1 स्वस्थ शरीर- एक वरदान Ka paragraph
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(1) स्वस्थ तन-मन के बिना जीवन बोझ--स्वस्थ व्यक्ति के लिए जीवन वरदान होता है | पर, अस्वस्थ व्यक्ति के लिए जीवन बोझ और अभिशाप बन जाता है | स्वस्थ व्यक्ति के लिए जीवन का प्रत्येक क्षण आनंद से भरा होता है , पर अस्वस्थ व्यक्ति के लिए जीवन का प्रत्येक क्षण घोर दंश के समान होता है | जीवन में आनंद का आगमन तभी होता है जब हमारा तन और मन स्वस्थ हो | धन के अभाव में आनंद की कल्पना की जा सकती है, पर स्वास्थ्य के अभाव में आनंद की कल्पना सर्वथा असंभव है |
(2) शारीरिक स्वस्थ्य और व्यायाम--शारीरिक स्तर पर स्वस्थ रहने के लिए व्यायाम अत्यंत आवश्यक है | नियमित व्यायाम करने से हमारे शरीर में रक्त का सञ्चालन सुचारु रूप से होता है तथा विभिन्न प्रकार के रोगों से लड़ने की क्षमता का विकास होता है |
(3) मानसिक स्वस्थ्य और व्यायाम--जिस तरह शरीर को स्वस्थ एवं नीरोग रखने के लिए व्यायाम अनिवार्य होता है , उसी प्रकार मन को दुष्ट प्रवृत्तियों से मुक्त रखने के लिए व्यायाम की अनिवार्यता होता है | संयमित मन को स्वास्थ्य का प्रवेशद्वार माना जाता है | शांत मन स्वस्थ शरीर का आधार होता है | मन की शांति के लिए यह आवश्यक है की हम नियमित जैसी यौगिक क्रियाएँ करें | संतुलित भोजन और नियमित व्यायाम के बाद भी यदि हमारा चित्त (मन) चंचल बना रहे , तो हम स्वस्थ नहीं हो सकते है | मन या चित्त की सबलता पर ही हमारा स्वास्थ्य निर्भर होता है | दुबला-पतला व्यक्ति भी संयमित चित्त की स्थिति में स्वस्थ हो सकता है, पर मोटा-तगड़ा व्यक्ति भी अस्वस्थ हो सकता है , पर मोटा-तगड़ा व्यक्ति भी स्वस्थ नहीं हो सकता यदि उसका चित्त अस्थिर और चंचल है | मानसिक प्रसन्नता उत्तम स्वास्थ्य का लक्षण है |
(4) स्वस्थ व्यक्ति से स्वस्थ समाज का निर्माण--यह कथन शत-प्रतिशत सही है की स्वस्थ व्यक्ति से स्वस्थ समाज का निर्माण होता है | समाज व्यक्तियों का समूह होता है | जिस प्रकार किसी टोकड़ी का एक सड़ा आम उसके सारे आम को सड़ा देता है , उसी प्रकार किसी समाज का चारित्रिक स्तर पर भ्रष्ट व्यक्ति बहुत सारे व्यक्तियों को पतनोन्मुख कर देता है | मन से चरित्र का निर्माण होता है | प्रसन्न मन चरित्र को उज्जवल बनाता है | इसके विपरीत, अवसादग्रस्त मन चरित्र को दूषित करता है | दूषित चरित्र समाज के निर्मल स्वरूप को कलंकित करता है | निर्मल तथा सब प्रकार से स्वस्थ समाज के निर्माण के लिए दुषणरहित चरित्रों की जरुरत पड़ती है | मानसिक व्यायाम ही मन को दूषण से मुक्त कर उसे निर्माणशील बनाता है | विकाररहित समाज को देखकर यह सहज ही कहा जाता है की उस समाज में शरीर और मन के स्तर पर स्वस्थ लोग निवास् करते है |
(5) निष्कर्ष--अच्छा स्वास्थ्य संयम और नियम की अपेक्षा रखता है | प्रत्येक व्यक्ति को यह मालुम होना चाहिए की स्वास्थ्य ही परम धन है | अतः, उसे अपने स्वास्थ्य के प्रति हमेशा सावधान रहना चाहिए |
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आप क्या खा रहे हैं स्वास्थ्य का संबंध केवल इससे नहीं है बल्कि आप क्या सोच रहे हैं और क्या कह रहे हैं स्वास्थ्य का संबंध इससे भी है।" आम तौर पर एक व्यक्ति को मानसिक और शारीरिक रूप से फिट होने पर अच्छे स्वास्थ्य का आनंद लेना कहा जाता है। हालांकि स्वास्थ्य का महत्व इससे अधिक है। स्वास्थ्य की आधुनिक परिभाषा में कई अन्य पहलुओं को शामिल किया गया है जिनके लिए स्वस्थ जीवन का आनंद लेना बरकरार रखा जाना चाहिए।
स्वास्थ्य की परिभाषा कैसे विकसित हुई?
शुरुआत में स्वास्थ्य का मतलब केवल शरीर को अच्छी तरह से कार्य करने की क्षमता होता था। इसको केवल शारीरिक दिक्कत या बीमारी के कारण परेशानी का सामना करना पड़ता था। 1948 में यह कहा गया था कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने किसी व्यक्ति की संपूर्ण शारीरिक, मानसिक और सामाजिक स्थिति को स्वास्थ्य में शामिल किया है न कि केवल बीमारी का अभाव। हालांकि यह परिभाषा कुछ लोगों द्वारा स्वीकार कर ली गई थी लेकिन फिर इसकी काफी हद तक आलोचना की गई थी। यह कहा गया था कि स्वास्थ्य की यह परिभाषा बेहद व्यापक थी और इस तरह इसे सही नहीं माना गया। इसे लंबे समय के लिए अव्यवहारिक मानकर खारिज कर दिया गया था। 1980 में स्वास्थ्य की एक नई अवधारणा लाई गई। इसके तहत स्वास्थ्य को एक संसाधन के रूप में माना गया है और यह सिर्फ एक स्थिति नहीं है।
आज एक व्यक्ति को तब स्वस्थ माना जाता है जब वह अच्छा शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, आध्यात्मिक और संज्ञानात्मक स्वास्थ्य का आनंद ले रहा है
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