1857 ई. क़ी क्रान्ति की असफलता के क्या कारण थे?
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ossum question mate
the main reasons were
अंग्रेजों को भारत से बाहर निकालने के लिए 1857 में जो संघर्ष हुआ, उसकी असफलता तो पूर्व निश्चित थी। इसकी असफलता के लिए पाँच प्रमुख कारण बताये जाते हैं इनके अलावा पी.ई.रॉबर्ट्स ने दो अन्य कारण भी बताये हैं- केन्द्रीभूत विद्रोह तथा केनिंग की उदारता। डॉडवेन ने इसमें एक कारण और जोङा है-संगठन का अभाव। समग्र रूप से विप्लव की असफलता के कारण निम्नलिखित हैं-
मेरठ का विद्रोह-
पूर्व योजनानुसार 31 मार्च,1857 का दिन संपूर्ण भारत में एक साथ विद्रोह करने हेतु तय किया गया था, किन्तु दुर्भाग्य से 29 मार्च,1857 को मंगल पांडे ने विद्रोह का झंडा खङा कर दिया। यह समाचार तत्काल मेरठ पहुँचा और 10मई, 1857 को मेरठ में भी विद्रोह हो गया। इस प्रकार अपरिपक्व अवस्थामें विद्रोह करने से असफलता तो निश्चित ही थी।
सिक्खों एवं गोरखों की गद्दारी- राजपूत, सिक्ख व गोरखे अपनी वीरता के लिए विश्वविख्यात थे। कुछ इने-गिने स्थानों को छाङकर राजपूतों ने विद्रोह के प्रति उदासीनता प्रदर्शित की।सिक्खों ने ब्रिटिश साम्राज्य का समर्थन करना ही उचित समझा। सिक्ख बंगाल से,जिसने पंजाब विलय के समय अंग्रेजों का साथ दिया था, समर्थन करने को तैयार नहीं थे। अतः वे अंग्रेजों के प्रति वफादार रहे। सिक्खों ने दिल्ली और लखनऊ जीतकर क्रांति की कमर ही तोङ दी।इसी प्रकार गोरखों ने अपने सेनापति जंग बहादुर की अधीनता में अवध पर आक्रमण कर अंग्रेजों की मदद की तथा भारतीयों से गद्दारी कर क्रांति को असफल बना दिया।
दक्षिण भारत की उदासीनता- नर्मदा का दक्षिण भाग पूर्णतः शांत रहा। यदि उत्तर भारत के साथ-2दक्षिण भारत भी विद्रोह में कूद पङता तो इतने विशाल क्षेत्र में फैले विद्रोह को दबाना असंभव हो जाता। विद्रोह के प्रमुख केन्द्र बिहार,अवध,रूहेलखंड, चंबल तथा नर्मदा के मध्य की भूमि एवं दिल्ली ही थे। अतः अंग्रेजों ने दक्षिण से सेनाएँ बुला ली तथा विद्रोही क्षेत्रों पर आक्रमण करके विजय प्राप्त कर ली। अंग्रेजों को बहुत ही सीमित क्षेत्र में विद्रोह का सामना करना पङा। इस प्रकार दक्षिण भारत की उदासीनता अंग्रेजों के लिए वरदान सिद्ध हुई। इसलिए अंग्रेज,निजाम और सिधिंया का नाम कृतज्ञता से लेते रहे।
नरेशों का असहयोग- प्रायः सभी भारतीय नरेशों ने विद्रोह का दमन करने में अंग्रेजों का साथ दिया। सिंधिया के मंत्री दिनकरराव तथा निजाम के मंत्री सालारजंग ने अपने-2 राज्य में क्रांति को फैलने नहीं दिया। राजपूताना के नरेशों ने भी अंग्रेजों की भरपूर सहायता की। विद्रोह काल में स्वयं केनिंग ने कहा था कि, यदि सिंधिया भी विद्रोह में शामिल हो जाय तो मुझे कल ही बिस्तर गोल करना पङ जाय।इसी प्रकार मैसूर का राजा, पंजाब में सिक्ख सरदार,मराठे और पूर्वी बंगाल आदि के शासक भी शांत रहे। यदि वे सभी मिलकर अंग्रेजों के विरुद्ध व्यूह-रचना करते तो अंग्रेजों को अपनी जान के लाले पङ जाते।
योग्य नेताओं का अभाव- विद्रोह को ठीक तरह से संचालित करने वाला कोई योग्य नेता नहीं था। यद्यपि विद्रोहियों ने बूढे बहादुरशाह को अपना नेता मान लिया था, लेकिन बूढे बहादुरशाह से सफल सैन्य – संचालन एवं नेतृत्व की आशा करना दुराशा मात्र थी।प्रमुख नेता नाना साहब चतुर अवश्य था, किन्तु वह सैन्य-संचालन में निपुण नहीं था। तांत्या टोपे का चरित्र उच्च था, किन्तु उसमें सैनिक योग्यता नहीं थी। सर्वाधिक योग्य नेताओं में झांसी की रानी लक्ष्मीबाई तथा जगदीशपुर का जमींदार कुंवरसिंह थे। रानी लक्ष्मीबाई वीर होते हुए भी अनुभवहीन थी। कुंवरसिंह भी वीर था, लेकिन पूर्णतया वृद्ध था तथा सभी उसे नेता मानने को तैयार न थे। इस प्रकार विद्रोह का कोई ऐसा योग्य नेता नहीं था, जो सबको संगठित कर संघर्ष को सफलता के द्वार तक पहुँचा सके।
नागरिकों का असहयोग-वस्तुतः मोटे तौर पर यह विद्रोह कुछ नरेशों, जागीरदारों एवं सैनिकों तक ही सीमित था। भारत की अधिकांश जनता कृषक थी। कोई भी विद्रोह इस वर्ग की उपेक्षा करके सफल नहीं हो सकता था। किन्तु विद्रोहियों ने किसानों का सहयोग प्राप्त करने का कोई प्रयास नहीं किया। इस प्रकार यह क्रांति जन-क्रांति नहीं बन सकी। जो लोग संघर्ष कर रहे थे वे अपने स्वार्थों को पूरा करने के लिए लङ रहे थे।
केन्द्रीय संगठन का अभाव- विद्रोह आरंभ होने से पूर्व कुछ संगठन एवं योजना अवश्य थी, किन्तु विद्रोह आरंभ हो जाने के बाद योजना का क्रमबंद्ध रूप दिखाई नहीं देता। विद्रोही सेनाओं के दिल्ली पहुँचने तक तो किसी पूर्व निश्चित योजना का स्वरूप दिखाई देता है, किन्तु बाद में वह समाप्त – सा दिखाई देता है। कोई केन्द्रीय संगठन भी होना चाहिए था, जो अंग्रेजों की गतिविधियों को ध्यान में रखकर सभी क्षेत्रों के विद्रोहों में समन्वय स्थापित कर सके।
लार्ड केनिंग की उदारता- तात्कालिक गवर्नर जनरल लार्ड केनिंग की उदारता भी विद्रोहियों को शांत करने में सफल हुई।पी.ई.रॉबर्ट्स ने लिखा है कि उसकी नम्रता न केवल नैतिक रूप से विस्यमकाली थी, वरन् राजनीतिक रूप से औचित्यपूर्ण थी।
ठोस लक्ष्य का अभाव- भारतीय सैनिकों ने चरबी वाले कारतूसों से तथा अपनी असुविधाओं के कारण विद्रोह किया था और वह भी पूर्व निश्चित समय से पहले। मुसलमान जहाँ मुगल सम्राट के प्राचीन गौरव को पुनर्जीवित करना चाहते थे, वहाँ हिन्दू नाना साहब और रानी लक्ष्मीबाई के नेतृत्व में हिन्दू सर्वोच्चता की पुनः स्थापना चाहते थे।
अंग्रेजों की अनुकूल परिस्थितियाँ- यदि 1857 का विप्लव कुछ समय पूर्व हुआ होता तो अंग्रेजों को भारत से भागना पङता। किन्तु जिस समय विद्रोह आरंभ हुआ, तब तक परिस्थितियाँ अंग्रेजों के अनुकूल हो गयी थी। क्रीमिया का युद्ध समाप्त हो चुका था। भारत में देशी नरेश,सामंत तथा बुद्धिजीवी अंग्रेजों का समर्थन कर रहे थे। डलहौजी के सुधारों के परिणामस्वरूप सेना के पास रसद आदि भेजने हेतु संचार व्यवस्था स्थापित हो चुकी
- because no British was go out from india and then Gandhi ji born and struggled with British