102/क्षितिज
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काननि दै अँगुरी रहिबो जबहीं मुरली धुनि मंद बजैहै।
मोहनी तानन सों रसखानि अटा चढ़ि गोधन गैहै तौ गैहै।।
टेरि कहौं सिगरे ब्रजलोगनि काल्हि कोऊ कितनो समुहै।
माइ री वा मुख की मुसकानि सम्हारी न जैहै, न जैहै. न जैहै।।
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