1. 'मुझको न मिला रे कभी प्यार' कविता का प्रतिपाद्य लिखिए।
'पर्दा उठाओ, पर्दा गिराओ' एकांकी का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
3. हिंदी भाषा और उसकी बोलियों का सामान्य परिचय दीजिए।
4. एक अच्छे अनुवाद में किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए। स्पष्ट
5. शब्द शक्ति की परिभाषा देते हुए उसके भेदों का उल्लेख कीजिए।
6. एकभाषी और द्विभाषी कोश में अंतर स्पष्ट करते
निम्रलिखित शब्द
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1. 'मुझको न मिला रे कभी प्यार' कविता का प्रतिपाद्य लिखिए।
►मुझको ना मिला प्यार कभी जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित कविता है, जिसमें एक प्रेमी हृदय अपने मन की व्यथा को व्यक्त करते हुए कह रहा है कि वह अपने पूरे जीवन में सच्चे प्यार को पाने के लिए भटकता रहा। लेकिन उसको प्यार कभी नहीं मिला उसको हर जगह तिरस्कार का सामना ही करना पड़ा। हर जगह उसने पुकार लगाई लेकिन किसी ने उसकी नहीं सुनी। वह समाज में सबसे एक दृष्टि प्रेम पाने की लिए तरसता रहा लेकिन उसे प्यार कभी नहीं मिला। अंत में उसकी समझ आता है, कि इस जग में प्यार देने वाले कम ही होते है, जबकि मन को दुखाने वाले कदम-कदम पर मिल जायेंगे।
2. 'पर्दा उठाओ, पर्दा गिराओ' एकांकी का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
► पर्दा उठाओ पर्दा गिराओ एकांकी के माध्यम से एकांकीकार उपेंद्र नाथ अश्क का उद्देश्य जीवन की सच्चाई व विसंगतियों को प्रकट करना है। जिस तरह एकांकी में परदा गिरने पर एकांकी के कलाकार आपसी चिंता और तनाव में उलझे होते हैं और पर्दा उठने पर सारा तनाव भूल कर अपना अभिनय करने लगते हैं, ऐसा प्रदर्शित करते हैं कि जैसे उन्हें कोई परेशानी ही नहीं है। उसी तरह आम जीवन में भी लोग रंगमंच का ही जीवन जीते हैं। उनके अपने जीवन में अनेक तरह की परेशानियां होती है, लेकिन दूसरों के सामने वह ऐसा प्रदर्शित करते हैं जैसे कि उन्हें कोई परेशानी नहीं हो क्योंकि उन्हें मालूम है कि सामने वाला व्यक्ति एकांकी के दर्शक की तरह है, जो केवल मनोरंजन के उद्देश्य से आया है। उसे पर्दे के पीछे की परेशानियों से कोई सरोकार नहीं। उसी तरह लोगों के जीवन में आने वाले लोग भी को आपके निजी परेशानियों से कोई सरोकार नहीं होता। लेखक ने यह सिद्ध करने की कोशिश की है कि समाज में हर व्यक्ति एक रंगमंच के पात्र की तरह का जीवन जीता है।
3. हिंदी भाषा और उसकी बोलियों का सामान्य परिचय दीजिए।
► हिंदी भारत और विश्व की एक प्रमुख भाषा है। जो विश्व में सर्वाधिक बोले जाने वाली भाषाओं में से एक है और यह भारत में भी सर्वाधिक बोली जाती है। हिंदी भाषा का इतिहास 1000 साल से भी ज्यादा पुराना है। इसका विकास अनेक तरह की बोलियों से हुआ है। हिंदी भाषा का स्वरूप और उसकी बोलियां अपने-अपने स्वरूप में मौजूद हैं। हिंदी भाषा की अनेक बोलियां हैं जिन्हें उप भाषाएं भी कहा जाता है, जो कि इस प्रकार हैं, उनकी संख्या लगभग 18 है जिनमें भोजपुरी, ब्रजभाषा, अवधी, कन्नौजी, बुंदेली, बघेली, हाड़ोती, हरियाणवी, छत्तीसगढ़ी, राजस्थानी, मालवी, नागपुरी, खोरठा, पंचपरगानिया, कुमाऊँनी, मगही, मैथिली आदि बोलियां प्रमुख है।
4. एक अच्छे अनुवाद में किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए।
►एक अच्छे अनुवाद को अनुवादक को अनुवाद करते समय निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए...
- एक अच्छे अनुवादक के लिए यह जरूरी है कि उसे दोनों भाषाओं का अच्छा ज्ञान हो अर्थात स्रोत भाषा यानी जिस भाषा से उसे अनुवाद करना है और लक्ष्य भाषा यानी जिस भाषा में उसे अनुवाद करना है, इन दोनों भाषाओं पर उसकी पकड़ अच्छी होनी चाहिए।
- अच्छे अनुवादक को उस विषय का ज्ञान भी होना चाहिए, जिस विषय से संबंधित रचना का वो अनुवाद कर रहा है। किसी भी विषय का अच्छा ज्ञान होने पर उस विषय से संबंधित तकनीकी शब्दों को अनुवादक सही स्थान पर प्रयुक्त कर सकता है, जिससे अनुवाद में मूल रचना का पूरा भाव स्पष्ट हो सकेगा।
- अनुवादक में मूल रचना का उद्देश्य और भाव समझ सकने का गुण होना चाहिए ताकि वह मूल्य रचना का भाव समझकर लक्ष्य भाषा में उस रचना के भाव को प्रकट कर सके।
- अनुवादक को किसी भी भाषा किसी भी रचना का अनुवाद करते समय ज्यों का त्यों प्रस्तुत ना करके सरल और सहज भाषा में प्रस्तुत करने की कला आनी चाहिए।
- अनुवादक की दोनों भाषाओं के व्याकरण पर पूर्ण पकड़ होनी चाहिए।
5. शब्द शक्ति की परिभाषा देते हुए उसके भेदों का उल्लेख कीजिए।
► शब्द-शक्ति ▬ शब्दों के अर्थ का बोध कराने वाले भाव को शब्द-शक्ति कहते हैं, अर्थात किसी शब्द या शब्द समूह जो अर्थ छिपा होता है, उसका बोध कराने के भाव को शब्द-शक्ति कहते हैं। शब्द-शक्ति के प्रकार के आधार पर उस शब्द के भिन्न-भिन्न अर्थ हो सकते हैं।
शब्द शक्ति के तीन भेद होते हैं...
▬ अभिधा
▬ लक्षणा
▬ व्यंजना
अभिधा : अभिधा में शब्द के अर्थ में कोई विरोधाभास या अवरोध नही होता और उसका सीधा अर्थ होता है, जैसे...
राम पुस्तक पढ़ रहा है।
यहाँ पर सीधा स्पष्ट है कि राम नाम का एक व्यक्ति पुस्तक पढ़ रहा है।
लक्षणा : लक्षणा में शब्दों में एक विशिष्ट अर्थ छिपा होता है, जो शब्द को सामान्य अर्थ से अलग विशिष्ट अर्थ प्रयुक्त करता है। जैसे...
राजू बिल्कुल गधा है।
रमेश शेर है।
यहाँ पर राजू को गधा बताने के पीछे का भाव ये नही कि वो गधा नामक जानवर है, बल्कि ये है कि गधा एक मूर्ख प्राणी माना जाता तो राजू की संज्ञा गधे से करके राजू को मूर्ख बताने की कोशिश की गई है।
दूसरे वाक्य में रमेश को शेर बताकर उसे वीर और निडर तथा ताकतवर बताने की कोशिश की गयी है, क्योंकि शेर ताकत का प्रतीक है।
व्यंजना : जब एक ही तरह से शब्दों से अलग-अलग व्यक्तियों के लिये अलग-अलग अर्थ बनते हों तो वहाँ व्यंजना शब्द शक्ति होती है। जैसे...
सुबह के छः बज गए।
सुबह के छः बजने का अलग-अलग लोगों के लिए अलग अर्थ होगा।
घर में काम करने वाली गृहिणई के लिए घर के कामकाज शुरू करने का अर्थ है।
बच्चों के लिए स्कूल जाने के लिए तैयार होने का अर्थ है।
जो चौकीदार रात भर ड्यूटी करता है. उसे अपनी ड्यूटी समाप्त होने का अर्थ है।
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