है, उसी तरह सज्जन लोगों की संपत्ति दुसरो के परोपकार के लिए होता है।
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